सुप्रीम कोर्ट ने मांगा आपराधिक रिकार्ड वाले सांसदों का ब्यौरा
LiveLaw News Network
31 Oct 2017 7:54 PM IST
एक अहम मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सासंदों के आपराधिक रिकार्ड और विभिन्न अदालतों में चल रहे आपराधिक मामलों का ब्यौरा मांगा है। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने उस दलील के आधार पर ये ब्यौरा मांगा है जिसमें कहा गया है कि चुनाव के वक्त दाखिल हलफनामों के मुताबिक 34 फीसदी सांसदों का आपराधिक रिकार्ड है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें कहा गया है कि सजायाफ्ता व्यक्ति के चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में ये भी मांग की है कि नेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ चल रहे मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरा करने के लिये स्पेशल फास्ट कोर्ट बनाए जाएं। याचिका में कहा गया है कि अगर जनप्रतिनिधि अधिनियम में सजायाफ्ता व्यक्ति पर चुनाव लडने से बैन लगाने का प्रावधान नहीं रहता तो ये संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि अगर कार्यपालिका या न्यायपालिका से जुडा व्यक्ति किसी अपराध में सजायाफ्ता होता है तो वो अपने पास बर्खास्त हो जाता है और आजीवन सेवा से बाहर हो जाता है। लेकिन विधायिका में ऐसा नहीं है। सजायाफ्ता व्यक्ति जेल से ही राजनीतिक पार्टी बना सकता है बल्कि उसका पदाधिकारी भी बन सकता है। यहां तक कि कानून के मुताबिक 6 साल अयोग्य होने के बाद वो ना केवल चुनाव लड सकता है बल्कि मंत्री भी बन सकता है।
उन्होंने कहा कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइटस के मुताबिक 2004 से संसद और विधानसभा में ऐसे मामलों में तेजी आई है और 34 फीसदी सांसदों का आपराधिक रिकार्ड है। कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां आपराधिक छवि वाले नेताओं को पसंद करती हैं क्योंकि उनके पास पैसे होते है और मतदाता उनके आपराधिक रिकार्ड से ज्यादा प्रभावित नहीं होते।इसके अलावा चूंकि ऐसे लोगों के जीतने की प्रतिशत बढ रहा है तो पार्टियों को लगता है कि वो मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे नेताओं की वजह से चुनाव की पवित्रता से समझौता हो रहा है और जब तक उन पर जीवनभर के लिए रोक नहीं लगेगी, ये चलता रहेगा।
जस्टिस गोगोई ने याचिकाकर्ता को कहा कि आप सजा होने के बाद 6 साल की रोक पर बहस कर रहे हैं लेकिन जब कोर्ट में केस 20-20 साल लंबित रहते है और इसी बीच सजा होने तक आरोपी चार बार विधायिका में अपने कार्यकाल पूरा कर लेते हैं।उसके बाद अगर उन्हें 6 साल के लिए या आजीवन चुनाव लड़ने से मना भी कर दिया जाए तो इसका क्या मतलब है?सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले का जिक्र करते हुए पूछा कि कोर्ट ने 2013 में अपने फ़ैसले में कहा था कि आपराधिक मामलों में जनप्रतिनिधियों को मिला रोक के लिए मिला सरंक्षण खत्म हो जाएगा अगर तीन महीने में अपील दाखिल की गई हो, उसका क्या असर पडा है। इसके अलावा कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा सजायाफ्ता होने पर अयोग्य करार लोगों का ब्यौरा भी मांगा है।
इसी दौरान चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोडा ने कहा कि दोषी करार होने के तुरंत बाद चुनाव आयोग को इसकी सूचना नहीं दी जाती इसलिए आयोग तुरंत इस पर कार्रवाई नहीं कर पाता। वहीं अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश दिनेश द्विवेदी ने कहा कि केंद्र और चुनाव आयोग को इसके लिए निर्देश दिए जाने चाहिए ताकि लोकतंत्र व विधायिका संस्थान को संरक्षण दिया जा सके। सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।