निगम का कानूनी सलाहकार वकील के रूप में नामांकित होने के योग्य है ? सुप्रीम कोर्ट तय करेगा [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

28 Jan 2018 7:48 AM GMT

  • निगम का कानूनी सलाहकार वकील के रूप में नामांकित होने के योग्य है ? सुप्रीम कोर्ट तय करेगा [आर्डर पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर विचार करने के लिए तैयार हो गया है कि किसी निगम का कानूनी सलाहकार एक वकील के रूप में नामांकित होने के योग्य है या नहीं।

    सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में गुजरात हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई है  जिसने एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा था कि एक कानून स्नातक जो पूर्णकालिक नौकरी की प्रकृति में एक अनुबंध के साथ किसी निगम के साथ एक कानूनी परामर्शदाता के रूप में काम कर रहा है, कानून का अभ्यास करने के लिए एक वकील के रूप में नामांकित होने के योग्य नहीं है।

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम.बी. लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता ने इस याचिका पर नोटिस जारी कर  8 मार्च तक जवाब मांगा है।

    "व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने वाले याचिकाकर्ता का कहना है कि वह गुजरात औद्योगिक विकास निगम का कर्मचारी नहीं है और इसलिए वह एक वकील के रूप में नामांकित होने का हकदार है। 8 मार्च, 2018 के लिए नोटिस जारी किया जाता है।”

     जलपा जो गुजरात औद्योगिक विकास निगम (जीआईडीसी) में कानूनी परामर्शदाता के रूप में काम कर रही थी, ने हाईकोर्ट में कहा था कि निगम के साथ उनकी संबंधता केवल एक अनुबंध है और यह पूर्णकालिक रोजगार नहीं है जो एक वकील के रूप में अभ्यास करने पर रोक लगाता है।

    हाईकोर्ट की एकल पीठ ने बार काउंसिल के उस स्टैंड का समर्थन करते हुए उसकी याचिका को खारिज कर दिया था कि याचिकाकर्ता के निगम के साथ अनुबंध की प्रकृति और कानूनी सहायक के रूप में संबंधता की परिस्थिति को देखते हुए उसे रोल में नामांकन करने के लिए अनुमति नहीं दी जा सकती।

    डिवीजन बेंच के सामने दायर याचिका में एक नई प्रार्थना दी गई कि आवेदक जो कानूनी विभाग में अन्य संबंधित विभागों के कानूनी विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं, को सिविल जज के पद के लिए एक योग्य उम्मीदवार के रूप में माना जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया था कि उन्हें भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि न्यायालयों या अन्य संबद्ध विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों को ऐसा करने की अनुमति है।

    हालांकि हाईकोर्ट इस दलील के साथ सहमत नहीं था, बेंच ने कहा, "यह विवाद में नहीं है कि याचिकाकर्ता को कार्यालय में 11:00 बजे से शाम 5 बजे तक होना चाहिए, जो काम के मानक घंटे हैं और इसलिए उसी को पूर्णकालिक रोजगार के रूप में माना जा सकता है। अगर हम 'वेतन' के शब्दकोश अर्थ को समझे तो यह एक नियोक्ता द्वारा काम के बदले एक कर्मचारी को किया जाने वाला नियमित भुगतान है।”

     कोर्ट ने यह भी मान लिया था कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियमों के नियम 49 में इस्तेमाल किए गए 'पूर्णकालिक' शब्द को "पूर्णकालिक कार्यालय मानक संख्या घंटे" के रूप में माना जाना चाहिए। इसके बाद हाईकोर्ट ने यह नोट किया कि जलपा और जीआईडीसी के बीच समझौते की एक शर्त थी कि उसे कार्यालय में 11 बजे से शाम 5 बजे तक होना चाहिए। इसका मतलब है कि वह जीआईडीसी के साथ पूर्णकालिक रोजगार में थी।


     
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