2008 मालेगांव बम धमाका : सुप्रीम कोर्ट ने कर्नल पुरोहित की याचिका पर NIA और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा
LiveLaw News Network
29 Jan 2018 12:08 PM IST
2008 में मालेगांव बम विस्फोट के आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस ए एम सपरे की बेंच ने NIA और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। बेंच ने कहा है कि चार हफ्ते में जवाब दाखिल करें।
दरअसल 2008 में मालेगांव बम विस्फोट के मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा लिए गए संज्ञान को खारिज करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपनी अपील में कर्नल पुरोहित ने ग्रेटर बॉम्बे की राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत द्वारा लिए गए संज्ञान को इस आधार पर रद्द करने की मांग की है याचिकाकर्ता के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों के तहत शुरू किए गए ट्रायल के लिए वैध स्वीकृति अधिनियम की धारा 45 (1) और (2) द्वारा अनिवार्य है। इससे पहले हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि ट्रायल के दौरान स्वीकृति के मुद्दे का निर्णय लिया जा सकता है।
उन्होंने कहा है कि यह कानून तय किया गया है कि जब बचाव का अधिकार या सरंक्षण आरोपी के पक्ष में प्रदान किया जाता है, तो उसके अनुपालन को सख्ती से समझना चाहिए व तय कानून को अपनाया जाना चाहिए। संज्ञान से पहले वैध मंजूरी का अभाव सिर्फ तकनीकी दोष नहीं है। इसलिए एक वैध मंजूरी के अभाव में अभियोजन को जारी रखना कानून की दृष्टि से सही नहीं है।
याचिका में उन्होंने ये भी कहा है कि अभियुक्त के खिलाफ सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के बिना ट्रायल चलाकर तनाव और आघात के अलावा कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और ये कानून का दुरुपयोग होगा।
कर्नल पुरोहित ने कहा है कि जब पहले मंजूरी जारी की गई थी, तो ये स्पष्ट था कि स्वीकृति की तारीख पर और न ही संज्ञान की तिथि तक अस्तित्व में कोई समीक्षा प्राधिकारी था। इस प्रकार इसके तहत अभियोजन के लिए मंजूरी के स्वीकृति नियम धारा 45 (2) के अनिवार्य प्रावधानों के अनुपालन के लिए वैध नहीं है । , इन परिस्थितियों में कर्नल पुरोहित ने 18.12.2017 के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जिसने ट्रायल कोर्ट के संज्ञान लेने के वक्त वैध मंजूरी होने ना होने पर विचार करने से इंकार कर दिया था।