अगर ऊपरी अदालत ने एक बार जमानत दे दी उसके बाद उसी मामले में दोबारा गिरफ्तारी के लिए रेड कॉर्नर नोटिस का इस्तेमाल नहीं हो सकताःबॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

29 Sep 2017 10:56 AM GMT

  • अगर ऊपरी अदालत ने एक बार जमानत दे दी उसके बाद उसी मामले में दोबारा गिरफ्तारी के लिए रेड कॉर्नर नोटिस का इस्तेमाल नहीं हो सकताःबॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें मैजिस्ट्रेट ने आरोपी की मुंबई इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर रेड कॉर्नर नोटिस के सिलसिले में गिरफ्तारी के बाद जमानत की अर्जी खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने मैजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को अवैध करार दिया है।

    जस्टिस एएम बदर ने इस मामले में नवीनचंद्र गंगाधर हेगड़े की अपील पर सुनवाई के दौरान उक्त आदेश दिया। हेगड़े को आईपीसी की धारा-419 (पहचान छुपाकर धोखाधड़ी), 170 (खुद को सरकारी सेवक बताना), 183 (पब्लिक सर्वेंट से संपत्ति ले जाे की कोशिश), 186 (सरकारी काम में बाधा) और 120 (आपराधिक साजिश) के मामले में गिरफ्तार किया गया था। ये मामला 26 जुलाई 2016 को दर्ज हुआ था। उन्हें मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश किया गया था। जहां कोर्ट ने जमानत खारिज कर दी।

    इसके बाद सेशन कोर्ट में सीआरपीसी की धारा-439 के तहत अर्जी दाखिल की गई थी। फिर सेशन कोर्ट ने 8 सितंबर 2016 को हेगड़े की अर्जी पर सुनवाई के दौरान अर्जी मंजूर कर ली थी और उन्हें जमानत देते हुए 50 हजार रुपये का मुचलका भरने को कहा था। इसके बाद 19 अगस्त 2017 को उन्हें एयरपोर्ट पर तब गिरफ्तार किया गया जब वह विदेश जा रहे थे। इसके बाद मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में उन्हें उसी दिन पेश किया गया। अडिशनल पब्लिक प्रोसिक्युटर ने जमानत अर्जी का विरोध किया और कहा गया कि उन्हें रेड कॉर्नर नोटिस के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। लेकिन मैजिस्ट्रेट ने 19 अगस्त को जमानत अर्जी खारिज कर दी और कहा कि वह बिना मैजिस्ट्रेट की इजाजत के विदेश जा रहे थे और इस आधार पर जमानत अर्जी खारिज की गई। सीनयिर एडवोकेट श्रीरिश गुप्ते आरोपी के लिए पेश हुए और कहा कि एक बार अगर ऊपरी अदालत ने जमानत दे दी और जमानत में विदेश जाने को लेकर कोई रोक की शर्त नहीं थी ऐसे में उसी मामले में छानबीन के दौरान रेड कॉर्नर नोटिस के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। वकील ने जस्टिस बदर के सामने सेशन कोर्ट के आदेश की कॉपी पेश की जिसमें कहीं भी विदेश जाने पर रोक संबंधी कोई पाबंदी नहीं थी और ऐसी कोई शर्त नहीं थी। सीनियर एडवोकेट ने कहा कि सरकार ने इस आदेश में बदलाव के लिए कोई अर्जी नहीं दाखिल की थी और न ही उसे चुनौती दी थी।

    जस्टिस बदर ने फैसले में कहा...

    रेड कॉर्नर लुक ऑउट नोटिस अन्य किसी अपराध के लिए नहीं था बल्कि वह उसी मामले (जिसकी संख्या 177/ 2016 है) के लिए था। रेड कॉर्नर नोटिस का इस्तेमाल दोबारा गिरफ्तारी के लिए नहीं हो सकता जबकि अदालत ने पहले से उस मामले में जमानत दे रखी हो। पुलिस ने देखा जाए तो कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है और दोबारा गिरफ्तारी की जबकि उस मामले में जमानत दो चुकी है लेकिन छानबीन के दौरान कथित रेड कॉर्नर नोटिस के नाम पर दोबारा उसी मामले में गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद रेड कॉर्नर नोटिस के आधार पर की गई दोबारा गिरफ्तारी के  बाद जब मामला मैजिस्ट्रेट की अदालत में आया और जमानत की मांग की गई तो  मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट ने 19 अगस्त 2017 को जमानत अर्जी खारिज कर दी और ये आदेश गलत है। हाई कोर्ट कहा कि मैजिस्ट्रेट ने आदेश में व्यवस्था दी कि कोर्ट की इजाजत के बगैर विदेश जाने के आधार पर अर्जी खारिज की जाती है, इस आदेश में मैजिस्ट्रेट ने त्रुटि की है। अदालत ने आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।


     
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