रोहिंग्या मुस्लिमों के निर्वासन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी, सोमवार को सुनवाई

LiveLaw News Network

1 Sep 2017 11:53 AM GMT

  • रोहिंग्या मुस्लिमों के निर्वासन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी, सोमवार को सुनवाई

    बर्मा से भागकर भारत आए रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस बर्मा भेजने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट सोमवार चार सितंबर को अर्जी पर सुनवाई करेगा।

    शुक्रवार को वकील प्रशांत भूषण ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच के सामने मामले को रखा।

    ये याचिका दो शरणार्थियों ने दाखिल की है जिन्होंने 14 अगस्त 2017 की रॉयटर की खबर का हवाला दिया है। इसके तहत केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को गैरकानूनी रूप से देश में रह रहे सभी विदेशी नागरिकों, जिनमें रोहिंग्या भी शामिल हैं, उनकी पहचान करने और निर्वासित करने के आदेश दिए हैं। रोहिंग्या बौध धर्म बहुलता वाले बर्मा में कारवाई का सामना कर रहे हैं। देश में इस वक्त करीब 40 हजार रोहिंग्या मुस्लिम बताए जा रहे हैं।

    याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार का ये कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 51 ( C) के खिलाफ है। उनका ये भी कहना है कि ये अवापसी नियम के सिद्धांत के भी खिलाफ है जिसमें कहा गया है कि किसी भी शरणार्थी को एेसे देश में वापस नहीं भेजा जाएगा जहां उसकी जान का खतरा हो। अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत याचिकाकर्ता व अन्य रोहिंग्या को राहत मिलेगी जो बर्मा में खूनी खेल, कारवाई और हिंसा से बचकर भारत आए हैं।

    अर्जी में UNHRC की 2016 की रिपोर्ट को भी शामिल किया गया जिसमें बर्मा में अथॉरिटी द्वारा रोहिंग्या मुस्लिम के जीने के अधिकार, स्वतंत्रता और सुरक्षा को लेकर मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का जिक्र किया गया है। ये भी कहा गया है कि उन्हें बर्मा की नागरिकता नहीं दी गई है जिसके कारण ये मामले और बढ गए हैं।

    सुप्रीम कोर्ट को ये भी बताया गया है कि रोहिंग्या मुस्लिमों के साथ बर्मा में किस तरह का बर्बर बर्ताव किया जा रहा है। खासतौर से महिलाओं व बच्चों के साथ हिंसा की जा रही है। उन्हें सिगरेट से जलाया जा रहा है। दाढी जलाई जा रही है। टार्चर किया जा रहा है, अवैध तौर पर हिरासत में रखा जा रहा है और मेडिकल सुविधाएं देने से इंकार किया जा रहा है। साथ ही उनका  यौन शौषण भी किया जा रहा है।

    अर्जी में कहा गया है कि भारत में शरणार्थियों की सुरक्षा को लेकर कोई कानून नहीं है और एेसे में UNHRC के नियमों को ही आधार माना जाता है। इसके तहत उन्हें देश में रहने की इजाजत दी जाती है।

    याचिका में इसी आधार पर रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत में ही रहने और उपयुक्त सुविधाएं दिलाने की मांग की गई है।

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