हरीश साल्वे बनाम दुष्यंत दवे :जज लोया मामले की सुनवाई के दौरान अदालत में हुई गरमागरम बहस

LiveLaw News Network

22 Jan 2018 4:26 PM GMT

  • हरीश साल्वे बनाम दुष्यंत दवे :जज लोया मामले की सुनवाई के दौरान अदालत में हुई गरमागरम बहस

    हरीश साल्वे बनाम दुष्यंत दवे, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने किया हस्तक्षेप

    वरिष्ठ एडवोकेट हरीश साल्वे (महाराष्ट्र सरकार के वकील): मैंने दूसरे पक्ष को भी सारे दस्तावेज दे दिए हैं। जब कोई आलेख किसी अखबार में प्रकाशित होता है, तो एक विवेकपूर्ण जांच की जाती है क्योंकि यह एक न्यायिक अधकारी के बारे में है। हमने चार न्यायिक अधिकारियों से बात की जिन्होंने कहा कि इसमें कोई भी संदिग्ध मामला नहीं है...जजों ने बयान दर्ज कराए कि लोया की मृत्यु “भारी हृदयाघात” के कारण हुआ। जांच रिपोर्ट बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी दे दिया गया (वह इन दस्तावेजों को पढ़ते हैं यह बताने के लिए कि मामला संधिग्ध नहीं है)।

    वरिष्ठ एडवोकेट दुष्यंत दवे : मैं इसमें हस्तक्षेप करना चाहता हूँ क्योंकि मैं बॉम्बे लॉयरस एसोसिएशन की ओर से पैरवी कर रहा हूँ। सरकार की रिपोर्ट चाहे जो कहे, साक्ष्य इसके विपरीत हैं। अगर ऐसा था तो जज के परिवार को क्यों नहीं इस बारे में बताया गया, उन्हें उस अस्पताल में भी नहीं बुलाया गया जहाँ उनका पोस्टमार्टम हुआ...मुंबई से नागपुर के लिए सुबह में तीन फ्लाइट हैं...देखिए किसी का भी इसमें निजी हित नहीं है, लेकिन कृपया इस मामले की जांच कीजिए। साल्वे सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह की पैरवी कर चुके हैं। अब वह महाराष्ट्र सरकार की पैरवी कर रहे हैं। यह हितों के टकराव का एक गंभीर मामला है। एकमात्र व्यक्ति जो इस मामले की जांच नहीं होने देना चाहता है वह इसका आदमी है। मैं दुहरा रहा हूँ ... यह हितों के टकराव का एक गंभीर मामला है। वे महाराष्ट्र सरकार की पैरवी नहीं कर सकते।

    साल्वे : कुछ लोग जज की मृत्यु का लाभ उठाना चाहते हैं। इसकी वजह से पहले ही काफी नुकसान हो चुका है।

    दवे : साल्वे, आप संस्थान का काफी नुकसान कर चुके हैं। माननीय जज साहब को साल्वे को इस तरह कोर्ट को संबोधित करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए।

    साल्वे : इस तरह का बयान अदालत के अंदर कभी भी नहीं दिया जाना चाहिए था।

    दवे : मुझे नैतिकता का पाठ आप न पढाएं।

    साल्वे : ऐसा आप कर रहे हैं, मुझे आपसे प्रमाणपत्र नहीं चाहिए। क्या आपको लगता है कि मुझे चाहिए?

    वरिष्ठ एडवोकेट मुकुल रोहतगी (वे तहसीन पूनावाला के मामले में महाराष्ट्र सरकार के वकील हैं) जज की मौत के बारे में अधिकाँश बातें दुहराते हैं और तब कहते हैं : दवे को इस अदालत को संबोधित करने का अधिकार नहीं है। वह पक्षकार नहीं हैं। अब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला है। अब आप बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन के मामले की सुनवाई क्यों कर रहे हैं जो बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता हैं न कि यहाँ?

    दवे : मृत जज के पिता, चाचा और उनकी बहन यह चाहते हैं कि इस मामले में जांच हो। उनका बेटा भी शुरू में ऐसा ही चाहता था, लेकिन अब भारी दबाव में वह पीछे हट गया है।

    न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ : देखिए, निस्संदेह यह एक गंभीर मुद्दा है। हम मामले को निष्पक्ष होकर देखें।

    साल्वे : हमने रिपोर्ट बनाते हुए शीर्षस्तर पर लोगों से बात की है।

    दवे : हाँ, शीर्ष स्तर पर।  और वह अमित शाह से। अगर यह दिल का दौरा है तो फिर जांच पर आपत्ति क्यों?

    साल्वे : यह अमित शाह, अमित शाह क्या है? आप उस व्यक्ति पर अदालत में आक्षेप नहीं लगा सकते जो अदालत में मौजूद नहीं हैं। आप तीन कदम आगे जाकर सिर्फ इसलिए टिपण्णी नहीं कर सकते क्योंकि अमित शाह एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति हैं।

    रोहतगी दवे से : आप कहना क्या चाहते हैं? चार स्वतंत्र जजों ने पुलिस से बात की है। उनके बयान भी यहाँ हैं जिसमें निष्कर्षतः कहा गया है कि जज की मौत भारी हृदयाघात के कारण हुआ।

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ दवे से : देखिए, हमारे सामने रिकॉर्ड है। हम दूसरे उन रिकार्ड्स को भी देखेंगे जिसके बारे में आपका कहना है कि आपने आरटीआई के माध्यम से प्राप्त किया है ताकि वास्तव में क्या हुआ इसके बारे में हम सुसंगत रूप से समझ सकें।

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ : अगर जिला न्यायालय का कोई जज मर गया है और ऐसी बहुत सारी मीडिया रिपोर्ट हैं जिनमें इसकी जांच की मांग की गई है, हमसे इस मामले को देखने और हस्तक्षेप की उम्मीद की गई है, तो हमारे लिए यह जांच करने लायक एक गंभीर मामला हो जाता है... पर हम सिर्फ मीडिया रिपोर्ट के आधार पर ही आगे नहीं बढना चाहते। हमें इस मामले को उद्देश्यपरक होकर देखना होगा और हम आपको इस बात का आश्वासन देते हैं। वैसे भी, हम एक जज की मौत की जांच कर रहे हैं। कृपया इस तरह की टिपण्णी उन लोगों के बारे में नहीं कीजिये जो कि कई पक्षकारों की पैरवी कर रहे हैं...आप अपने विवेक से काम लें...”

    जहाँ तक दस्तावेजों की बात है, हमारे पास उन जजों के बयान हैं जो जज से सम्बद्ध थे...अखबारों और पत्रिकाओं में छपे रिपोर्ट्स...आइए हम इनकी निष्पक्षतापूर्वक जांच करें और यह काम सहयोग की भावना से करें...तभी जाकर हम इसकी जड़ तक पहुँच पाएंगे।

    साल्वे : मैं दूसरे पक्ष के अपने सहयोगियों पर विश्वास करता हूँ। हम उन्हें वे सारे दस्तावेज सील कवर में दे सकते हैं जो वे मांगेंगे। लेकिन उन्हें इसे गोपनीय रखना होगा। यह संवेदनशील मामला है।

    इंदिरा जयसिंह (दवे के समर्थन में और एक अलग हस्तक्षेपकर्ता के रूप में) : यह प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंध जैसा है। इस मुद्दे पर मामले को प्रकाशित करने और इस पर बहस की अनुमति होनी चाहिए।

    साल्वे : ये संवेदनशील मामले हैं।

    दवे : क्यों नहीं … थरूर और चिदंबरम के मामले पर मीडिया में व्यापक बहस की जा रही है।

    न्यायमूर्ति खानविलकर : न्यायालय के विचाराधीन मामला है इसलिए? अगर मामला न्यायालय के विचाराधीन है तो आप मीडिया में इस पर बहस कैसे कर सकते हैं?

    दवे : हम बहस करेंगे। महोदय आप देश को चर्चा करने से नहीं रोक सकते...यह कैसे संभव हो सकता है...अगर मामला न्यायालय के विचाराधीन है तो भी हम इसकी चर्चा करेंगे।

    जयसिंह : अगर कोई रोक आदेश लगता है तो मैं उसका विरोध करूंगी। दो दिन पहले पद्मावत मामले में, माननीय न्यायाधीश ने अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी का हवाला देते हुए राज्य द्वारा इस पर प्रतिबन्ध को रद्द कर दिया था।

    मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा गुस्से में जयसिंह से : मैंने एक शब्द भी नहीं बोला है। क्या मैंने कोई रोक आदेश जारी किया है? हम सिर्फ इस मामले की चर्चा कर रहे हैं। आप निष्कर्ष निकाल रही हैं!!!! ऐसे नहीं चलेगा। आप माफी मांगिये...कम से कम सॉरी कहिये। बिनाशर्त क्षमा याचना और आपको अपनी बात वापस लेनी होगी।

    जयसिंह : मैं अपनी टिपण्णी वापस ले रही हूँ। मैं माफी मांगती हूँ। सॉरी।

    न्यायमूर्ति खानविलकर दवे से : आप उत्तेजित क्यों हो जाते, गुस्सा क्यों?

    दवे : यह सब सिर्फ एक व्यक्ति को बचाने के लिए किया जा रहा है – अमित शाह। हाँ...अभी तक यह एक स्वाभाविक मौत है। पर मौत की परिस्थिति की जांच की जरूरत है।

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ : हाँ, हमने कहा है कि हम ऐसा करेंगे ... पर इस तरह लोगों पर आक्षेप नहीं लगाइए।

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