विदेशों में सजा ए मौत के क्या- क्या तरीके ? : SC ने केंद्र से पूछा, केंद्र ने कहा जहर के इंजेक्शन कारगर नहीं

LiveLaw News Network

9 Jan 2018 2:22 PM GMT

  • विदेशों में सजा ए मौत के क्या- क्या तरीके ? : SC ने केंद्र से पूछा, केंद्र ने कहा जहर के इंजेक्शन कारगर नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि दूसरे देशों में सजा ए मौत देने के क्या क्या तरीके हैं ?

    चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ये इसके लिए केंद्र सरकार को चार हफ्ते का वक्त दिया है। केंद्र सरकार ने इसके लिए वक्त मांगा था।

    वहीं केंद्र की ओर से पेश ASG पिंकी आनंद ने मौखिक तौर पर कहा कि फांसी के जरिए मौत की सज सही है क्योंकि जहर के इंजेक्शन का तरीका कारगर नहीं है।

    हालांकि सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि कोर्ट ये तय नहीं कर सकता कि  सजा ए मौत का तरीका क्या हो लेकिन ये जानकारी चाहिए कि दूसरे देशों में इसके लिए क्या तरीके हैं ?

    दरअसल क्या फांसी की सजा का कोई विकल्प हो सकता है ? 11 नवंबर 2017 को इस मुद्दे पर अब अपना जवाब रखने के लिए केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने 6 हफ्ते का और वक्त दे दिया था।

    दरअसल 6 अक्तूबर 2017 को  मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पूछा था कि मौत की सजा में क्या फांसी के अलावा कोई अन्य तरीका भी हो सकता है ? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा था और अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल को कोर्ट की मदद करने के लिए कहा था।

    सुनवाई के दौरान  सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि विधायिका द्वारा सजा ए मौत के मामले में फांसी के अलावा कोई दूसरा तरीका भी तलाशा जा सकता है जिसमें मौत “पीस” में हो “ पेन”में नहीं। सदियों से ये कहा जाता रहा है कि पीडारहित मौत की कोई बराबरी नहीं है। जस्टिस मिश्रा ने कहा था कि यही माना जाता रहा है हमारा संविधान दयालु है जो जीवन की निर्मलता के सिद्घांत को मानता आया है। ऐसे में विज्ञान में आई तेजी के चलते मौत के दूसरे तरीके को तलाशा जाना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि वो मौत की सजा पर बहस नहीं कर रहे हैं।

    हालांकि बेंच में शामिल जस्टिस चंद्रचूड ने सुनवाई के दौरान इंजेक्शन द्वारा दी जाने वाली मौत की सजा पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अमेरिका में इंजेक्शन की आलोचना की जा रही है।

    दरअसल " जीवन के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है" ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपने तरह की पहली याचिका दाखिल कर कहा गया है कि फांसी की जगह मौत की सज़ा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाना चाहिए। फांसी को मौत का सबसे दर्दनाक और बर्बर तरीका बताते हुए जहर का इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, गैस चैंबर या बिजली के झटके देने जैसी सजा देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते है जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल कुछ मिनट में।

    वकील ऋषि मल्होत्रा द्वारा दाखिल याचिका में ज्ञान कौर बनाम पंजाब ( 1996) में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया है कि जीवन जीने के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है। यानी जब भी कोई व्यक्ति मरे तो मरने की प्रक्रिया भी सम्मानजनक होनी चाहिए।

    वहीं दूसरे मामले दीना बनाम भारत संघ (1983) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि मौत की सजा का तरीका ऐसा होना चाहिए जो जल्दी से मौत हो जाए और ये तरीका आसान भी होना चाहिए ताकि ये कैदी की मार्मिकता को और ना बढाए। कोर्ट ने कहा था कि ये तरीका ऐसा होना चाहिए जिसमें जल्द मौत हो जाए और इसमें अंग-भंग ना हो।

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