दोषी व्यक्ति हिरासत से रिहाई के लिए हेबियस कॉर्पस याचिका दायर नहीं कर सकता: उड़ीसा हाइकोर्ट ने माओवादी नेता सब्यसाची पांडा को राहत देने से किया इनकार
Amir Ahmad
8 April 2024 1:47 PM IST
उड़ीसा हाइकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दोषी व्यक्ति के साथ-साथ विचाराधीन कैदी भी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के उल्लंघन के आधार पर वैध कारावास/हिरासत से रिहाई के लिए हेबियस कॉर्पस याचिका के तहत उपाय का दावा नहीं कर सकता।
माओवादी नेता सब्यसाची पांडा को राहत देने से इनकार करते हुए जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस मृगांका शेखर साहू की खंडपीठ ने कहा,
“जहां याचिकाकर्ता विचाराधीन और दोषी व्यक्ति के रूप में हिरासत में है, वहां यह नहीं कहा जा सकता कि उसके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ। इसलिए हमें रिहाई के उद्देश्य से उसे पेश करने का निर्देश देने में विवेक का प्रयोग करने के लिए राजी करना चाहिए।”
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने जेल हिरासत से रिहाई के लिए हेबियस कॉर्पस याचिका दायर की है, जहां वह पिछले नौ वर्षों से 131 मामलों में विचाराधीन कैदी के रूप में बंद है। यह बताया गया कि उन 131 मामलों में से 89 में उसे बरी कर दिया गया।
इसके अलावा, यह भी पता चला कि याचिकाकर्ता को ऐसे मामले में दोषी ठहराया गया, जिसमें उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उक्त सजा के आदेश को चुनौती दी गई, जो हाइकोर्ट के समक्ष लंबित है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील रायगुरु ने डी. अनीता माझी मिला एवं अन्य बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य में हाइकोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें न्यायालय ने कुछ आदिवासी महिला उग्रवादियों के खिलाफ इस आधार पर मुकदमे में तेजी लाने का आदेश दिया कि उन्हें 8 वर्षों से जेल में रखा गया। इसने यह भी आदेश दिया कि यदि तय समय सीमा के भीतर मुकदमा पूरा नहीं होता है तो उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायालय ने डी. अनीता माझी (सुप्रा) के फैसले का अवलोकन करने के बाद स्पष्ट किया कि उसमें पीठ ने कहा कि जब तक रिट न्यायालय को यह संतुष्टि न हो कि किसी व्यक्ति को अधिकार क्षेत्र के अभाव या पूर्ण अवैधता के दोष से ग्रस्त किसी आदेश के आधार पर कैद किया गया, तब तक हेबियस कॉर्पस रिट जारी नहीं की जा सकती।
उस मामले के तथ्यों को अलग करते हुए उसने नोट किया कि न्यायालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए उस मामले में मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश दिया कि गरीब आदिवासी महिलाओं को 8 वर्षों तक जेल में रखा गया। इसमें यह भी निर्देश दिया गया कि यदि तय अवधि के भीतर मुकदमा पूरा नहीं होता है तो वे महिलाएं जमानत पर रिहा होने की हकदार होंगी।
उपर्युक्त पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता इस आधार पर हेबियस कॉर्पस रिट जारी करने की मांग नहीं कर सकता कि उसके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है। खासकर तब जब उसे न केवल विचाराधीन कैदी के रूप में बल्कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे अपराधी के रूप में भी हिरासत में रखा गया।
खंडपीठ ने यह कहते हुए आवेदन का निपटारा कर दिया कि इस मामले के तथ्य असाधारण रिट अधिकारिता के प्रयोग को उचित नहीं ठहराते है, क्योंकि इससे न्यायिक कार्यवाही की बहुलता भी पैदा होगी।
केस टाइटल- सब्या सचि पांडा @ सुनील @ सरत बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।