कोर्ट मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने मांगे आम जनता से सुझाव [नोटिस पढ़े]
LiveLaw News Network
19 Sept 2017 8:19 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने फ्री प्रेस, फेयर ट्रायल और न्यायिक प्रक्रियाओं की अखंडता के बीच बैलेंस बनाए रखने के प्रयास से लिए मंगलवार को पब्लिक नोटिस जारी कर आम जनता से अदालती मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग पर सुझाव मांगे हैं। इनमें ये भी पूछा गया है कि क्या कोर्ट प्रक्रिया रियल टाइम रिपोर्टिंग ( यानी लाइव ट्विटिंग) की इजाजत दी जा सकती है।
नोटिस में प्रश्नावली भी दी गई है जिसके जवाब 21 दिनों के भीतर एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल द्वारा बनाई गई सात सदस्यीय समिति को दिए जाने हैं। ये प्रश्नावली https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdrChhf-oDw-6_7BJYMD43pGEhO87-ysrgWdzgOMVdlP_5o3A/viewform पर देखी जा सकती है।
इसे भर कर ज्वाइंट रजिस्ट्रार ( ज्यूडिशियल रूल) रीतेश सिंह को भेजा जा सकता है।
जस्टिस रूमा पाल की अध्यक्षता में समिति ने विभिन्न स्टेकहोल्डर्स से दिल्ली हाईकोर्ट और दिल्ली की निचली अदालतों में रिपोर्टिंग के लिए मान्यता देने के लिए गाइडलाइन्स बनाने के लिए भी राय मांगी है।
प्रश्नावली में 13 सवाल हैं जिनमें से 10 वस्तुनिष्ठ सवाल हैं। इनमें सवाल नंबर सात पूछता है कि किसी मान्यताप्राप्त व्यक्ति के गलत रिपोर्टिंग करने पर क्या सजा दी जाए ?
इसके लिए विकल्प दिए गए हैं कि कोई सजा नहीं, चेतावनी, अस्थाई रूप ये मान्यता का निलंबन, स्थाई रूप से हटाना या वित्तीय जुर्माना।
जनता से सुझाव के लिए समिति द्वारा दिए गए कुछ अन्य सवाल
- लंबित अदालती प्रक्रिया की रिपोर्टिंग के लिए मान्यता जरूरी होनी चाहिए और किस तरह की रिपोर्टिंग के लिए मान्यता की जरूरत हो ?
- मान्यता के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए ?
- जिन सवालों के जवाब अनिवार्य हैं वो
- क्या जजों की मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग की इजाजत दी जाए ?
- रियल टाइम रिपोर्टिंग ( जैसे लाइव ट्विटिंग) की इजाजत दी जा सकती है।
- कोर्टरूम में किसे इलेक्ट्रानिक्स उपकरण ले जाने की इजाजत हो ?
प्रश्नावली में ये भी पूछा गया है कि मान्यता प्राप्त पत्रकारों के बैठने के लिए क्या अलग से इंतजाम किया जाए। ये पत्रकारों को ध्यान में रखकर पूछा गया है जो भीडभरे कोर्टरूम में बैठने के स्थान ना मिलने पर खडे खडे ही सारी सुनवाई कवर करते हैं।
जून महीने में एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल ने कोर्ट रिपोर्टिंग में फ्री प्रेस, फेयर ट्रायल और न्यायिक प्रक्रियाओं की अखंडता के बीच बैलेंस बनाए रखने के लिए और दिल्ली में कोर्ट रिपोर्टिंग कैसे की जाए, के लिए समिति का गठन किया था।
इस समिति में जस्टिस पाल, दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस मनमोहन, रिटायर्ड जस्टिस जी राघवन ( डायरेक्टर, नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी), रिटायर्ड आईएएस अफसर एससी पांडा, अर्घ्या सेनगुप्ता ( विधि सेंटर फॉर लीगल पालिसी के रिसर्च डायरेक्टर), दयान कृष्णन औप वकील भारत चुघ शामिल हैं।