सुप्रीम कोर्ट ने दिलाया सिविल जज को उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा में बैठने का मौका

LiveLaw News Network

30 Aug 2017 8:29 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने दिलाया सिविल जज को उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा में बैठने का मौका

    कभी कभी जजों को भी अधिकारों को लेकर अपने ही संस्थान से कानूनी लडाई लडनी पड जाती है। एक एेसे ही मामले में उतराखंड के एक सिविल जज को सुप्रीम कोर्ट ने उतराखंड उच्च न्यायिक सेवा की मुख्य परीक्षा में बैठने का मौका दिलाया।

    जस्टिस जे चेलामेश्वर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच के आदेश के बाद 25-26 अगस्त को उतराखंड में हुई मुख्य परीक्षा में कोटद्वार के सिविल जज भवदीप रावत्रे को हिस्सा लेने का मौका मिल पाया। जज की अर्जी पर 23 अगस्त को फैसला देते हुए बेंच ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को मुख्य परीक्षा में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं दी गई तो सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश की अहमियत नहीं रहेगी। कोर्ट ने उतराखंड हाईकोर्ट को आदेश दिया कि जज के परिणाम को घोषित किया जाए और अगर जज प्रारम्भिक परीक्षा में पास हुए हैं तो उन्हें मेन परीक्षा में बैठने दिया जाए। कोर्ट ने ये भी कहा कि उन्हें बताया गया है कि अनुसूचित जाति के एक आवेदक के 45 अंक आए हैं और उन्हें मेन परीक्षा के लिए चयन किया गया है। चूंकि सिविल जज भी अनुसूचित जाति से हैं और अगर इतने अंक आते हैं तो उन्हें भी मौका मिलना चाहिए।

    दरअसल कोटद्वार के सिविल जज भवदीप रावत्रे ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उन्हें प्रारंभिक परीक्षा में बैठने दिया गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के मुताबिक परिणाम होल्ड किया गया है। चूंकि इस परीक्षा में पास हो गए हैं इसलिए 26 अगस्त को होने वाली मुख्य परीक्षा देने की इजाजत दी जाए।

    दरअसल 24 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने रुद्रपुर के एडिशनल सिविल जज राहुल कुमार श्रीवास्तव, कोटद्वार के सिविल जज भवदीप रावत्रे और कोटद्वार के ही सिविल जज योगेंद्र कुमार सागर को हाईकोर्ट के नियम पर रोक लगाते हुए उत्तराखंड हायर ज्यूडिशियल सर्विस की परीक्षा में बैठने की इजाजत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जजों की याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

    गौरतलब है कि तीनों जजों ने हाईकोर्ट के उतराखंड हायर ज्यूडिशियल सर्विस एक्ट 2004 के उस नियम को चुनौती दी है जिसमें कहा गया है कि उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा के लिए सात साल के अनुभव वाले वकील ही आवेदन कर सकते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों के वकील रजत शर्मा और राम किशोर सिंह यादव ने कहा कि इन जजों के पास वकालत का अनुभव नहीं है लेकिन वे इससे ज्यादा वक्त से जज रहे हैं और उन्हें कानून का अनुभव है। ऐसे में अगर वे इस परीक्षा में शामिल नहीं हो पाते तो यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन होगा.

    उन्होंने दलील दी कि इससे पहले हैदराबाद के एक जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट इस नियम पर रोक लगा चुका है। कई हाईकोर्ट नियमों में बदलाव कर चुके हैं और जजों को भी इसमें शामिल कर चुके हैं।

    सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए हाईकोर्ट के नियम पर रोक लगा दी थी और तीनों जजों को 25 जून को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में बैठने की इजाजत दे दी।  सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था और कहा था कि अगले आदेश तक जजों की परीक्षा का परिणाम होल्ड पर रहेगा। हालांकि मुख्य परीक्षा में बैठने के लिए शेष दो जजों ने अर्जी नहीं दी थी।

    Next Story