छेड़छाड़ मामले में दोषी की सजा कम करने से बॉम्बे हाई कोर्ट का इनकार, भेजा जेल [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
25 Oct 2017 9:10 PM IST
नागपुर में 16 साल पहले 20 साल के एक युवक के खिलाफ छेड़छाड़ का केस दर्ज किया गया था। इस मामले में आरोपी को आईपीसी की धारा-354 और 506 में दोषी करार देते हुए सजा सुनाई गई थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 12 साल बाद इसकी जमानत निरस्त कर उसे जेल भेज दिया है।
नागपुर बेंच के जज न्यायमूर्ति रोहित बी देव ने इस मामले में आरोपी की अपील पर सुनवाई की थी। उसे 28 नवंबर 2005 को निचली अदालत ने दोषी करार दिया था और छह महीने कैद की सजा सुनाई थी। इस मामले में अपील पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने आरोपी की अर्जी खारिज करते हुए उसे जेल भेज दिया। उसे आईपीसी की धारा 354 यानी छेड़छाड़ और धारा 506 यानी धमकी देने के मामले में दोषी करार दिया गया। आरोपी को एससी व एसटी अधिनियम के तहत बरी किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील अद्दुल सुभन ने दलील दी कि पूरे मामले की छानबीन डीएसपी के नीचे रैंक के अधिकारी ने की। और यह एससी एसटी अधिनियम की धारा 7 के खिलाफ है। उसने दलील दी कि गवाह की मां और आरोपी के बीच संबंध ठीक नहीं था और इसी कारण उसे फंसाया गया और गवाह के बयान को विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। गवाह 2001 में मौके पर था जब आरोपी ने पीड़िता को पीछे से पकड़ा था और शोर मचाने पर जान से मारने की धमकी दी थी। पीडिता ने कहा था कि बाद में आरोपी मौके से भाग गया। इसके बाद उसने घटना के बारे में अपने मां-बाप को बताया और फिर इस बारे में मामला दायर किया गया।
कोर्ट ने गवाहों के बयान के बाद कहा कि पीड़िता का बयान विश्वसनीय है। बचाव पक्ष ने एक बेकार का सुझाव यह दिया था कि आरोपी को झूठे मामले में फंसाया गया क्योंकि पीड़िता की मां के साथ विवाद था। लेकिन इस बारे में कोई तथ्य सामने नहीं आया। अदालत ने कहा कि आरोपी ने जो अपराध किया है उसे देखते हुए ट्रायल कोर्ट ने उसके साथ अत्यंत नरमी बरती है और सिर्फ छह महीने की सजा दी है। अगर उसको इससे कम सजा दी जाएगी तो न्याय से लोगों का विश्वास टूटेगा। ऐसे में अपील खारिज की जाती है और जमानती बांड रद्द किया जाता है। आरोपी को सजा काटने के लिए जेल भेजा जाता है।