क्या चैरिटेबल ट्रस्ट उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता है? सुप्रीम कोर्ट जांच करेगा

Shahadat

12 Sept 2024 9:45 AM IST

  • क्या चैरिटेबल ट्रस्ट उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता है? सुप्रीम कोर्ट जांच करेगा

    सुप्रीम कोर्ट 18 सितंबर को इस मुद्दे पर सुनवाई करेगा कि क्या चैरिटेबल ट्रस्ट उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (Consumer Under Consumer Protection Act) के तहत 'उपभोक्ता' के रूप में मुकदमा चला सकता है और मुआवज़ा मांग सकता है।

    जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पक्षों को निर्देश दिया कि वे इस मुद्दे पर न्यायालय को संबोधित करते समय उन निर्णयों का संकलन दाखिल करें जिन पर वे भरोसा करने जा रहे हैं।

    न्यायालय ने कहा,

    "मुख्य मामले में याचिकाकर्ताओं का पक्ष उन निर्णयों का संकलन दाखिल करेगा, जिन पर वे भरोसा करने जा रहे हैं। यहां तक ​​कि प्रतिवादी भी मुख्य मामले में उन निर्णयों का संकलन दाखिल करेंगे जिन पर वे भरोसा करने जा रहे हैं।"

    जस्टिस ओक ने टिप्पणी की,

    "यह मुद्दा कई मामलों में उठेगा। इसे अगले बुधवार को रखें।"

    इस मामले को 2019 में जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने बड़ी पीठ को सौंप दिया था।

    यह मामला तब उठा जब जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, जोधपुर ने शिकायतकर्ता ट्रस्ट के दावे को स्वीकार कर लिया और प्रतिवादियों को 5,90,000 रुपये मुआवजे के रूप में 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया।

    हालांकि, जयपुर में राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने इस फैसले को पलट दिया। फैसला सुनाया कि अधिनियम के तहत ट्रस्ट को "उपभोक्ता" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। इसे राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने बरकरार रखा। इस प्रकार, शिकायतकर्ता ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    प्रतिभा प्रतिष्ठान बनाम केनरा बैंक (2017) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया, जिसमें कहा गया कि ट्रस्ट "व्यक्ति" नहीं है और इसलिए अधिनियम के तहत "उपभोक्ता" नहीं है।

    हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(एम) के तहत "व्यक्ति" की समावेशी परिभाषा जिसमें फर्म, हिंदू अविभाजित परिवार, सहकारी समितियां और व्यक्तियों के अन्य संघ शामिल हैं, चाहे वे पंजीकृत हों या नहीं, संभावित रूप से ट्रस्ट को भी कवर कर सकती है।

    धारा 2(1)(बी) "शिकायतकर्ता" को उपभोक्ता स्वैच्छिक उपभोक्ता संघ, केंद्र या राज्य सरकार या मृतक उपभोक्ता के मामले में कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में परिभाषित करती है। धारा 2(1)(डी) एक "उपभोक्ता" को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करती है, जो विचार के लिए सामान खरीदता है या सेवाओं का लाभ उठाता है, उन लोगों को छोड़कर जो उन्हें पुनर्विक्रय या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए प्राप्त करते हैं।

    पीठ ने रमनलाल भाईलाल पटेल बनाम गुजरात राज्य का भी उल्लेख किया, जहां यह नोट किया गया कि "व्यक्ति" शब्द में कानून द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाएं शामिल हैं, जो अधिकार और कर्तव्य रखने में सक्षम हैं।

    खंडपीठ ने राय दी कि "उपभोक्ता" की परिभाषा से ट्रस्टों को बाहर करना विधायी मंशा के अनुरूप नहीं हो सकता। मामले को एक बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने के लिए संदर्भित किया।

    केस टाइटल- प्रशासक तारा बाई देसाई चैरिटेबल ऑप्थेल्मिक ट्रस्ट हॉस्पिटल, जोधपुर बनाम प्रबंध निदेशक सुप्रीम एलीवेटर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य।

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