तेलंगाना हाईकोर्ट राजनीतिक भाषणों पर FIR दर्ज करने पर रोक लगाई, सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़े मामलों में जारी कीं विस्तृत गाइडलाइन्स
Amir Ahmad
11 Sept 2025 2:29 PM IST

तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा कि कठोर, आपत्तिजनक या आलोचनात्मक राजनीतिक भाषणों पर पुलिस को स्वचालित या यांत्रिक ढंग से FIR दर्ज नहीं करनी चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि सोशल मीडिया पोस्ट के मामलों में केवल तभी FIR दर्ज की जा सकती है, जब साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने, सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा पहुंचाने या हिंसा भड़काने का स्पष्ट प्रथम दृष्टया मामला बने।
जस्टिस एन. तुकारामजी ने विस्तृत आदेश पारित करते हुए कहा कि राजनीतिक अभिव्यक्ति से जुड़े मामलों में FIR दर्ज करने से पहले अनिवार्य रूप से विधिक राय ली जानी चाहिए ताकि मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके और आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
यह आदेश नल्ला बालू नामक व्यक्ति के विरुद्ध दर्ज तीन FIR रद्द करते हुए दिया गया। बालू पर आरोप था कि उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री की आलोचना करते हुए अभद्र भाषा का प्रयोग किया। इन FIR को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं 192, 352, 353(1)(b), 356 और धारा 61(2) (आपराधिक साज़िश) के तहत दर्ज किया गया।
अदालत द्वारा जारी प्रमुख दिशा-निर्देश :
1. लोगस स्टैंडी की जांच : मानहानि जैसे मामलों में पुलिस यह सुनिश्चित करे कि शिकायतकर्ता पीड़ित व्यक्ति हो, न कि कोई असंबद्ध तीसरा पक्ष।
2. प्रारंभिक जांच : संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर पुलिस FIR दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच करे।
3. उच्च मानदंड : केवल वही भाषण/पोस्ट दंडनीय होंगे जो हिंसा घृणा या सार्वजनिक अव्यवस्था भड़काने की क्षमता रखते हों।
4. राजनीतिक भाषण की रक्षा : कठोर या आलोचनात्मक राजनीतिक भाषण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) के दायरे में संरक्षित हैं।
5. मानहानि गैर-संज्ञेय अपराध : मानहानि पर सीधे FIR नहीं होगी; मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक है।
6. गिरफ़्तारी पर नियंत्रण : Arnesh Kumar v. State of Bihar के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य है स्वत: गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
7. पूर्व विधिक राय अनिवार्य : संवेदनशील मामलों में अभियोजन पक्ष की कानूनी राय लेना ज़रूरी होगा।
8. तुच्छ/राजनीतिक शिकायतें खारिज : यदि शिकायत दुर्भावनापूर्ण या राजनीतिक रूप से प्रेरित हो तो पुलिस उसे बंद कर दे।
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के पोस्ट यद्यपि आलोचनात्मक थे किंतु वे संविधान द्वारा संरक्षित राजनीतिक अभिव्यक्ति के दायरे में आते हैं। शिकायतों में अश्लील सामग्री पोस्ट की तारीख या सार्वजनिक व्यवस्था पर वास्तविक प्रभाव का कोई ठोस विवरण नहीं था।
हाईकोर्ट ने कहा कि इन परिस्थितियों में दर्ज FIR कानून की दृष्टि से अस्थिर एवं प्रक्रिया का दुरुपयोग है। अधिकतम यह मामला मानहानि के दायरे में आ सकता है, जो कि गैर-संज्ञेय अपराध है और जिसमें पीड़ित व्यक्ति की प्रत्यक्ष शिकायत आवश्यक होती है। तीसरे पक्ष की शिकायत पर इस तरह की कार्यवाही कानूनन अस्वीकार्य है।

