वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित सारे विज्ञापनों पर सरकारी निगरानी मुमकिन नहीं : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

LiveLaw News Network

5 Sep 2017 9:30 AM GMT

  • वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित सारे विज्ञापनों पर सरकारी निगरानी मुमकिन नहीं : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

    वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों को ब्लॉक करने के मामले सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता साबू मैथ्यू जॉर्ज से सुझाव मांगे हैं कि किस तरह केंद्र की नोडल एजेंसी को प्रभावशाली बनाया जा सकता है जिससे लिंग परीक्षण संबंधी विज्ञापनों पर रोक लगाई जा सके। वहीं केंद्र सरकार ने कहा है कि आपत्तिजनक लिंग परीक्षण सम्बंधित सारे विज्ञापनों की निगरानी सरकारी अधिकारी नहीं कर सकते। ये संभव नहीं है।

    सोमवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच के सामने  केंद्र सरकार की ओर से सॉलीसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि इंटरनेट का दायरा बहुत बड़ा है इसकी निगरानी  कर पाना संभव नही है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फरवरी 18-26 के बीच के सात शिकायतें मिली हैं जिन्हें कारवाई के लिए वेबसाइट के पास भेजा गया है।
    सुनवाई के दौरान माइक्रोसॉफ्ट ने कोर्ट को बताया कि अभी तक आपत्तिजनक लिंग परीक्षण सम्बंधित विज्ञापन को लेकर उनके पास कोई शिकायत नही आई है। वहीं, गूगल की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि जो भी आपत्तिजनक कंटेंट के बारे में उनको शिकायत मिली है उस पर कारवाई की गई है और उसे वेबसाइट से हटा लिया गया है।


    सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नोडल एजेंसी के बारे में सुझाव मांगे है कि वो साइट्स पर आपत्तिजनक लिंग परीक्षण सम्बंधित विज्ञापन को रोकने के लिए और क्या प्रभावी कदम उठा सकती है। सुप्रीम कोर्ट 24 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई करेगा। दरअसल वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों का मामले में सुप्रीम कोर्ट अहम सुनवाई कर रहा है।  सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि कि एेसे विज्ञापन ब्लाक करने से क्या राइट टू इंफोरमेशन यानी सूचना प्राप्त करने के अधिकार का हनन होता है ?


    हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जानकारी प्राप्त करना, बुद्धिमता और सूचना प्राप्त करना सभी का अधिकार है लेकिन ये भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इससे देश के किसी कानून का उल्लंघन ना होता हो।
    पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को लिंग परीक्षण संबंधी जानकारियों को डिलीट करने के लिए अंदरूनी एक्सपर्ट कमेटी नियुक्त करने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इन कंपनियों को कहा था कि आपको देश के कानून का सम्मान और पालन करना होगा जो लिंग संबंधी परीक्षण पर रोक लगाता है। आप किसी देश के कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते, आपको कानून के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।
    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इन मेटेरियल पर नजर रखने के लिए बनाई नोडल एजेंसी पर मुहर लगाई थी और सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र एक हफ्ते के भीतर इस नोडल एजेंसी के बारे में प्रचार कर लोगों को जानकारी दे।

    वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हो रही है।
    पहले सुनवाई में आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट कहा था कि  सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण पर दिए गए विज्ञापन 36 घंटे में डीलीट करने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने ही केंद्र को ऐसे विज्ञापनों की शिकायत दर्ज करने के लिए नोडल एजेंसी का गठन करने का आदेश भी दिया था।  यह एजेंसी शिकायतों को सर्च इंजनों को देगी और फिर सर्च इंजन ऐसी सूचनाओं और विज्ञापनों को 36 घंटे में हटाएंगे।

    सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे विज्ञापनों पर कड़ी नाराजगी जाहिर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे हालात हो गए हैं कि लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं। लड़का कैसे होगा और लड़की कैसे होगी? ऐसी जानकारी की देश में कोई जरूरत नहीं। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वेबसाइट पैसा कमाएं या ना कमाएं, लेकिन ऐसे विज्ञापनों को इजाजत नहीं दी जा सकती जो देश में लिंगानुपात को प्रभावित करें। इन विज्ञापनों को वेबसाइटों के कॉरीडोर से देश में आने की मंजूरी नहीं देंगे। ये विज्ञापन सीधे-सीधे PNDT एक्ट का उल्लंघन हैं।

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