जस्टिस पटेल के इस्तीफे के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने जजों की नियुक्ति व तबादले की प्रक्रिया तय करने का फैसला किया
LiveLaw News Network
2 Oct 2017 9:53 AM IST
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने जजों की नियुक्ति और तबादले की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए ठोस उपाय करने का प्रस्ताव पास किया है।
सूत्र के मुताबिक पहले बहुत सारे ऐसे उदाहरण हैं कि सरकार हाईकोर्ट में जज की नियुक्ति की सिफारिशों को लेकर बैठ जाती है जबकि उनके बाद की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया जाता है। इसकी वजह से हाईकोर्ट के जजों में वरिष्ठता क्रम गडबडा जाता है क्योंकि वरिष्ठता से ही ये तय होता है कि कौन हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनेगा और कौन सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने की पात्रता रखता है।
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक ये फैसला जस्टिस जयंत एम पटेल के पिछले हफ्ते इस्तीफे के बाद चारों ओर से हो रही निंदा के बाद लिया गया है जिन्होंने कथित तौर पर वरिष्ठ होने के बावजूद किसी हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस ना बनाए जाने के विरोध में ये कदम उठाया। इसीलिए ये फैसला प्रक्रिया में मनमानेपन को मिटाने के विचार से किया गया है।
दरअसल इस मामले ने कानून जगत में खलबली मचा दी है। ट्रांसफर की निंदा करते हुए गुजरात एडवोकेटस एसोसिएशन ने इस विरोध में बुधवार को काम ना करने का फैसला किया। एसोसिएशन ने निचली अदालतों व ट्रिब्यूनल में सभी बार एसोसिएशनों को एक दिन काम ना करने की अपील की है। एसोसिएशन ने प्रस्ताव पास किया है कि जज के ट्रांसफर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए।
एसोसिएशन ने फैसला लिया है कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के कॉलिजियम में नियुक्ति या नियुक्ति ना करने, हाईकोर्ट के जजों को कंफर्म करने या ना करने, हाईकोर्ट के जज को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने या ना बनाने, हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाने संबंधी सभी सिफारिशों के खुलासे जैसे बडे मुद्दे उठाए जाएंगे ताकि ऐसे हालात में प्रत्याशी या बार के सामने न्यायिक पुनर्विचार उपलब्ध हो सके।
कॉलिजियम के फैसले पर आधिकारिक बयान जारी करते हुए CJAR ने कहा है कि जिस तरीके से भारत के मुख्य न्यायधीश ने जस्टिस पटेल का तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट किया है, वो दुर्भाग्यपूर्ण है। इस तबादले के पीछे कोई ठोस कारण नहीं दिखता क्योंकि उनका पहले ही एक बार तबादला हो चुका है और अब उन्हें कर्नाटक हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया जाना चाहिए था।
CJAR ने आगे जस्टिस पटेल द्वारा विवादित इशरतजहां फर्जी एनकाउंटर की सीबीआई जांच के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि वो राजनीतिक प्रतिष्ठान के खिलाफ केसों को उठाने के लिए अपने साहस और प्रतिबद्धता के लिए सताए जा रहे हैं।
इस मुद्दे पर सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने लाइव लॉ को भी प्रतिक्रिया दी थी। इस मुद्दे पर दुष्यंत दवे ने कहा कि जस्टिस पटेल अद्भुत प्रतिभा के धनी जज रहे हैं। साथ ही वो बेहतरीन इंसान भी हैं। वो पूरी तरह ईमानदार और निडर प्रकृति के व्यक्ति हैं। गरीब लोगों के हक के लिए वो हमेशा खड़े रहे। वो हमेशा नागरिकों के लिए काम करने को आतुर रहे। सरकारी प्रताड़ना के शिकार के लोगों के लिए उन्होंने हमेशा काम किया। जस्टिस पटेल कभी सरकार के दबाव में नहीं आए। वो खासकर नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार और फिर केंद्र सरकार के दबाव में नहीं आए। वो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनने की योग्यता रखते थे। उनमें सुप्रीम कोर्ट के जज की काबलियत भी थी। दवे ने कहा कि उन्हें कार्यपालिका की ओर से प्रताडित किया गया है और इससे कॉलिजियम की खामियां फिर सामने आ गई हैं कि वो फिलहाल रीढविहीनहै। जो लोग भी न्यापालिका से प्यार करते हैं उनके लिए ये सदमे का वक्त है। उन्होंने कहा कि ये मामलाजो कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच का उदाहरण है और वक्त आ गया है कि लोग आखें खोलें ताकि बेहतर भारत बनाया जा सके। दवे ने जस्टिस पटेल को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए जाने की वकालत करते हुए कहा कि वो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस या फिर सुप्रीम कोर्ट के जज बनने के काबिल हैं।
16 मार्च 2017 को उनका एक आर्टिकल इस संदर्भ में द वायर पर प्रकाशित हुआ था। जस्टिस पटेल 3 दिसंबर 2001 को नियुक्त हुए थे जो कि चार या पांच नियुक्त किए गए नए जजों से सीनियर थे। बिना कारण उन्हें चीफ जस्टिस नहीं बनाया गया जबकि पिछले कॉलिजियम ने कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस का ट्रांसफर किया था ताकि उन्हें चीफ जस्टिस बनाया जा सके। दुखद ये है कि कॉलिजियम 9 हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर जिन जजों के नामों की सिफारिश की गई थी और वे सभी जस्टिस पटेल से जूनियर थे। ये तमाम जज 2 महीने से लेकर साढ़े चार साल जूनियर थे जिनके नामों की सिफारिश कॉलिजियम ने की थी ऐसा क्यों?