लोन गारंटी विवाद में हस्ताक्षरों की तुलना करते समय सेल्स डीड की प्रमाणित कॉपी मूल डीड के स्थान पर स्वीकार्य नहीं: तेलंगाना हाइकोर्ट
Amir Ahmad
11 March 2024 4:02 PM IST
तेलंगाना हाइकोर्ट ने माना कि लोन गारंटी विवाद में हस्ताक्षरों की तुलना करने का प्रयास करते समय रजिस्टर्ड सेल्स डीड की प्रमाणित कॉपी मूल दस्तावेजों के लिए स्वीकार्य विकल्प नहीं है।
यह निर्णय ऐसे मामले से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता (ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रतिवादी) ने लोन गारंटी समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया और विवादित समझौते के साथ तुलना के लिए अपने हस्ताक्षर वाली सेल्स डीड की प्रमाणित कॉपी भेजने की मांग की।
वादी ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष कथित तौर पर प्रतिवादी/याचिकाकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित वचन पत्र और लोन गारंटी समझौते के आधार पर धन की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया।
प्रतिवादी/याचिकाकर्ता ने यह दावा करते हुए गारंटी समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया कि उसके हस्ताक्षर जाली हैं। अपने बचाव में उसने अदालत से विवादित समझौते पर अपने हस्ताक्षर को किसी अन्य दस्तावेज़ पर अपने हस्ताक्षर के साथ तुलना करने के लिए भेजने का अनुरोध किया। ट्रायल कोर्ट ने शुरू में इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
हालांकि, उक्त जांच का काम करने वाली फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) ने प्रतिवादी के स्वीकृत हस्ताक्षर जैसे चेक बैंक अकाउंट खोलने के फॉर्म आदि वाले दस्तावेजों की मूल कॉपी का अनुरोध करने वाले दस्तावेजों को वापस कर दिया।
इसके बाद प्रतिवादी/याचिकाकर्ता ने आवेदन दायर कर अपने हस्ताक्षर वाली रजिस्टर्ड सेल्स डीड की प्रमाणित प्रति भेजने की अनुमति मांगी।
इनकार के खिलाफ अपील की गई, जिससे वर्तमान याचिका सामने आई और मामले को विचार-विमर्श के लिए जस्टिस के. लक्ष्मण के समक्ष रखा गया।
बर्खास्तगी बरकरार रखते हुए बेंच ने कहा कि FSL ने विशेष रूप से हस्ताक्षर वाले दस्तावेजों की मूल कॉपी का अनुरोध किया, न कि सेल्स डीड की प्रमाणित प्रति का किया।
आगे यह माना गया कि सेल्स डीड 2013 का है, जो 2019 के विवादित समझौते से पहले का है। इसलिए यह समसामयिक दस्तावेज़ नहीं है, जो समय के साथ हस्ताक्षर के फॉर्म की प्रासंगिकता पर सवाल उठाता है।
आगे यह कहा गया,
“उल्लेखनीय है कि सेल्स डीड की उपरोक्त प्रमाणित प्रति वर्ष 2013 से संबंधित है, जबकि विषय लोन गारंटी समझौते/बॉन्ड को वर्ष 2019 में निष्पादित किया गया। इसलिए उक्त सेल्स डीड समसामयिक दस्तावेज नहीं है। यह कोई मूल दस्तावेज़ नहीं है। प्रमाणित कॉपी FSL अधिकारियों की आवश्यकताओं के अनुसार आवश्यक दस्तावेज नहीं है। सामान्य तौर पर हस्ताक्षर की तुलना के लिए मूल दस्तावेज की आवश्यकता होती है। इसलिए उक्त आवेदन को खारिज कर दिया गया।
अंत में अदालत ने कहा कि प्रतिवादी यह बताने में विफल रही कि वह FSL द्वारा मांगी गई मूल प्रतियां क्यों नहीं पेश कर सकी, भले ही उसने संपत्ति खरीदने का दावा किया था।
यह निष्कर्ष निकाला,
“इसके अलावा याचिकाकर्ता ने अपने हलफनामे में यह नहीं बताया कि उसके पास चेक बुक सहित कोई बैंक अकाउंट नहीं है, सिवाय इसके कि उसके पास उपरोक्त दस्तावेज नहीं हैं। दरअसल, याचिकाकर्ता खुद स्वीकार करती है कि उसने अचल संपत्ति खरीदी है। जब उसने अचल संपत्ति खरीदी तो मूल दस्तावेज उसके पास अवश्य होना चाहिए।”
तदनुसार, न्यायालय ने पाया कि जालसाजी के अपने दावे को स्थापित करने का भार प्रतिवादी पर है और विशिष्ट दस्तावेजों के अनुरोध के लिए FSL की स्पष्टीकरण की कमी को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने प्रतिवादी के दृष्टिकोण को अपर्याप्त पाया।
इसलिए याचिका खारिज कर दी गई