राजनीतिक शरण माँगना भारत की संप्रभुता के खिलाफ नहीं;पासपोर्ट नहीं देने का यह आधार नहीं हो सकता: दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
16 Jan 2018 2:50 PM IST
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि भारतीय पासपोर्ट पर किसी देश की यात्रा पर जाना और फिर बाद में उस देश में राजनीतिक शरण मांगना “भारत की संप्रभुता और अखंडता के प्रतिकूल” नहीं है। इसलिए पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 6(1)(a) के अधीन उस व्यक्ति को पासपोर्ट नहीं देना उचित नहीं है।
न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट और न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की पीठ ने इस मामले के बारे में कहा, “...किसी देश की संप्रभुता और अखंडता एक मजबूत परिकल्पना है और यहाँ-वहाँ किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत कार्रवाई जैसे किसी दूसरे देश में राजनीतिक शरण माँगने जैसे कार्यों से अप्रभावित रहता है; ...सिर्फ किसी दूसरे देश में शरण मांगना उनको पासपोर्ट देने से मना करने का आधार नहीं हो सकता”।
पीठ ने कहा, “अमूमन किसी दूसरे देश में राजनीतिक शरण ऐसे लोग मांगते हैं जिनको अपने देश में सताए जाने का डर होता है, और इसलिए वे अपने देश में वापस नहीं आना चाहते। इस तरह की कार्रवाई से भारत का नाम बदनाम हो सकता है, यह देखते हुए कि राजनीतिक शरण नहीं मिलने पर लोग पासपोर्ट लेना चाहते हैं और इस तरह के मामलों में हाल के वर्षों में इजाफा हुआ है जो कि इस बारे में अपीलकर्ता द्वारा पेश किए गए आंकड़ों से साबित होता है।
“हालांकि इन मामलों में, राजनीतिक शरण लेने का प्रयास निंदनीय है पर यह पासपोर्ट नहीं देने का आधार नहीं हो सकता”।
पीठ ने यह बात भारत सरकार द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट के एकल जज के निर्णय के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। एकल जज ने तीन लोगों, सतनाम सिंह, अमरदीप सिंह और वरिंदर सिंह द्वारा दायर याचिका पर अपना निर्णय दिया था।
इन तीनों ही मामलों में तथ्य सामान हैं।
सतनाम सिंह का मामला इस तरह से है - वह 8 अप्रैल 2013 को वैंकूवर (कनाडा) स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास द्वारा जारी इमरजेंसी सर्टिफिकेट पर भारत आया। वापस आने पर उसने 8 जुलाई 2013 को जालंधर के पासपोर्ट कार्यालय में पासपोर्ट के लिए आवेदन किया। पर उसका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया और उसने उसका नाम पांच साल के लिए “पूर्व स्वीकृति श्रेणी” में डाल दिया। ऐसा इस आधार पर किया गया कि उसने कनाडा सरकार से राजनीतिक शरण माँगी थी। हालांकि, उसको राजनीतिक शरण नहीं मिली।
दिल्ली हाई कोर्ट के एकल जज ने पासपोर्ट कार्यालय की कारवाई को गैरकानूनी करार दिया।
अपनी अपील में केंद्र ने कहा कि एकल जज ने कुलवीर सिंह बनाम भारत सरकार मामले के आधार पर यह निर्णय दिया पर उसने राजनीतिक शरण माँगने के कारण विदेश में हुई भारत की किरकिरी पर ध्यान नहीं दिया।
कुलवीर सिंह के मामले में कहा गया था कि हो सकता है कि उसके राजनीतिक शरण माँगने से देश का नाम बदनाम हुआ पर इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि वह देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ है।
केंद्र के वकील ने कहा कि राजनीतिक शरण माँगने का अर्थ है कि आवेदक किसी अन्य देश के संविधान और वहाँ के क़ानून की शपथ लेगा और अपने मूल देश के संविधान और क़ानून को त्याग देगा। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि उसने जिस देश में वह पैदा हुआ उस देश, यानी भारत के प्रति वफादारी नहीं दिखाई।
यह कहा गया कि ऐसा कोई तथ्य नहीं है कि तीनों में से किसी आवेदक ने किसी भी समय किसी समूह के साथ मिलकर ऐसा कोई काम किया जिससे भारत की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती मिली हो जिसके आधार पर केंद्र उनको पासपोर्ट जारी करने से रोक दे।
कोर्ट ने पासपोर्ट अधिनियम में अनुच्छेद 19 के खंड 2, 3, और 4 का जिक्र किया जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध की बात करता है।
कोर्ट ने कहा, “इसको (शब्द) संविधान के 16वें संशोधन अधिनियम 1963 द्वारा जोड़ा गया ताकि देश में दक्षिण के डीएमके और कशमीर के प्लेबिसित फ्रंट जैसे संगठनों की पृथकतावादी गतिविधियों से निपटा जा सके...इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बनाया गया जो कि संघ की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता पर आक्रमण करते हैं”।
पासपोर्ट नियम, 1980 में उन नियमों का जिक्र है जिसके आधार पर पासपोर्ट जारी किए जाते हैं। पासपोर्ट के लिए आवेदन फॉर्म के खंड 19 में एक स्वतः घोषणा करनी होती है कि आवेदक कोर्ट ने कहा, “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को स्वीकार करता है। जबतक कोई व्यक्ति यह घोषणा नहीं करता तब तक उसको पासपोर्ट जारी नहीं किया जा सकता। यहाँ पर संप्रभुता, एकता और अखंडता जैसे शब्दों का अर्थ अवश्य ही वही है जैसा कि अधिनियम में है और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक/याचिकाकर्ता ने राजनीतिक शरण मांगकर इसका उल्लंघन किया है।”