पोते के पालन-पोषण के लिए दादा-दादी का स्नेह अटूट अंग, उन्हें भी मुलाकात का अधिकार: ओडिशा हाईकोर्ट
Amir Ahmad
5 Nov 2025 6:06 PM IST

ओडिशा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में एक दो वर्षीय बच्चे के पिता और दादा-दादी को उससे मिलने का अधिकार प्रदान किया। न्यायालय ने कटक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मुलाकात के अधिकार की याचिका को खारिज कर दिया गया था।
जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की एकल पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए दादा-दादी और पोते-पोती के बीच भावनात्मक बंधन और स्नेह महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में दादा-दादी बच्चों के पालन-पोषण का एक अभिन्न अंग होते हैं और उनके स्नेह और योगदान को नजरअंदाज या खत्म नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने टिप्पणी की कि दादा-दादी परिवार का सहायक अंग और हिस्सा होने के नाते, बच्चे के कल्याण का रास्ता तय करते हैं।
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता-पति और विपक्षी-पत्नी का विवाह अप्रैल 2021 में हुआ था और दिसंबर, 2023 में एक बेटा पैदा हुआ था। जनवरी 2024 में पत्नी अपने तीन सप्ताह के बच्चे के साथ मायके चली गई, जिसके बाद उसने पति और ससुर के खिलाफ IPC की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 354 (छेड़छाड़), 498ए (क्रूरता) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी।
पिता ने अपने बेटे से मिलने का अधिकार पाने के लिए फैमिली जज, कटक के समक्ष सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 151 के तहत एक आवेदन दायर किया था। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी थी कि पिता को बच्चे से बार-बार मिलने की अनुमति देने से मां और बच्चे को नुकसान होने की आशंका है।
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इस निष्कर्ष को अमान्य करार दिया और कहा कि यह रिकॉर्ड पर मौजूद किसी भी सामग्री पर आधारित नहीं है बल्कि केवल अनुमानों और अटकलों पर आधारित है।
जस्टिस मिश्रा ने टिप्पणी की,
“एक स्वाभाविक पिता जो अपने बेटे से मिलने के लिए व्याकुल है और कानूनी लड़ाई लड़ रहा है, उसे अपने बेटे या पत्नी को कोई नुकसान पहुँचाने वाला नहीं माना जा सकता जैसा कि निचली अदालत ने गलत तरीके से आशंका व्यक्त की है।”
कोर्ट ने यशिता साहू बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (2020) में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि बच्चे को माता-पिता दोनों का प्यार और स्नेह पाने का मानवीय अधिकार है। कोर्ट ने दोहराया कि अभिरक्षा या मुलाकात के मामलों में बच्चे का कल्याण सर्वोपरि होता है।
अदालत ने कहा,
भले ही अभिरक्षा एक माता-पिता के पास हो दूसरे माता-पिता को भी पर्याप्त पहुंच मिलनी चाहिए जब तक कि असाधारण परिस्थितियां इसके विपरीत न हों।
दादा-दादी के मुलाकात के अधिकार के संबंध में कोर्ट ने कहा कि उनके साथ स्नेहपूर्ण संबंध बच्चे के सामान्य विकास के लिए फायदेमंद होता है।
पीठ ने फैसला सुनाया,
"इसलिए इस न्यायालय का मत है कि याचिकाकर्ता-पिता के मुलाकात के अधिकार के अतिरिक्त, दादा-दादी को भी उचित पहुंच/मुलाकात के अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है, जो बच्चे के सामान्य विकास में भी मदद करेगा।"
परिणामस्वरूप फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया गया और पिता तथा दादा-दादी को बच्चे से मिलने का अधिकार दिया गया। कोर्ट ने मुलाकात के अधिकार के लिए विस्तृत नियम भी निर्धारित किए जिसके तहत यह व्यवस्था तब तक जारी रहेगी जब तक बच्चा पांच वर्ष का नहीं हो जाता।

