1984 सिख विरोधी हिंसा के बंद मामलों की छानबीन करेंगे जस्टिस पांचाल और जस्टिस राधाकृष्णन, तीन महीने में सौपेंगे रिपोर्ट
LiveLaw News Network
1 Sept 2017 1:03 PM IST
1984 सिख विरोधी हिंसा मामले में एक बडा कदम उठाते हुए SIT द्वारा छंटनी के बाद बंद किए गए 241 केसों की छानबीन के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो रिटायर जजों के सुपरवाइजरी पैनल का एेलान कर दिया है। इस पैनल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस जे एम पांचाल और जस्टिस के एस पी राधाकृष्णन को शामिल किया गया है। फैसले के मुताबिक दोनों जज पांच सितंबर 2017 से काम शुरु करेंगे और तीन महीने में रिपोर्ट देंगे. ये पैनल रिकार्ड देखने के बाद ये तय करेगा कि केस बंद करने का फैसला सही है या नहीं। इन केसों को दोबारा जांच के लिए शुरु किया जाए या नहीं ? पैनल शुरुआत में ही बंद किए गए 199 केसों के अलावा 42 अन्य मामलों की फाइलों को देखेगा। कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार पैनल को इसके लिए पूरी मदद करेगी।
16 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने SIT द्वारा छटनी से बाद बंद किए गए केसों की छानबीन के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो रिटायर जजों के सुपरवाइजरी पैनल का गठन किया था। कोर्ट ने कहा है किये पैनल रिकार्ड देखने के बाद ये तय करेगा कि केस बंद करने का फैसला सही है या नहीं। क्या केस बंद करने के पीछे SIT का निर्णय तर्कसंगत सही है या नहीं।ये आदेश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा था कि वो जजों के नाम बाद में घोषित करेंगे।
1984 सिख विरोधी हिंसा मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। सुनवाई के दौरान ASG तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया था कि SIT ने 199 केस शुरु में ही बंद कर दिए थे। इसके अलावा 59 मामलों की जांच की गई जिनमें से 42 केसों को बंद करने का फैसला लिया गया है जबकि 8 केसों में चार्जशीट दाखिल की गई है। शेष पांच मामलों में अभी जांच चल रही है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अरविंद दातार और एचएस फुल्का ने मांग कि कि इन बंद केसों की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जजों से जांच कराई जानी चाहिए।
पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 199 फाइलें कोर्ट में दाखिल की थीं। जांच दल(एसआईटी) द्वारा 1984 दंगों से संबंधित 293 में से 241 मामलों को बंद करने के निर्णय पर 'संदेह जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार इनमें में 199 मामलों को बंद करने के कारण बताने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह जानना चाहा कि आखिर किन आधारों पर इन मामलों की जांच आगे नहीं बढ़ाई गई। इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा कि इस घटना को 33 वर्ष बीत गए हैं। उन्होंने कहा कि पीडितों और चश्मदीदों की खोज-खबर नहीं है। ऐसे में जांच कैसे संभव है ?
वहीं दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार ने अटॉर्नी जनरल की दलीलों का विरोध करते हुए कहा था कि अब तक यह जानकारी सार्वजनिक नहीं है कि आखिरकार एसआईटी ने 80 फीसदी मामलों को क्यों बंद कर दिया। उन्होंने बताया कि ट्रायल कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट नहीं दाखिल की गई है। उन्होंने कहा कि यह तो पता चलना ही चाहिए कि आखिरकार इन मामलों को क्यों बंद किया गया।
दरअसल 1984 में हुई सिख विरोधी हिंसा को लेकर चल रही SIT जांच के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की स्टेटस रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा था कि इन मामलो की जांच के लिए एक हाई लेवल कमेटी बनाने का जरूरत है जो मामलों की जांच और डे टू डे ट्रायल की निगरानी कर सके। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में मामलों के लिए गठित SIT की निगरानी करने और जांच व ट्रायल में तेजी लाने के आदेश देने की मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी। केंद्र की रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंसा से जुडे 650 केस दर्ज किए गए थे जिनमें से 293 केसों की SIT ने छानबीन की थी। रिकार्ड खंगालने के बाद इनमे से 239 केस SIT ने बंद कर दिए हैं। इनमे 199 केस सीधे सीधे बंद कर दिए गए।
कुल 59 मामलों की दोबारा जांच शुरु की गई जिसमें चार मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई जबकि इनमें से दो मामलों को बंद किया जाएगा क्योंकि आरोपियों की मौत हो चुकी है।