जयललिता की बेटी होने का दावा करने वाली महिला की DNA टेस्ट की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से किया इंकार
LiveLaw News Network
28 Nov 2017 10:52 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की बेटी होने का दावा करने महिला की याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। महिला ने सुप्रीम कोर्ट से सच्चाई पता लगाने के लिए DNA टेस्ट कराने की मांग की थी।
जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने सोमवार को कहा कि वो इस मामले में सुनवाई नहीं करेंगे। हालांकि कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता कानूनी उपचार ले सकती है।
महिला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में कहा कि ये पहली नजर में मामला बनता है और कोर्ट को सच सामने लाने के लिए DNA टेस्ट कराने के आदेश जारी करने चाहिएं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि चेन्नई में राजनीतिक माहौल को देखते हुए वो इस केस को लेकर मद्रास हाईकोर्ट नहीं जा सकती क्योंकि वहां महिला की जान को खतरा है।
उन्होंने ये भी मांग की कि जयललिता का अंतिम संस्कार रीति रिवाज के तहत किया जाना चाहिए। इसके लिए उनके शव को निकालकर अंतिम संस्कार कराया जाए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इस मामले में दखल नहीं देगा। हालांकि कोर्ट ने इसकी आजादी दी कि वो इस मामले में कानूनी उपचार ले सकती है।
दरअसल बंगलूरू में रहने वाली अमृता नामक महिला ने तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की बेटी होने का दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसे साबित करने के लिए याचिका में DNA टेस्ट कराने की मांग की गई। याचिका में कहा गया कि उसकी परवरिश जयललिता की बहन और उसके पति ने की और उसे इस सच्चाई का पता पिछले साल पांच दिसंबर को जयललिता की मौत के बाद लगा। अमृता ने दावा किया कि वो 14 अगस्त 1980 को मयलापुर में जयललिता के घर पैदा हुई लेकिन समाज के डर और परिवार की गरिमा बनाए रखने के उसके जन्म को गुप्त रखा गया क्योंकि एक धार्मिक और सांस्कृतिक ब्राहमण परिवार से संबंध रखते हैं।
अमृता के साथ उसकी दो रिश्तेदार एलएस ललिता और राजरानी रविंद्रनाथ भी याचिकाकर्ता हैं। दोनों जयललिता की चचेरी बहनें हैं। उन्होंने भी सुप्रीम कोर्ट से मदद मांगी ताकि अमृता साबित कर सके कि वो जयललिता की बेटी है। अमृता ने ये भी मांग की कि जयललिता के शव को मरीना बीच से निकालकर वैष्णव ब्राहमणों की रीतियों के तहत उनका अंतिम संस्कार किया जाए।