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रेप वीडियो मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई 'इन कैमरा 'सुनवाई, मीडिया भी बाहर, 50 लोगों को अनुमति

LiveLaw News Network
23 Oct 2017 1:07 PM GMT
रेप वीडियो मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई इन कैमरा सुनवाई, मीडिया भी बाहर, 50 लोगों को अनुमति
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सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस उदय उमेश ललित की ने रेप वीडियो को लेकर इन कैमरा सुनवाई की। इस दौरान मीडिया समेत किसी भी शख्स को कोर्ट रूम में दाखिल होने की इजाजत नहीं दी गई। खास बात ये है कि सुरक्षाकर्मियों को पहले से ही करीब 50 लोगों की सूची दी गई थी जिनमें केंद्र सरकार, केस से जुडे वकीलों व पक्षकारों के नाम थे। कोर्टरूम में उन्हीं को दाखिल होने की इजाजत दी गई। सुप्रीम कोर्ट में इस तरह की सुनवाई कम ही देखने को मिलती है। हालांकि कोर्ट कुछ मामलों में मीडिया को रिपोर्टिंग करने से मना करता रहा है लेकिन कोर्ट में सुनवाई पर मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर पाबंदी नहीं लगाई गई थी।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट की बेंच  18 सितंबर को याहू, फेसबुक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और वाटसएप की इन कैमरा सुनवाई को तैयार हो गई थी। दरअसल इन कंपनियों ने कोर्ट द्वारा गठित समिति की सिफारिशों पर आपत्ति जताई है कोर्ट ने समिति का गठन किया था ताकि गैंगरेप, रेप और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के वीडियो आम लोगों तक ना पहुंचे।

सूचना एवं तकनीक मंत्रालय के  एडिशनल सेक्री डा. अजय कुमार की अगवाई में इस समिति में याचिकाकर्ता की वकील अपर्णा भट्ट, एमिक्स क्यूरी एनएस नापीनाई, फेसबुक- आयरलैंड के वकील सिद्धार्थ लूथरा और अन्य पक्षकारों के प्रतिनिधि हैं। मार्च में जब समिति का गठन किया गया तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो इस नतीजे पर पहुंचे कि ये आपत्तिजनक वीडियो इंटरनेट पर उपलब्ध ना हों। अगर तकनीकी कारणों से ये संभव ना हो तो बेंच ने समिति को कारण बताने के लिए कहा था कि ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता ?

बेंच ने ये भी साफ किया था कि समिति की बैठक का परिणाम गोपनीय रखा जाएगा और रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखे जाने तक सील कवर में रहेगी।

 चार सितंबर को अजय कुमार ने कहा था कि जिन पक्षों ने बैठक में हिस्सा लिया उन्होंने रिपोर्ट को सावर्जनिक किए जाने पर आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि हिस्से पर आपत्ति है ये स्पष्ट किया जाना चाहिए। ऐसा लगता है कि पक्ष कुछ सिफारिशों पर सहमत हैं और कुछ अन्य पर असहमत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अजय कुमार को दो वर्गों के प्रस्ताव के दो वर्गों के दस सेट बनाने को कहा था जिसमें एक सहमति वाला होगा जबकि दूसरा जिसमें सहमति नहीं बनी है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों के वकीलों को प्रस्ताव व सिफारिशों को गोपनीय रखने को भी कहा है। हालांकि कोर्ट ने इन सिफारिशों को सावर्जनिक करने पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।

बेंच ने याहू, फेसबुक, गूगल, गूगल इंडिया, माइक्रोसॉफ्ट और वाटसएप को देश में गैंगरेप, रेप और चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुडी शिकायतों पर हलफनामा दाखिल करने को कहा था। ये जानकारी  2016 और 2017 ( 1 जनवरी 2016 से 31 अगस्त 2017) के बीच प्राप्त शिकायतों की मांगी गई है और पूछा गया है कि इन मामलों में क्या कार्रवाई की गई? चार सितंबर को कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया था कि ये जानकारी उससे अलग होगी जिनमें कंपनियों ने बिना शिकायत मिले ही संज्ञान लेकर कार्रवाई की।

बेंच ने केंद्र सरकार को हलफनामे के जरिए बताने को कहा था कि पोक्सो यानि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज एक्ट 2012 के सेक्शन 19 और 21 के तहत 2016 और 2017 ( 1 जनवरी 2016 से 31 अगस्त 2017) के बीच कितनी कार्रवाई की गई हैं।

18 सितंबर को गूगल की ओर से पेश डा. ए एम सिंघवी और साजन पोवैया और वाटसएप से कपिल सिब्बल मे अपनी दलीलें कोर्ट के सामने रखी। जस्टिस लोकुर ने नाराजगी जताई थी कि सिंघवी की आपत्ति तुच्छ है। कोर्ट ने कहा कि लगता है कि आप इधर कोमा पर आपत्ति जता रहे हैं और उधर फुल स्टॉप पर।

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