एक बार ऋण निपट जाने के बाद सोने का दोबारा मूल्यांकन कर उसकी नीलामी क्यों हुई, समझ से परे: सुप्रीम कोर्ट ने बैंक मैनेजर के खिलाफ FIR बहाल की
Amir Ahmad
10 Jun 2025 12:24 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारी के खिलाफ गिरवी रखे सोने के कथित दुरुपयोग से जुड़े आपराधिक मामले को फिर से शुरू करने का आदेश दिया।
इसके साथ ही कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया जिसमें FIR खारिज कर दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
“यह कहना जल्दबाज़ी थी कि बैंक अधिकारी की कोई दुर्भावना नहीं थी। धोखाधड़ी या दुरुपयोग हुआ या नहीं, यह एक साक्ष्य का विषय है जो ट्रायल में तय किया जाएगा।”
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता ने बैंक ऑफ इंडिया मोतीझील ब्रांच से 7,70,000 का लोन लिया था और इसके बदले 254 ग्राम 22 कैरेट के सोने के आभूषण गिरवी रखे थे। बाद में जब लोन का भुगतान हुआ तो बैंक ने सोने का दोबारा मूल्यांकन करवाया और उसे नीलाम कर दिया।
अपीलकर्ता के अनुसार उन्होंने 8,01,383.59 (ब्याज सहित) बैंक को चुका दिए थे लेकिन बैंक ने पहले मूल्यांकनकर्ता को हटाकर दूसरे मूल्यांकनकर्ता से पुनर्मूल्यांकन कराया और उनका सोना वापस नहीं किया गया।
बैंक का दावा था कि पहला मूल्यांकनकर्ता सही ढंग से मूल्यांकन नहीं कर पाया और जब सोने का दोबारा मूल्यांकन हुआ तो वह नकली निकला। इसके बाद बैंक ने अपीलकर्ता के खिलाफ IPC की धारा 420 और 379 के तहत FIR दर्ज करवाई।
इसके जवाब में अपीलकर्ता ने भी बैंक मैनेजर के खिलाफ IPC की धारा 420, 406 और 34 के तहत FIR दर्ज करवाई।
बैंक अधिकारी ने पटना हाईकोर्ट में FIR रद्द कराने की याचिका दायर की, जिसे मंजूरी मिल गई थी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा,
“हाईकोर्ट ने मात्र बैंक की फ्रॉड रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी और पहले मूल्यांकनकर्ता को हटाने के आधार पर निष्कर्ष निकाल लिया कि बैंक की कोई गलती नहीं थी। ऐसा निष्कर्ष केवल साक्ष्य के आधार पर ट्रायल में ही निकाला जा सकता है।”
“जब सोने को बैंक ने सुरक्षित रखा था और अपीलकर्ता को उस तक कोई पहुंच नहीं थी तो धोखाधड़ी किस स्तर पर हुई यह सिर्फ ट्रायल के बाद ही स्पष्ट हो सकता है।”
“बैंक ने जिस रास्ते से सोने की नीलामी की, वह प्रक्रियागत रूप से सही नहीं था। इस स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता कि FIR में दर्ज आरोपों से कोई प्रारंभिक मामला नहीं बनता।”
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा FIR रद्द करने के आदेश को 'ग़लत' बताते हुए अपीलकर्ता द्वारा दर्ज की गई FIR को बहाल कर दिया और कहा कि अब मामले की जांच ट्रायल के जरिए होनी चाहिए।
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