आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को पुलिस में नौकरी नहीं देने के जांच समिति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
9 Jan 2018 3:45 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पुलिस में नौकरी चाहने वाले लोगों को कोर्ट से बरी किये जाने के बावजूद उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि की वजह से यह नौकरी नहीं देने को सही ठराया।
न्यायमूर्ति आर बनुमथी और न्यायमूर्ति यूयू ललित ने अपने फैसले में कहा, “यह निर्णय करते हुए कि कोई व्यक्ति जो आपराधिक मामलों में संलग्न रहा है भले ही वह कोर्ट द्वारा बरी कर दिया गया है, उसे पुलिस में किसी पद पर नियुक्त किया जा सकता है कि नहीं, उसका बरी होना इस मामले में बाइज्जत बरी होना है या गवाहों के पलट जाने के कारण उसको संदेह का लाभ मिला है, इन बातों की जांच की जिम्मेदारी जांच समिति की है और वही इस बारे में निर्णय ले सकता है कि संबंधित व्यक्ति नियुक्त के काबिल है कि नहीं...
...इस तरह की जांच का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सिर्फ सच्चरित्र लोग ही पुलिस सेवा में जाएं। कोर्ट जांच समिति के फैसले को बदल नहीं सकता।”
प्रतिवादियों ने चंडीगढ़ पुलिस में सिपाही के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था और आपराधिक मामलों में अपनी संलिप्तता का बाकायदा जिक्र किया था। उन पर धारा 323 के तहत आपराधिक मामले चल चुके हैं।
दिशानिर्देश के अनुसार, इनके मामले को जांच समिति को सौप दिया गया जिसने यह कहा कि सिपाही के पद पर इनकी भर्ती नहीं हो सकती। केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण ने इस फैसले को बदल दिया और समिति को इन लोगों को नियुक्त करने पर विचार करने को कहा। हाई कोर्ट ने भी अधिकरण के फैसले को बदलने से इनकार कर दिया।
राज्य ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इसको चुनौती दी। उसने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रतिवादियों को “बाइज्जत बरी” नहीं किया गया और उनको सिर्फ संदेह का लाभ दिया गया। उसने आगे कहा कि कोर्ट जांच समिति के खिलाफ फैसला देकर अपने ही फैसले के खिलाफ नहीं जा सकता।
शुरू में कोर्ट ने अपने फैसले के लिए पुलिस आयुक्त, नई दिल्ली और अन्य बनाम मेहर सिंह (2013) 7 SCC 685 के मामले में फैसले को ध्यान में रखा।
कोर्ट ने कहा कि जांच समिति ने प्रतिवादियों के मामले की बहुत ही सूक्ष्मता से जांच की। प्रतिवादियों की दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, “...पुलिस बल में सच्चरित्रता पर काफी जोर दिया जाता है। जैसे कि मेहर सिंह के मामले में जांच समिति के फैसले को ही अंतिम माना जाना चाहिए बशर्ते यह दुर्भावना से प्रेरित न हो। वर्तमान मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि जांच समिति का फैसला दुर्भावना से प्रेरित है। जांच समिति के इस फैसले में कि प्रतिवादी पुलिस बल में नियुक्ति के योग्य नहीं हैं, हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।”