विधि आयोग की 266 वीं रिपोर्ट में दिए अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन कानूनी पेशे को आपातकाल की अंधेरी छाया में धकेलेंगे : BCI उप-समिति
LiveLaw News Network
29 Jan 2018 9:48 PM IST
अधिवक्ता अधिनियम 1961 के संशोधन को लेकर भारतीय विधि आयोग की 266 वीं रिपोर्ट का अध्ययन करने और कानूनी पेशे के नियमन के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा गठित उप-समिति ने बीसीआई को अपनी रिपोर्ट देते हुए कहा है कि रिपोर्ट में गैर-लोकतांत्रिक परिवर्तन प्रस्तावित हैं जोकि कानूनी पेशे को फिर से आपातकाल की अंधेरी छाया में वापस खीचेंगे।
इस उप-समिति में संयोजक जे डी जयभवे और सदस्य शिरीष मेहरोत्रा, अमित के वैद्य, असीम पंड्या, दीपेन दवे, जितेंद्र शर्मा, कीर्ति उप्पल और राजीव शरण शामिल हैं।
उप-कमेटी ने विधि आयोग की उस रिपोर्ट पर विचार करते हुए पूरे देश की बार एसोसिएशनों से प्राप्त विभिन्न सुझावों पर विचार किया जिसमें अधिवक्ता अधिनियम में हड़ताल, चुनावों पर नामांकन आदि के नियमों में व्यापक बदलाव की सिफारिश की गई है।
विधि आयोग की रिपोर्ट में जो मामला है उसे महिपाल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश का नाम दिया गया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी पेशे के लिए नियम तैयार करने को कहा था।
उप-समिति ने इस फैसले पर भी विचार किया और न्यायपालिका के विभिन्न हितधारकों के विचारों पर भी गौर किया जिसमें वादी, वकील, जज, कर्मचारियों और यहां तक कि सामान्य समाज की धारणा भी शामिल थी।
रिपोर्ट में दिए गए तर्क से यह संकेत मिलता है कि उप-समिति इसे लेकर दृढ है कि राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया की लोकतांत्रिक संरचना से छेडछाड नहीं की जा सकती और बार काउंसिल की स्थिति को उल्टा करने के लिए एक प्रतिगामी कदम नहीं उठाया जा सकता जोकि संविधान को अपनाने से पहले से ही मौजूद है।
उप-समिति ने कहा है, "देश के 17 लाख अधिवक्ताओं की ओर से रिपोर्ट संख्या 266 में प्रस्तावित संशोधन को लेकर मजबूत विरोध दर्ज कराना होगा जिसके तहत बार काउंसिल की लोकतांत्रिक कार्यवाही को वापस ले लिया गया है और इसकी बजाय नामांकन के बुनियादी सिद्धांतों पर गैर-लोकतांत्रिक कार्य किया गया है।
उप समिति ने उस कानून को संदर्भित किया है जिस पर विधि आयोग ने भरोसा जताया है
यानी "नामांकन प्रत्यक्ष नियंत्रण को इंगित करता है और चुनाव में अप्रभावी और अप्रत्यक्ष नियंत्रण का संकेत मिलता है" और सुझाव दिए गए हैं जिनमें से अधिकांश नामित सदस्य राज्य बार काउंसिल और ऑल इंडिया बार काउंसिल के निर्वाचित सदस्यों द्वारा प्रस्तावित हैं ।
उप-समिति ने नामांकन के सिद्धांत का विरोध करने के लिए "सभी संभव प्रयास" किए, और कहा कि ये "न केवल लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है बल्कि अच्छे प्रशासन के खिलाफ भी है।”
इसमें यह भी बताया गया है कि 1976 में आपातकाल की अंधेरी छाया में केन्द्र द्वारा कुछ संशोधनों का प्रस्ताव दिया गया था जिसके कारण बार काउंसिल की लोकतांत्रिक संरचना से छेडछाड करने का प्रयास किया गया था। ये संशोधन 2 साल तक भी नहीं चल पाए और आपातकाल के तुरंत बाद वापस ले लिए गए थे।
रिपोर्ट में कहा: "लोकतंत्र की इस तरह की अंधेरी छाया की पृष्ठभूमि में बार काउंसिल के कामकाज पर विचार करने के लिए विधि आयोग को रेफरेंस भेजा गया था।
इस संदर्भ में भारतीय विधि आयोग की 75 वीं रिपोर्ट जस्टिस एचआर खन्ना के अधीन तैयार की गई थी जिसमें स्वतंत्रता की वास्तविक भावना थी और स्वशासन के सिद्धांत पर बार काउंसिल के कार्य में स्वायत्ता को दृढ़ता से बनाए रखा गया था।
" भारतीय विधि आयोग द्वारा रिपोर्ट 266 तैयार करते समय पूरी तरह से उपेक्षा की गई है और आपातकाल के वक्त की तरह अधिवक्ता अधिनियम में गैर-लोकतांत्रिक सुधारों के सुझाव देने की कोशिश की गई है जिससे कानूनी पेशे की स्थिति सेवानिवृत्त जजों, सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और सरकार के माध्यम से एक नियंत्रित प्रणाली के तहत पूरी तरह से अंधेरी छाया में होगी।