क्या हो सकता है फांसी का कोई विकल्प ? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछते हुए कहा, मौत “शांति” में हो “ पीड़ा”में नहीं
LiveLaw News Network
6 Oct 2017 1:32 PM IST
एक अहम मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि मौत की सजा में क्या फांसी के अलावा कोई अन्य तरीका भी हो सकता है ? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है और अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल को कोर्ट की मदद करने के लिए कहा है।
शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि विधायिका सजाए मौत के मामले में फांसी के अलावा कोई दूसरा तरीका भी तलाशा जा सकता है जिसमें मौत “पीस”में हो “ पेन”में नहीं। सदियों से ये कहा जाता रहा है कि पीडारहित मौत की की कोई बराबरी नहीं है। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि यही माना जाता रहा है हमारा संविधान दयालु है जो जीवन की निर्मलता के सिद्घांत को मानता आया है। ऐसे में विज्ञान में आई तेजी के चलते मौत के दूसरे तरीके को तलाशा जाना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि वो मौत की सजा पर बहस नहीं कर रहे हैं।
हालांकि बेंच में शामिल जस्टिस चंद्रचूड ने सुनवाई के दौरान इंजेक्शन द्वारा दी जाने वाली मौत की सजा पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अमेरिका में इंजेक्शन की आलोचना की गई जा रही है। ये सुनवाई अब तीन हफ्ते के बाद होगी।
दरअसल " जीवन के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है" ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपने तरह की पहली याचिका दाखिल कर कहा गया है कि फांसी की जगह मौत की सज़ा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाना चाहिए। फांसी को मौत का सबसे दर्दनाक और बर्बर तरीका बताते हुए जहर का इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, गैस चैंबर या बिजली के झटके देने जैसी सजा देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते है जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल कुछ मिनट में।
वकील ऋषि मल्होत्रा द्वारा दाखिल याचिका में ज्ञान कौर बनाम पंजाब ( 1996) में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया है कि जीवन जीने के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है। यानी जब भी कोई व्यक्ति मरे तो मरने की प्रक्रिया भी सम्मानजनक होनी चाहिए।
वहीं दूसरे मामले दीना बनाम भारत संघ (1983) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि मौत की सजा का तरीका ऐसा होना चाहिए जो जल्दी से मौत हो जाए और ये तरीका आसान भी होना चाहिए ताकि ये कैदी की मार्मिकता को और ना बढाए। कोर्ट ने कहा था कि ये तरीका ऐसा होना चाहिए जिसमें जल्द मौत हो जाए और इसमें अंग-भंग ना हो।
प्रार्थना
- फांसी पर लटकाए रखने का प्रावधान करने वाली CRPC की धारा 354 (5) को को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत असंवैधानिक करार दिया जाए और ज्ञान कौर जजमेंट के विपरीत माना जाए।
- सम्मानजनक तरीके से मौत के जरिए मरने के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाए।
- वर्तमान तथ्यों व हालात को देखते हुए जो आदेश जारी करना कोर्ट उचित समझे।
मल्होत्रा मे कहा है कि लॉ कमिशन ने भी यही कहा हा कि विकासशील और विकसित देशों ने फांसी की बजाए इंजेक्शन या गोली मारने के तरीकों को अपनाया है तो कि कैदी को कम से कम दर्द और सहने का आसान मानवीय और स्वीकार्य तरीका है। लॉ कमिशन ने 1967 में 35 वीं रिपोर्ट में कहा था कि ज्यादातर देशों ने बिजली करंट, गोली मारने या गैस चैंबर को फांसी का विकल्प चुन लिया है।
सुप्रीम कोर्ट से याचिका में मांग की गई है कि CrPC की धारा 354(5) के अंतर्गत ये कहा गया है कि मौत होने तक लटकाया जाए, इसलिए इसे संविधान के जीने के अधिकार का उल्लंघन करार दिया जाना चाहिए। साथ ही सम्मानजनक तरीके से मरने को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाए।
याचिका में ये भी कहा गया है कि गोली मारने या जहर इंजेक्शन देना फांसी के मुकाबले कम पीडा देने वाला है क्योंकि इसमें कैदी का वजन, ऊंचाई मापकर गिराने की प्रक्रिया है जो टार्चर करती है।
मल्होत्रा ने कहा कि ये 354(5) जिसके मुताबिक हैंग टिल डेथ सबसे बर्बरतापूर्ण, अमानवीय और क्रूर तरीक है बल्कि यूनाइटेड नेशन्स इकॉनामिक्स एंड सोशल काउंसिल के प्रस्ताव के खिलाफ भी है जो साफ कहता है कि जहां भी मौत की सजा का प्रावधान है वो इस तरह होना चाहिए कि कम से कम कष्ट सहना पडे।