जिला न्यायाधीश की छुट्टी करने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

LiveLaw News Network

25 Oct 2017 5:01 AM GMT

  • जिला न्यायाधीश की छुट्टी करने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

    सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश विमल प्रकाश कांडपाल की सेवानिवृत्ति संबंधी इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया है। कांडपाल गत वर्ष सेवानिवृत्ति हुए थे।

    सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा, “इस मामले को स्थगित किया जा रहा है ताकि हाई कोर्ट की पैरवी कर रहे वकील वार्षिक गोपनीयता रिपोर्ट संबंधी नियमों को न्यायालय के सामने रख सकें। प्रथम दृष्टया, हम इस बारे में संतुष्ट हैं कि जिस आदेश को निरस्त किया गया है उसे जहाँ तक इस याचिका का सवाल है, अभी परे रखने की जरूरत है।”

    न्यायमूर्ति जे चेल्मेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने वीपी कांडपाल द्वारा हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती संबंधी याचिका पर सुनवाई में कहा, “इस हिसाब से, जहाँ तक इस याचिकाकर्ता के आवेदन का सवाल है, अगले आदेश तक यह आदेश लागू नहीं होगा।”

    कांडपाल की वार्षिक गोपनीयता रिपोर्ट (एसीआर) लिखने के क्रम में जिला न्यायाधीश ने जिन नियमों का पालन किया था उस पर सवाल उठाते हुए पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की पैरवी कर रहे वकील से उन नियमों को कोर्ट के समक्ष पेश करने को कहा जिसके आधार पर इस जज के खिलाफ कारर्वाई की गई थी।

    इलाहाबाद हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने गत वर्ष 14 अप्रैल को कांडपाल को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का फैसला दिया था और इसके लिए उन्होंने स्क्रीनिंग कमिटी के सुझावों को उनके खिलाफ आधार बनाया था।

    हाई कोर्ट के वकील ने अपनी दलील में कहा कि स्क्रीनिंग कमिटी ने उनकी एसीआर को सामान्य से निचले स्तर का पाया। इसके अलावा जब हाई कोर्ट के जज ने उनके कोर्ट का निरीक्षण किया तो वे अनुपस्थित पाए गए।

    आगे यह आरोप भी लगाया गया कि वे समय के पाबंद नहीं थे और दूसरों के खिलाफ अनुचित भाषा का प्रयोग करते थे।कमिटी के सुझावों को पूर्ण पीठ ने स्वीकार कर लिया।

    याचिकाकर्ता जज की पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील आर बसंत ने कोर्ट में कहा कि लगाए गए आरोप कानूनी रूप से वैध नहीं हैं। उनकी ईमानदारी पर कभी शक नहीं किया गया।

    आगे उन्होंने कहा कि कांडपाल वर्ष 2000 में सेवा में शामिल हुए लेकिन उनका एसीआर 2008-2009 में लिखा गया और उसके बाद उनका कोई एसीआर हाई कोर्ट को नहीं भेजा गया।

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