मदरसा शिक्षा अधिनियम रद्द करना गलत, केवल उल्लंघनकारी प्रावधानों को ही निरस्त किया जाना चाहिए: यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

Amir Ahmad

22 Oct 2024 2:49 PM IST

  • मदरसा शिक्षा अधिनियम रद्द करना गलत, केवल उल्लंघनकारी प्रावधानों को ही निरस्त किया जाना चाहिए: यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

    उत्तर प्रदेश राज्य ने मंगलवार (22 अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन 2004 को पूरी तरह से निरस्त नहीं करना चाहिए।

    राज्य की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि हाईकोर्ट को पूरे नियामक ढांचे को निरस्त करने के बजाय केवल उन प्रावधानों को निरस्त करना चाहिए, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड 2004 को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में हाईकोर्ट के फैसले के क्रियान्वयन पर रोक लगाई।

    एएसजी ने न्यायालय को सूचित किया कि राज्य ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कोई विशेष अनुमति याचिका दायर नहीं की, इसे स्वीकार करने का निर्णय लिया।

    सीजेआई ने पूछा,

    "तो क्या आप अधिनियम की वैधता पर कायम हैं? क्योंकि यह राज्य का अधिनियम है। क्या हम इसे रिकॉर्ड पर लेते हैं कि आप अधिनियम की वैधता पर कायम हैं?"

    एएसजी ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष राज्य ने अधिनियम का बचाव करते हुए हलफनामा दायर किया था। इसलिए वह उस रुख से विचलित नहीं हो सकता। हालांकि, अब जबकि हाईकोर्ट ने कानून को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया, राज्य ने निर्णय को स्वीकार करने का निर्णय लिया।

    सीजेआई ने बताया कि राज्य ने (हाईकोर्ट के समक्ष) तर्क दिया कि यदि शिक्षा की गुणवत्ता कम है तो अधिनियम के अनुसार उसके पास हस्तक्षेप करने की शक्तियां हैं।

    नटराज ने जवाब दिया,

    "अधिनियम पूरी तरह से रद्द करना गलत होगा। यह विधायी क्षमता का मामला नहीं है बल्कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है, जिसके लिए पूरा कानून रद्द करने की आवश्यकता नहीं है।"

    उन्होंने बताया कि सरकारी आदेश के अनुसार मदरसा स्कूलों को अन्य स्कूलों के बराबर माना जाता है।

    इस मोड़ पर जस्टिस पारदीवाला ने पूछा,

    "क्या कोई स्टूडेंट जिसने 12वीं तक मदरसे में पढ़ाई की है, उसके बाद जारी किए गए प्रमाण पत्र का उपयोग बी.कॉम डिग्री आदि में प्रवेश पाने के लिए किया जा सकता है?”

    एएसजी ने सकारात्मक जवाब दिया।

    पीठ ने यह भी स्पष्ट करने की मांग की कि क्या मदरसे डिग्री प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं और क्या यह यूजीसी अधिनियम का उल्लंघन होगा। पीठ ने यूजीसी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से इस पहलू पर स्पष्टता मांगी है।

    सीजेआई ने कहा कि भले ही मदरसे डिग्री प्रदान कर रहे हों लेकिन यह यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को रद्द करने का कारण नहीं हो सकता।

    सुनवाई के दौरान सीजेआई ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 1(5) का हवाला दिया, जो मदरसे, वैदिक पाठशालाओं और मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा देने वाले शैक्षणिक संस्थानों को आरटीई अधिनियम से छूट देता है। सीजेआई ने पूछा कि अगर मदरसे धर्मनिरपेक्ष शिक्षा दे रहे हैं तो क्या आरटीई अधिनियम उन पर लागू होगा उन्होंने आश्चर्य जताया कि क्या मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा देने वाले शैक्षणिक संस्थान वाक्यांश को मदरसे से अलग करके पढ़ा जाना चाहिए।

    एएसजी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को अकादमिक विशेषज्ञों द्वारा आधुनिक शिक्षा को शामिल करने के लिए सार्थक व्याख्या दी जानी चाहिए।

    न्यायालय ने सोमवार को याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनी थीं। राज्य ने अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं। न्यायालय दोपहर में NCPCR और अन्य प्रतिवादियों की सुनवाई करेगा।

    केस टाइटल: अंजुम कादरी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य डायरी नंबर 14432-2024, मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया यूपी बनाम भारत संघ एसएलपी (सी) संख्या 7821/2024 और संबंधित मामले।

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