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पद्मावत को लेकर राज्यों की संशोधन याचिका खारिज, SC ने फिर कहा, आदेश का पालन हो

LiveLaw News Network
23 Jan 2018 7:51 AM GMT
पद्मावत को लेकर राज्यों की संशोधन याचिका खारिज, SC ने फिर कहा, आदेश का पालन हो
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को साफ किया कि वो पद्मावती को लेकर अपने आदेशों में संशोधन नहीं करेगा। 25 जनवरी को फिल्म देश भर में रिलीज होगी।

 इसके साथ ही चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने राजस्थान, मध्य प्रदेश सरकार और श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी  सेना व अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की याचिकाओं को खारिज कर दिया।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि कोर्ट ने आदेश जारी किया है और सभी राज्यों को आदेशों का पालन करना होगा। ऐसे हालात पैदा नहीं होने चाहिए कि लोग कानून व्यवस्था का हवाला देकर फिल्म पर बैन की मांग करें। सेंसर बोर्ड द्वारा सर्टिफिकेट दिए जाने के बाद फिल्म को प्रदर्शित करने से रोका नहीं जा सकता।

श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना औऱ अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की ओर से कहा गया कि फिल्म इतिहास से छेडछाड करती है लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि इतिहासकारों ने ये फिल्म देखी है और फिल्म में कहा भी गया है कि इतिहास पर आधारित नहीं है।

वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने करणी सेना के वकील से कहा, “आप दिक्कत पैदा करते हैं और फिर कोर्ट आते हैं।”

 सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की अर्जी पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार को  इस मामले में कोई ठोस कारण लेकर आना चाहिए था। ऐसी याचिका पर क्यों सुनवाई की जाए?  कोर्ट ने आदेश जारी किया है, सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट दिया है, इसे समझना चाहिए।

दरअसल सोमवार को मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 18 जनवरी के आदेशों में संशोधन करने की मांग की थी।

राज्य सरकारों का कहना था कि इस फिल्म के चलते राज्य में कानून व्यवस्था बिगड सकती है और ऐसे में राज्य के एक्ट के मुताबिक राज्य सरकार को ये अधिकार है कि वो फिल्म के प्रदर्शन पर बैन लगा सके।

मध्य प्रदेश की ओर से कहा गया कि राज्य का कर्तव्य है कि वो कानून व्यवस्था बनाए रखे। पहले ही इस संबंध में स्कूल व सिनेमाघर में हिंसा की दो घटनाएं हो चुकी हैं। इस फिल्म से राज्य में शांति भंग होने की संभावना है। राज्य के मध्य प्रदेश सिनेमा ( नियंत्रण) एक्ट 1952 के तहत अपने नागरिकों को किसी भी हालात से बचाने के लिए किसी फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा सकता है। इसलिए ये देखते हुए सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में संशोधन करे।

गौरतलब है कि 18 जनवरी को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार के रिलीज पर बैन के नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी थी।  बेंच ने कहा कि अन्य कोई भी राज्य ऐसा आदेश जारी ना करे।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि  जब सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट जारी किया है तो राज्य सरकार कैसे रिलीज पर बैन लगा सकते हैं। ये अभिव्यक्ति की आजादी के तहत है। उन्होंने कहा कि जब बैंडिट क्वीन रिलीज हो सकती है तो ये फिल्म क्यों नहीं। फिल्म बॉक्स आफिस पर बम साबित हो या लोग इसे ना देखने जाएं, लेकिन राज्य अपनी मशीनरी का इस्तेमाल कर इसे बैन नहीं कर सकता। संसद ने सेंसर बोर्ड को विधान के तहत अधिकार दिया है। राज्य इस तरह लॉ एंड ऑर्डर का हवाला देकर इस पर रोक नहीं लगा सकते। कानून व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है और जरूरत पडने पर सुरक्षा मुहैया कराई जाए। कोर्ट ने चारों राज्यों को नोटिस जारी किया है और 26 मार्च को अगली सुनवाई होगी।

फिल्म निर्माता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि CBFC ने देशभर में फिल्म के प्रदर्शन के लिए सर्टिफिकेट दिया है। ऐसे में राज्यों का पाबन्दी लगाना सिनेमेटोग्राफी एक्ट के तहत संघीय ढांचे को तबाह करना है। राज्यों को ऐसा कोई हक नहीं। ये अधिकार केंद्र का है। फ़िल्म के जारी होने से पहले ही पाबन्दी का ऐलान करना गलत है। हरीश साल्वे ने कहा कि किसी दिन मैं दलील भी दूं कि कलाकारों को इतिहास से छेड़छाड़ का हक भी है। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने भी दलीलें दी।

हालांकि इससे पहले गुजरात और हरियाणा सरकार की तरफ से पेश हुए ASG तुषार मेहता ने कहा फिल्म के नाम पर इतिहास से छेडछाड नहीं की जा सकती। आप इसकी आड़ में महात्मा गांधी को व्हिस्की के घूंट भरते हुए नहीं दिखा सकते। वो इस संबंध में खुफिया विभाग की रिपोर्ट पेश कर सकते हैं।

वहीं फिल्म निर्मातों ने अपनी याचिका में इस बैन को गैरकानूनी बताया था। उनका कहना है कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म को प्रमाणपत्र जारी किया है। नियमों के मुताबिक अगर किसी इलाके में कानून व्यवस्था बिगडती हो तो ही इस तरह का बैन लगाया जा सकता है। लेकिन राज्य सरकार इस तरह पूरे राज्य में बैन नहीं लगा सकती। राज्य सरकार को इस तरह का अधिकार नहीं है।

गौरतलब है कि इस फिल्म पर पहले से ही विवाद रहा है। देश के कई हिस्सों में इसे लेकर धरना प्रदर्शन हुआ और फिर सेंसर बोर्ड ने फिल्म का नाम बदलने व कुछ संशोधन के बाद इसे हरी झंडी दी।

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