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मेडिकल कॉलेज प्रवेश घोटाला : सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच की मांग पर फैसला सुरक्षित रखा

न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खान्विलकर की पीठ ने सोमवार को एनजीओ कैम्पेन फॉर जुडिशल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। एनजीओ ने यह याचिका लखनऊ मेडिकल कॉलेज में प्रवेश को लेकर हुए घोटाले में आपराधिक सांठगाँठ और सुप्रीम कोर्ट के एक सिटिंग जज को गैरकानूनी तरीके से संतुष्ट करने के आरोपों की जांच की मांग के लिए दायर किया है।
पिछले 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की वकील कामिनी जायसवाल की इसी तरह की एक याचिका को खारिज कर दिया था।
एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सीजेएआर की पैरवी करते हुए कहा कि, “14 नवंबर के फैसले में एसआईटी के गठन की गंभीर जरूरत पर कोर्ट ने विचार नहीं किया। वर्तमान याचिका इस विनती से दायर किया गया है कि कोर्ट एक अवकाशप्राप्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की अध्यक्षता में एसआईटी गठित करे ताकि कथित आपराधिक सांठगाँठ और घूस देने की आरोप की जांच की जा सके और सीबीआई कोर्ट को निर्देश दे कि वह अब तक जांच के दौरान हुई सारी रिकवरी एसआईटी को सौंप दे।”
भूषण ने आगे कहा कि 19 सितम्बर का एफआईआर जो कि उड़ीसा हाई कोर्ट के जज आईएम कुद्दुसी के खिलाफ दायर की गई थी उसमें पांच निजी व्यक्ति और सात अज्ञात सरकारी अधिकारियों के भी नाम हैं। इससे पहले जो याचिका दायर की गई थी उसका आधार यही था पर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 14 नवंबर के अपने फैसले में ध्यान नहीं दिया।
भूषण की दलील के बाद बेंच ने कहा, “अगर आप 14 नवंबर के फैसले के पैराग्राफ 7 और 8 को देखें तो आपको पता लग जाएगा कि एफआईआर की बातों पर गौर किया गया है। पैराग्राफ 22 में हमने कहा है कि एफआईआर में सुप्रीम कोर्ट के किसी वर्तमान जज का नाम नहीं है और हमें इस पर संदेश जाहिर किया कि कैसे याचिकाकर्ता ने यह समझ लिया कि यह न्यायपालिका के सर्वोच्च अधिकारी के खिलाफ हो सकता है। हमें इस बात पर भी गौर किया है कि सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के खिलाफ बिना मुख्य न्यायाधीश या राष्ट्रपति की अनुमति के एफआईआर दर्ज नहीं हो सकता।
भूषण ने आगे कहा, “कथित एफआईआर न केवल आपराधिक सांठगाँठ का संकेत करता है बल्कि अपने पक्ष में फैसले प्राप्त करने के लिए सारी योजना और इसकी तैयारी का भी पता चलता है और घूस देने के लिए पैसे का भी इंतजाम कर लिया गया था और मेडिकल कॉलेज के मालिक द्वारा बिचौलिए को इसका हस्तांतरण भी लगभग हो चुका था। मैं किसी भी तरह यह नहीं कह रहा हूँ कि सुप्रीम कोर्ट का कोई जज इस मामले में लिप्त है लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इस कोर्ट के बेंच से एक मनमाफिक फैसले लेने की बात थी और निश्चित रूप से इसमें कोर्ट के जज शामिल नहीं थे।”
भूषण ने कहा कि एसआईटी की जरूरत इसलिए बताई जा रही है क्योंकि सीबीआई कार्यपालिका के नियंत्रण के बाहर कोई स्वायत्तशासी संस्था नहीं है और उसकी जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “अगर न्यायपालिका में कोई भ्रष्ट व्यक्ति है तो हैं उसे अवश्य ही दंड मिलना चाहिए। और अगर एफआईआर में निराधार आरोप लगाए गए हैं तो उस स्थिति में संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कारवाई की जानी चाहिए।”
बेंच ने पूछा, क्या सीजेएआर पंजीकृत संस्था है? शपथपत्र में यह क्यों नहीं कहा गया है कि इस संस्था का प्रतिनिधित्व उसके सचिव चेरिल डिसूजा कर रहे हैं?
महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा कि भूषण का यह कहना बनावटी लगता है कि यह याचिका न्यायपालिका की अखंडता की रक्षा के लिए है। यह एफआईआर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचा रहा है
इस मामले की अगली सुनवाई अब शुक्रवार को होनी है।