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क्रिश्चिएन चेरिटेबल ट्रस्ट के खिलाफ दूसरी FIR बनी रहेगी, सुप्रीम कोर्ट ने सीआईडी जांच का रास्ता साफ किया

सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद के क्रिश्चिएन चेरिटेबल ट्रस्ट ओम- आपरेशन मोबिलाइजेशन के खिलाफ सीआईडी जांच का रास्ता साफ कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय मनोहर सपरे और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने ट्रस्ट की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ये जांच जल्द से जल्द पूरी होनी चाहिए और कानून के मुताबिक कार्रवाई होनी चाहिए।
NGO के खिलाफ सितंबर 2016 में पूर्व चीफ फाइनेंस अफसर जी एल्बर्ट लाएल ने शिकायत दर्ज कराई थी कि ओम और इसके प्रमुख ट्रस्टी जोसफ डिसूजा ने चंदे की 100 करोड की रकम हडप ली। ये रकम विदेशी लोगों ने दान की थी जिन्हें लगता था कि इसे दलित बच्चों की शिक्षा के लिए खर्च किया जाएगा। आरोप लगाया गया कि ये रकम ट्रस्टी को भेज दी गई।
NGO ने हैदराबाद हाईकोर्ट में FIR को रद्द करने की याचिका दाखिल की। याचिका में कहा गया कि इन्हीं तथ्यों के आधार पर 2012 में उनके खिलाफ FIR दर्ज हो चुकी है और वो सबूतों के अभाव में उसे बंद कर दिया गया। लेकिन हाईकोर्ट ने माना कि दूसरी FIR सही है औल इसकी जांच होनी चाहिए क्योंकि किसी भी आपराधिक जांच कराने का मकसद सच्चाई को सामने लाना होता है। कोर्ट ने पाया कि दोनों FIR अलग अलग अपराध के लिए दर्ज की गई थीं। जहां पहली FIR भारतीय दंड सहिंता यानी IPC के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर दर्ज हुई जबकि दूसरी FIR विदेशी चंदा ( नियंत्रण ) एक्ट 2010 का उल्लंघन करने पर।
कोर्ट ने कहा कि विशेष हालात में एक ही तथ्य के आधार पर दूसरी FIR भी दर्ज की जा सकती है। पहली शिकायत में अधूरे रिकार्ड या फिर गलतफहमी की वजह से आदेश जारी हुआ था। जस्टिस रामालिंगेश्वर राव ने मामले को दोबारा अपराध पर संज्ञान लेने के लिए मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया था।