सुप्रीम कोर्ट ने जेपी ग्रुप की यमुना एक्सप्रेस वे को दूसरी कंपनी को सौंपने की मांग ठुकराई, कहा पांच नवंबर तक जमा कराए दो हजार करोड
LiveLaw News Network
26 Oct 2017 10:05 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड की यमुना एक्सप्रेस वे को 2500 करोड में दूसरी कंपनी को सौंपने की मांग को खारिज कर अपने आदेश में संशोधन करने से इंकार कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने 27 अक्तूबर की बजाए जेपी ग्रुप को 5 नवंबर तक 2000 करोड़ रुपये जमा कराने का आदेश दिया है।
बुधवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच को ग्रुप की ओर से कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने बताया कि वो 165 किलोमीटर लंबे 6 लेन के यमुना एक्सप्रेस वे को किसी दूसरी कंपनी को 2500 करोड रुपये में सौंपना चाहता है ताकि वो निवेशकों के वापस करने के लिए दो हजार करोड रुपये दे सके। उन्होंने सील कवर में ये कागजात भी कोर्ट में दाखिल किए। वहीं AG केके वेणुगोपाल ने इसका विरोझ करते हुए कहा कि इस तरह एक्सप्रेस वे किसी तीसरे पक्ष को नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसमें यमुना एक्सप्रेव वे अथारिटी और यूपी सरकार भी स्टेक होल्डर हैं। इसके अलावा इसके प्रोजेक्ट मेसे 15 वित्तीय संस्थान भी जुडे हैं। जेपी ने ये हाइवे बोली लगाकर लिया था और इसे किसी तीसरे पक्ष को नहीं दिया जा सकता। वहीं IRB की ओर से कहा गया कि जेपी 22 हजार फ्लैट देने में नाकाम रहा है और मार्च 2021 तक 5000 करोड रुपये और चाहिए। देर शाम जारी आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने जेपी की मांग ठुकरा दी।
गौरतलब 23 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने जेपी इंफ्राटेक को संपत्ति बेचने की इजाजत दी जाए या नहीं, इस पर अटार्नी जरनल और आईआरबी से राय मांगी थी। सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान जेपी ग्रुप की तरफ से चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच में कहा गया कि अगर सुप्रीम कोर्ट उन्हें संपति बेचने की अनुमति दे देता है तो कंपनी को 2500 करोड़ रुपये मिलेंगे। जेपी ने कहा कि कंपनी की प्राथमिकता खरीदारों को फ्लैट देने की है।
इससे पहले जेपी ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह यमुना एक्सप्रेस वे के पास अपनी सम्पति को बेचकर फ्लैट खरीदारों का बकाया चुकाना चाहता है। करीब 30 हजार खरीदारों को अभी तक फ्लैट नहीं मिला है। जेपी इंफ्राटेक ने कहा कि वह यमुना एक्सप्रेस वे की संपत्ति दूसरे डवलपर को बेचना चाहता है, जो जिसने इसके लिए उसे 2500 करोड़ रुपए का ऑफर दिया है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट जेपी इंफ्राटेक की उस याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया था जिसमें बिल्डर ने यमुना एक्सप्रेस वे की संपत्ति को दूसरी कंपनी को बेचने की इजाजत मांगी है। कोर्ट को बताया गया था कि कंपनी कोर्ट के आदेश के मुताबिक 2000 करोड रुपये जमा कराने की हालत में नहीं है। इसलिए वो यमुना एक्सप्रेस वे की संपत्ति को किसी कंपनी को बेचना चाहते हैं। इससे कंपनी को 2500 करोड रुपये मिलेंगे। सुप्रीम कोर्ट इसकी इजाजत दे।
गौरतलब है कि 9 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने जेपी इन्फ्राटेक को फिलहाल राहत देने से इंकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने जेपी को कहा था कि कंपनी को 27 अक्तूबर तक दो हजार करोड रुपये जमा कराने ही होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 11 सितंबर को आदेश जारी कर जेपी को सुप्रीम कोर्ट में दो हजार करोड रुपये जमा कराने के आदेश दिए थे। इससे पहले 11 सितंबर को जेपी इन्फ्राटेक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिवाला प्रक्रिया पर लगी रोक में संशोधन करते हुए दिवाला प्रक्रिया को फिर से बहाल कर दिया था। साथ ही जेपी को झटका देते हुए कहा था कि JP इंफ्रा और एसोसिएटस के प्रंबंध निदेशक व निदेशक सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना देश छोडकर नहीं जाएंगे। 27 अक्टूबर तक जेपी एसोसिएटस सुप्रीम कोर्ट में 2000 करोड रुपये जमा करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इनसॉलवेंसी रिसॉलवेंसी प्रोफेशनल जेपी से सारा रिकार्ड हासिल करेंगे और फ्लैट बार्यस के भले के लिए एक योजना तैयार कर 45 दिनों में सुप्रीम कोर्ट में देंगे।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा था कि ICCI, IDBI और SBI को छोडकर दिवाला प्रक्रिया में शामिल कोई भी व्यक्ति देश छोडकर नहीं जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ये बडे स्तर की मानव संबंधित दिक्कतें हैं और कोर्ट खरीदारों के लिए बेहद चिंतित है। खरीददार मध्यम वर्ग से हैं कोर्ट उनके लिए चिंतित हैं। कोर्ट को बिल्डर कंपनियों के बारे में चिंता नहीं है।
जेपी इंफ्राटेक मामले में नया मोड आ गया था जब IDBI बैंक सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और जेपी इन्फ्रा दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के आदेश पर संशोधन की मांग की थी।
IDBI बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच के सामने कहा था कि जो सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया उससे फ्लैट खरीदारों को नही बल्कि जेपी इन्फ्रा को फ़ायदा हुआ है।
IDBI बैंक की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि आदेश के बाद अगर कोई चैन से सोया होगा तो वो जेपी इन्फ्रा होगा। जेपी इन्फ्रा को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक के बाद सारा कब्जा वापस जेपी इन्फ्राटेक के पास चला गया।
IDBI बैंक ने मांग की थी कि NCLT के आदेश को बहाल किया जाना चाहिए क्योंकि जेपी इन्फ्रा को टेकओवर कर लिया गया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वापस कंपनी जेपी के पास चली गई। पहले सुप्रीम कोर्ट ने जेपी इंफ्राटेक के खिलाफ दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद स्थित नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के 9 अगस्त के आदेश पर रोक लगा दी थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने खरीदारों की याचिका पर जेपी, आरबीआई व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। कोर्ट ने AG के के वेणुगोपाल को इस केस में कोर्ट की मदद करने के लिए कहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया है कि NCLT में IDBI के 526 करोड रुपये के कर्ज पर कारवाई चल रही थी लेकिन इस आदेश से खरीदारों के 25 हजार करोड रुपये दांव पर लग गए हैं। दरअसल जेपी इन्फ्राटेक के खिलाफ दिवालिया और ऋण शोधन अक्षमता कानून 2016 के तहत कार्रवाई चल रही थी। याचिका में इस कानून को भी चुनौती दी गई है। इस मामले में याचिकाकर्ता खरीदारों ने आरोप लगाया है कि बिना गारंटी वाले देनदार की वजह से न तो घर मिलेगा और न ही धन वापस मिलेगा। मामले में24 फ्लैट मालिकों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील अजीत कुमार सिन्हा ने कोर्ट के सामने मुद्दा उठाते हुए कहा था कि जेपी इन्फ्राटेक की 27 रेजिडेंशल स्कीम में करीब 32 हजार लोगों ने फ्लैट बुक किए हैं। लेकिन कंपनी के खिलाफ दिवालिया कानून के तहत कार्रवाई शुरू की गई है। इस तरह उनका पैसा डूबने के कगार पर पहुंच गया है। मौजूदा दिवालिया कानून के तहत जब प्रक्रिया शुरू होगी तो पहले उन देनदारों का आर्थिक हित प्रोटेक्ट किया जाएगा, जो गारंटी वाले देनदार हैं। फ्लैट खरीदार तो बिना गारंटी वाले देनदार हैं, उन्हें कानून के तहत कुछ भी नहीं मिलने वाला है। अगर दिवालिया कानून के तहत मामला पेंडिंग हो तो उपभोक्ता अदालत के फैसले के बावजूद उसे लागू नहीं किया जा सकेगा।ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि खरीदारों के हितों को सुरक्षित किया जाए। फ्लैट खरीदारों ने इलाहाबाद स्थित नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के आदेश पर रोक की मांग की थी। 9 अगस्त 2017 को ट्रिब्यूनल ने जेपी बिल्डर को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की थी।