कोई सार्वजनिक कार्य करने वाला आम चैरिटेबल ट्रस्ट सार्वजनिक संस्था की श्रेणी में आएगा या नहीं यह निर्णय दिल्ली हाई कोर्ट की वृहत पीठ करेगी [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
26 Dec 2017 5:00 PM IST
दिल्ली हाई कोर्ट के एकल पीठ ने शुक्रवार को दिल्ली रेंट कंट्रोल अधिनियम, 1958 की धारा 14(1)(e) और 22 के बीच संबंधों से जुड़े कई तरह के प्रश्नों पर निर्णय के लिए इसे एक वृहत पीठ को सौंप दिया है।
अधिनियम की धारा 14(1)(e) के तहत अगर कोई मकान मालिक यह दिखाता है कि उसके पास कोई और उपयुक्त आवासीय सुविधा उपलब्ध नहीं है और जिस भवन को उसने किराए पर लगाया है वह उसे अपने प्रयोग के लिए चाहिए तो उस स्थिति में वह किराएदार को हटाने के लिए उचित अधिकारी को आवेदन कर सकता है। धारा 22 भी यह कहता है कि मकान मालिक अगर खुद उस किराए पर लगाए गए मकान का प्रयोग करना चाहता है तो यह किराएदार को बेदखल करने का आधार हो सकता है। पर जहां धारा 14(1)(e) “मकान मालिक” की श्रेणी को सीमित नहीं करता वहीं धारा 22, जहाँ तक इसकी भाषा की बात है, मकान मालिक से उसका तात्पर्य सिर्फ किसी कंपनी या कोई कॉर्पोरेट निकाय या फिर कोई स्थानीय प्राधिकरण या फिर सार्वजनिक संस्थान से है।
इसके प्रावधानों का वर्णन करते हुए न्यायमूर्ति राजीव सहाय ने कहा कि संदेह सवाभाविक लोगों और कानूनी लोगों के अधिकारों को लेकर है कि दो में से किस प्रावधान की मदद ली जाए।
कोर्ट ने इसके बाद पिछले कई फैसलों का जिक्र किया और अदालत द्वारा केनरा बैंक बनाम टीटी लिमिटेड (2014) 214 डीएलटी 526 मामले में अपनाए गए दृष्टिकोण पर गौर किया जिसमें यह कहा गया था कि धारा 22 के प्रावधान किसी कंपनी पर लागू होंगे कि नहीं जब वह किराए पर लगाए गए परिसर को अपने कर्मचारियों के लिए प्रयोग करना चाहती है।
कोर्ट ने कहा कि याचिका कोर्ट में मान्य नहीं हो सकती इसके बावजूद कि मदन मोहन लाल श्री राम प्राइवेट लिमिटेड बनाम पी टंडन (1981) 2 डीआरजे 308 मामले में कोर्ट ने जब भी कोई मकान मालिक जो कि कंपनी है किराए पर लगाए गए परिसर को अगर अपने कर्मचारियों के प्रयोग के लिए चाहती है तो उस स्थिति में सिर्फ धारा 22 ही लागू होगी।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि वर्तमान मामले का दो तरह के मकान मालिकों से वास्ता है - वे कानूनी प्रतिष्ठान हैं उदाहरण के लिए ट्रस्ट और सोसाइटीज। कोर्ट ने कहा, “धारा 22 सिर्फ ऐसे मकान मालिक की जिक्र करता है जो कि कंपनी या कोई अन्य कॉर्पोरेट निकाय या कोई स्थानीय प्राधिकरण है या सार्वजनिक संस्थान। यद्यपि एक ट्रस्ट कोई “अन्य कॉर्पोरेट निकाय” नहीं हो सकता और इसलिए धारा 22 उस पर लागू नहीं हो सकता जबकि एक सोसाइटी एक “अन्य कॉर्पोरेट निकाय” के की श्रेणी में आ सकती है। इस संदर्भ में एक प्रश्न उठता है कि एक सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट जो कि संगठित गतिविधियों में संलग्न हैं, पर जो एक “अन्य कॉर्पोरेट निकाय” नहीं है वह एक सार्वजनिक संस्थान की श्रेणी में आएगा या नहीं।
कोर्ट ने पीठ के लिए जो प्रश्न खड़े किए हैं उनमें से कुछ इस तरह से हैं :
“(1) क्या एक सार्वजनिक चैरिटेबल ट्रस्ट जो कि सार्वजनिक कार्य करते हैं एक सार्वजनिक संस्थान हो सकता है या नहीं।
(2) क्या किसी मंदिर का भगवान जिसके नाम पर परिसंपत्तियां हैं या एक ट्रस्ट या एक सोसाइटी जो कि पूजास्थल का प्रबंधन कर रहा है क्या एक सार्वजनिक संस्थान की श्रेणी में आएगा।
(3) कोई मकान मालिक अगर धारा 22 या धारा 14(1)(e) को चुनता है तो क्या यह किराएदार को घाटा पहुंचा सकता है और अगर हाँ, तो किस हद तक।