गौरक्षा के नाम पर हिंसा रुकनी चाहिए, हर जिले में हो नोडल अफसर : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 Sep 2017 6:40 AM GMT

  • गौरक्षा के नाम पर हिंसा रुकनी चाहिए, हर जिले में हो नोडल अफसर : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कह दिया है कि गौरक्षा  के नाम पर हिंसा रुकनी चाहिए। घटना के बाद ही नहीं उससे पहले भी रोकथाम के उपाय जरूरी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा है कि हर राज्य में एेसी घटनाओं से निपटने के लिए हर जिले में वरिष्ठ पुलिस पुलिस अफसर को नोडल अफसर नियुक्त करे। जो ये सुनिश्चित करे कि कोई भी विजिलेंटिज्म ग्रुप कानून को अपने हाथों में ना ले। अगर कोई घटना होती है तो नोडल अफसर कानून के हिसाब से कारवाई करे। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस ए एम खानवेलकर की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को डीजीपी के साथ मिलकर हाईवे पर पुलिस पेट्रोलिंग को लेकर रणनीती तैयार करने को कहा है। कोर्ट ने दो हफ्ते में सभी नोडल अफसरों की सूची हलफनामे के जरिए कोर्ट में दाखिल करने को कहा है।

    वहीं सुप्रीम कोर्ट ने ASG तुषार मेहता को कहा है कि वो केंद्र से पक्ष पूछकर बताएं कि इस मामले में क्या वो राज्यों को निर्देश जारी कर सकता है या नहीं ?

    गौरक्षा के नाम पर बने संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सख्ती  दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जारी किए हैं।

    तुषार गांधी की ओर से दाखिल हस्तक्षेप याचिका पर पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि देशभर में गौरक्षा के नाम पर 66 वारदाते हुई हैं। केंद्र सरकार कह रही है कि ये राज्यों का मामला है जबकि संविधान के अनुसार केंद्र को राज्यों को दिशा निर्देश जारी करने चाहिए। वहीं तीन राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने कहा कि राज्य इस संबंध में कदम उठा रहे हैं। उन्हें जवाब देने के लिए कुछ वक्त चाहिए।कोर्ट में मामले पर अगली सुनवाई 22 सितंबर  को होगी।

    गौरक्षा के नाम पर बने संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की माँग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।  पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 6 राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।गुजरात, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक को नोटिस जारी किया था। वहीं केंद्र सरकार ने इस मामले में पल्ला झाडते हुए कहा था कि ये कानून व्यवस्था का मामला है और राज्य सरकारें एेसे मामलों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कारवाई कर रही है। केंद्र ने ये भी कहा था कि इस तरीके से कानून को हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

    पिछली सुनवाई में इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और छह राज्य सरकारों से जवाब माँगा था लेकिन जवाब दाखिल ना करने पर नोटिस जारी किया गया था। तहसीन पूनावाला और दो अन्य ने याचिका में गौरक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा रोकने की माँग की है और कहा है कि ऐसी हिंसा करने वाले संगठनों पर उसी तरह से पाबंदी लगाई जाए जिस तरह की पाबंदी सिमी जैसे संगठन पर लगी है।

    याचिका में कहा गया है कि देश में कुछ राज्यों में गौरक्षा दलों को सरकारी मान्यता मिली हुई है जिससे इनके हौंसले बढ़े हुए हैं। माँग की गई है कि गौरक्षक दलों की सरकारी मान्यता समाप्त की जाए।याचिका के साथ में गौरक्षक दलों की हिंसा के वीडियो और अखबार की कटिंग लगाई गई हैं और अदालत से इनका संज्ञान लेने को कहा गया है।याचिका में कहा गया है कि गौशाला में गाय की मौत और गौरक्षा के नाम पर गौरक्षक कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं। याचिका में उत्तर प्रदेश, महाराष्टï, गुजरात, और कर्नाटक के उस कानून को असंवैधानिक करार देने की गुहार की गई है, जिसमें गाय की रक्षा के लिए निगरानी समूहों के पंजीकरण का प्रावधान है।

    याचिका में कहा गया कि गौरक्षा निगरानी समूह कानून केदायरे से बाहर जाकर काम कर रहे हैं। गौरक्षा केनाम पर गौरक्षक अत्याचार कर रहे हैं और उनकेद्वारा किए जाने वाले अपराध न केवल भारतीय दंड संहिता के दायरे में हैं बल्कि एससी/एसटी एक्ट, 1989 के दायरे में भी है।

    याचिका में 'सलवा जूदूम (नक्सल विरोधी समूह) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2011 में दिए उस फैसले का हवाला दिया गया है जिसमें सलवा जूदूम पर पाबंदी लगाई गई थी।याचिका में कहा गया कि कानून के तहत मिले संरक्षण की वजह से ऐसे लोग हिंसा भड़काने का काम करते हैं और अल्पसंख्यकों और दलितों पर अत्याचार करते हैं।

    मालूम हो कि गुजरात पशु रोकथाम अधिनियम, 1956 के प्रावधानों में कहा गया कि इस अधिनियम के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने वाले लोग सरकारी नौकरी माने जाएंगे। महाराष्टï और कर्नाटक में भी इसी तरह के प्रावधान हैं। याचिका में ऊना और पूर्वी गोदावरी जिले में दलितों की पिटाई की घटना का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ऐसे समूह कानून के शासन के लिए खतरा हैं। साथ ही यह मरे हुए जानवरों का खाल उतारने के पेशे में लगे लोगों के मूल अधिकारों के खिलाफ है।

    Next Story