सिविल सेवा परीक्षा में बड़ा बदलाव: UPSC अब प्रीलिम्स के बाद ही जारी करेगा अस्थायी उत्तर कुंजी, सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जानकारी
Amir Ahmad
4 Oct 2025 1:35 PM IST

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब वह सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा के तुरंत बाद अस्थायी उत्तर कुंजी प्रकाशित करेगा। यह आयोग की नीतिगत व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
अब तक UPSC केवल अंतिम परिणाम घोषित होने के बाद ही उत्तर कुंजी जारी करता था। नई व्यवस्था के तहत अभ्यर्थियों को परीक्षा के तुरंत बाद अपने उत्तरों की जांच का अवसर मिलेगा, जिससे चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी।
आयोग ने यह जानकारी एक हलफनामे के माध्यम से उस याचिका के जवाब में दी, जिसमें सिविल सेवा परीक्षा की प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने की मांग की गई थी।
पहले UPSC ने कोर्ट में यह कहा था कि परीक्षा के अगले दिन उत्तर कुंजी जारी करना विपरीत प्रभाव डालने वाला कदम होगा, जिससे परिणामों में देरी और भ्रम पैदा हो सकता है। हालांकि अब आयोग ने 20 सितंबर को दाखिल अपने नए हलफनामे में बताया कि उसने सचेत और विचारपूर्ण निर्णय लेकर इस नीति में बदलाव किया।
नई व्यवस्था के अनुसार प्रीलिम्स परीक्षा के बाद अस्थायी उत्तर कुंजी जारी की जाएगी और अभ्यर्थियों से आपत्तियां आमंत्रित की जाएंगी। प्रत्येक आपत्ति कम-से-कम तीन प्रमाणिक स्रोतों से समर्थित होनी चाहिए। इसके बाद विशेषज्ञ समिति उन आपत्तियों की समीक्षा कर अंतिम उत्तर कुंजी तैयार करेगी, जो परिणाम घोषित करने का आधार बनेगी। अंतिम उत्तर कुंजी हमेशा की तरह मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू के परिणामों के बाद प्रकाशित की जाएगी।
UPSC ने कहा कि यह निर्णय जल्द लागू किया जाएगा। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी तथा अभ्यर्थियों की शिकायतों का समाधान होगा।
आयोग के हलफनामे में कहा गया,
“यह निर्णय न केवल याचिकाकर्ता की शिकायतों का प्रभावी समाधान है, बल्कि UPSC की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता को भी सशक्त करेगा।”
याचिका में यह कहा गया कि UPSC अब तक प्रारंभिक परीक्षा की उत्तर कुंजी अंक और कट-ऑफ केवल अंतिम परिणाम के बाद ही जारी करता है, जबकि पूरी परीक्षा प्रक्रिया लगभग एक वर्ष तक चलती है। इससे वे अभ्यर्थी, जो मुख्य परीक्षा में नहीं पहुंच पाते, अपने प्रदर्शन और अंकों के आधार पर मूल्यांकन नहीं कर पाते।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उत्तर कुंजी और कट-ऑफ देर से जारी होने से अभ्यर्थियों को पूर्ण अंधकार में रखा जाता है और वे यह भी नहीं जान पाते कि उनकी अस्वीकृति का कारण क्या था।
मामला अब 6 अक्टूबर को जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की संभावना है।

