SC/ST एक्ट में प्रक्रिया सरंक्षण पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
4 Dec 2017 4:08 PM IST
सुप्रीम कोर्ट अब ये विचार करेगा कि क्या अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों में प्रक्रिया को लेकर संरक्षण दिया जा सकता है ताकि इसका दुरुपयोग ना हो सके।
कोर्ट ने ये टिप्पणी डॉ सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य केस में की। डॉ महाजन ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें उनके खिलाफ दर्ज SC/ST एक्ट की FIR को रद्द करने से इंकार कर दिया गया था।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित ने कहा कि याचिका में सवाल उठाया गया है कि क्या अपने ऑफिशियल कामकाज के दौरान किसी अफसर पर जानबूझकर लगाए गए एकतरफा आरोपों पर उस अफसर पर कार्रवाई की जा सकती है और अगर ये आरोप गलत तरीके से लगाए गए हैं तो फिर इस दुरुपयोग से क्या सरंक्षण उपलब्ध है।
कोर्ट ने आगे टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर आरोपों पर कार्रवाई की जाए और इसके तहत किसी की गिरफ्तारी हो या कानूनी कार्रवाई तो अगर झूठी शिकायत भी हो तो उसके स्वतंत्रता के अधिकार को लेकर गंभीर परिणाम होंगे और ये कानून की चाह नहीं होगी जो पीडित के सरंक्षण के लिए बनाया गया है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि उपरोक्त कहे गई प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 21 के मुताबिक सही हो या फिर इसे लेकर प्रक्रिया सरंक्षण दिया जाए जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों में प्रक्रिया को लेकर संरक्षण दिया जा सकता है ताकि इसका दुरुपयोग ना हो सके।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी, नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई दस जनवरी को होगी।
हाईकोर्ट का विचार
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस सवाल जवाब देते हुए कहा था कि अत्याचार कानून को सिर्फ इसलिए लागू करने से नहीं रोका जा सकता क्योंकि इसक दुरुपयोग हो सकता है। इस तरह तो हर कानून और प्रावधान का दुरुपयोग हो सकता है। सिर्फ किसी सरकारी अफसर को सूचना देना, लेकिन जो झूठी या तुच्छ ना हो और अगर हो भी तो ये सूचना देना धारा 3(1)(ix) के परिणाम की तरह नहीं गिना जाएगा, तो 3(1)(ix) के तहत अपराध और सजा नहीं माना जाएगा।