क़ानून मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में कहा, जजों के तबादले के लिए उनकी सहमति की जरूरत नहीं

LiveLaw News Network

16 Nov 2017 2:28 PM GMT

  • क़ानून मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में कहा, जजों के तबादले के लिए उनकी सहमति की जरूरत नहीं

    सूचना का अधिकार के तहत एक आवेदन के जवाब में क़ानून मंत्रालय ने कहा है कि किसी जज का तबादला करने के लिए किसी जज की सहमति लेने की जरूरत नहीं है।

    क़ानून और न्याय मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “किसी जज के तबादले के प्रस्ताव पर अमल भारत का मुख्य न्यायाधीश कर सकता है और उनका दृष्टिकोण ही इस मामले में मायने रखता है। इस मामले में पहली बार या उसके बाद के तबादले के लिए उस जज की सहमति प्राप्त करने की जरूरत नहीं है। हर तबादला आम हित को ध्यान में रखकर होता है यानी पूरे देश में बेहतर न्यायिक प्रशासन के संवर्धन के लिए होता है।”

    आरटीआई के माध्यम से यह सूचना यूथ बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (वाईबीएआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सप्रीत सिंह अजमानी ने माँगी थी। अजमानी ने जजों के उनके हाईकोर्ट से तबादले के बारे में केंद्रीय क़ानून एवं न्याय मंत्रालय से यह जानकारी माँगी थी। उन्होंने सहायक न्यायिक अधिकारियों के तबादले जैसे ही दिशानिर्देश हाईकोर्ट के जजों के तबादले को लेकर भी बनाए जाने की मांग की थी।

    इससे पहले जून में वाईबीएआई ने तत्कालीन राष्ट्रपति को भी इस बारे में लिखा था और मांग की थी कि हाईकोर्ट के जजों का तबादला वहाँ किया जाए जहाँ उन्होंने एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस नहीं किया है।

    आवेदन में कहा गया था कि जजों को ऐसे हाईकोर्ट में तबादला करने का परिणाम, जहाँ उन्होंने वर्षों एक एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस किया है, बहुत ही ‘घातक’ होगा। आवेदन के अनुसार, “यह दुर्भाग्यपूर्ण और भेदभावपूर्ण है कि निचली अदालत के जजों या यहाँ तक कि किसी सिपाही को गृह जिला या अपने गृह जिले के आसपास के इलाके में किसी पद नौकरी करने की इजाजत नहीं है पर हाईकोर्ट के जजों को उसी हाईकोर्ट में जज नियुक्त किए जाने की अनुमति है जहां पर उन्होंने वर्षों एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस किया है, जहाँ उनके ग्राहकों, मित्रों, सगे संबंधियों और विरोधियों की संख्या काफी होती है। कुछ प्रोमोशन पाए जजों के कनिष्ठ और सहायक हर तरह के अनुचित हथकंडे अपनाते हैं जिसका विश्लेषण उन मामलों के विश्लेषण से हो सकता है जिसके फैसले में वे शामिल होते हैं। इस व्यवस्था की समीक्षा की तत्काल जरूरत है नहीं तो इसके गंभीर परिणाम होंगे और लोग इस देश की न्यायिक व्यवस्था में अपना विश्वास खो देंगे।”


    Next Story