रेप वीडियो को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए अहम आदेश, कहा अलग से सेल बनाए केंद्र [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
27 Oct 2017 10:38 AM IST
रेप, गैंगरेप और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के वीडियो इंटरनेट पर ना रहें, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इंटरनेट सर्च इंजनों से मिलकर उन कीवर्डस की लिस्ट बनाने को कहा है जिनसे ऐसे वीडियो की पहचान और उन्हें ब्लॉक किया जा सके।
इस सुनवाई के दौरान कोर्ट 11 प्रस्तावों व सिफारिशों को मंजूर कर लिया जो सहमति से बनाए गए। कोर्ट ने केंद्र से कहा गा कि इन्हें लागू करने पर विचार करे। बेंच ने इंटरनेट कंपनियों को ऑनलाइन अपराधों की जांच और जांच के औजारों के लिए जांच एजेंसियों व गैर सरकारी संगठनों को तकनीकी सहायता व ट्रेनिंग देने के लिए कहा है।
बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि केंद्र सरकार को ऐसे वीडियो को ब्लॉक करने के लिए कीवर्डस पर काम करना चाहिए। इसके लिए केंद्र सिविल सोसायटी की मदद ले सकता है। ऐसे में सर्च इंजन भी ऐसे कीवर्डस को बढाए जो कोई चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिए इस्तेमाल कर सकता है। ये देश की दूसरी भाषाओं के लिए भी किया जा सकता है। केंद्र को रेप व गैंगरेप वीडियो के लिए भी मानक तैयार करने चाहिए जिससे उनकी पहचान की जा सके और ब्लॉक किया जा सके।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से ऐसे इंटरनेट अपराधों के लिए अलग से सेल बनाने के लिए कहा है। ये सेल या तो सीबीआई में ही हो सकता है फिर केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि अमेरिका समेत दूसरे देशों की तरह सेंट्रल रिपोर्टिंग मैकेनिज्म बनाने की जरूरत है। कोई भी व्यक्ति या संगठन चाइल पोर्नोग्राफी या रेप गैंगरेप वीडियो के बारे में पहचान छिपाते हुए सूचना देने में सक्षम होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि सरकार को विशिष्ट एजेंसी की पहचान कर उसे ऐसे वीडियो की शिकायतें प्राप्त करने और तय वक्त सीमा में कार्रवाई शुरु करने का प्राधिकार देना चाहिए। ये एजेंसी तुरंत संबंधित पुलिस थानों को FIR दर्ज कर कार्रवाई करने की प्रक्रिया शुरु कर सके।
बेंच ने ये भी कहा कि कोर्ट को उम्मीद है कि केंद्र सरकार समेत सभी पक्ष सहमति से तैयार सिफारिशों को जल्द लागू करने का प्रयास करेंगे। ये भी साफ है कि इन सिफारिशों व प्रस्तावों से संबंधित कोई भी सूचना गोपनीय रखी जाएगी। साथ ही सर्विस प्रोवाइडर द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक को भी गुप्त रखी जाएगा। केंद्र सरकार इन्हें लागू करने को लेकर सील कवर में 11 दिसंबर तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करेगी।
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार 23 अक्तूबर को जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस उदय उमेश ललित की ने रेप वीडियो को लेकर इन कैमरा सुनवाई की थी। इस दौरान मीडिया समेत किसी भी शख्स को कोर्ट रूम में दाखिल होने की इजाजत नहीं दी गई। खास बात ये है कि सुरक्षाकर्मियों को पहले से ही करीब 50 लोगों की सूची दी गई थी जिनमें केंद्र सरकार, केस से जुडे वकीलों व पक्षकारों के नाम थे। कोर्टरूम में उन्हीं को दाखिल होने की इजाजत दी गई। सुप्रीम कोर्ट में इस तरह की सुनवाई कम ही देखने को मिलती है। हालांकि कोर्ट कुछ मामलों में मीडिया को रिपोर्टिंग करने से मना करता रहा है लेकिन कोर्ट में सुनवाई पर मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर पाबंदी नहीं लगाई गई थी।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की बेंच 18 सितंबर को याहू, फेसबुक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और वाटसएप की इन कैमरा सुनवाई को तैयार हो गई थी। दरअसल इन कंपनियों ने कोर्ट द्वारा गठित समिति की सिफारिशों पर आपत्ति जताई है कोर्ट ने समिति का गठन किया था ताकि गैंगरेप, रेप और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के वीडियो आम लोगों तक ना पहुंचे।
सूचना एवं तकनीक मंत्रालय के एडिशनल सेक्री डा. अजय कुमार की अगवाई में इस समिति में याचिकाकर्ता की वकील अपर्णा भट्ट, एमिक्स क्यूरी एनएस नापीनाई, फेसबुक- आयरलैंड के वकील सिद्धार्थ लूथरा और अन्य पक्षकारों के प्रतिनिधि हैं। मार्च में जब समिति का गठन किया गया तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो इस नतीजे पर पहुंचे कि ये आपत्तिजनक वीडियो इंटरनेट पर उपलब्ध ना हों। अगर तकनीकी कारणों से ये संभव ना हो तो बेंच ने समिति को कारण बताने के लिए कहा था कि ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता ?
बेंच ने ये भी साफ किया था कि समिति की बैठक का परिणाम गोपनीय रखा जाएगा और रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखे जाने तक सील कवर में रहेगी।
चार सितंबर को अजय कुमार ने कहा था कि जिन पक्षों ने बैठक में हिस्सा लिया उन्होंने रिपोर्ट को सावर्जनिक किए जाने पर आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि हिस्से पर आपत्ति है ये स्पष्ट किया जाना चाहिए। ऐसा लगता है कि पक्ष कुछ सिफारिशों पर सहमत हैं और कुछ अन्य पर असहमत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अजय कुमार को दो वर्गों के प्रस्ताव के दो वर्गों के दस सेट बनाने को कहा था जिसमें एक सहमति वाला होगा जबकि दूसरा जिसमें सहमति नहीं बनी है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों के वकीलों को प्रस्ताव व सिफारिशों को गोपनीय रखने को भी कहा है। हालांकि कोर्ट ने इन सिफारिशों को सावर्जनिक करने पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
बेंच ने याहू, फेसबुक, गूगल, गूगल इंडिया, माइक्रोसॉफ्ट और वाटसएप को देश में गैंगरेप, रेप और चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुडी शिकायतों पर हलफनामा दाखिल करने को कहा था। ये जानकारी 2016 और 2017 ( 1 जनवरी 2016 से 31 अगस्त 2017) के बीच प्राप्त शिकायतों की मांगी गई है और पूछा गया है कि इन मामलों में क्या कार्रवाई की गई? चार सितंबर को कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया था कि ये जानकारी उससे अलग होगी जिनमें कंपनियों ने बिना शिकायत मिले ही संज्ञान लेकर कार्रवाई की।
बेंच ने केंद्र सरकार को हलफनामे के जरिए बताने को कहा था कि पोक्सो यानि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज एक्ट 2012 के सेक्शन 19 और 21 के तहत 2016 और 2017 ( 1 जनवरी 2016 से 31 अगस्त 2017) के बीच कितनी कार्रवाई की गई हैं।
18 सितंबर को गूगल की ओर से पेश डा. ए एम सिंघवी और साजन पोवैया और वाटसएप से कपिल सिब्बल मे अपनी दलीलें कोर्ट के सामने रखी। जस्टिस लोकुर ने नाराजगी जताई थी कि सिंघवी की आपत्ति तुच्छ है। कोर्ट ने कहा कि लगता है कि आप इधर कोमा पर आपत्ति जता रहे हैं और उधर फुल स्टॉप पर।