सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर सिटीजन के लिए विशेष मंत्रालय की मांग वाली याचिका पर विचार करने से किया इनकार
Amir Ahmad
21 Jan 2025 6:28 AM

सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को देश के सीनियर सिटीजन के लिए समर्पित मंत्रालय की स्थापना पर विचार करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने और सरकार के संबंधित मंत्रालयों के समक्ष उचित प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी।
रिट याचिका पर जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने सुनवाई की।
याचिकाकर्ता एडवोकेट जी प्रियदर्शी थे, जो वकील और सोशल एक्टिविस्ट हैं, जिन्होंने सीनियर सिटीजन के लिए केंद्र सरकार में विशेष मंत्रालय की मांग की।
रिट याचिका में कहा गया,
"यह बहुत सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि सीनियर सिटीजन' अपने आप में एक कमजोर वर्ग होने के कारण, स्वास्थ्य, सामाजिक संरचना, वित्तीय अस्थिरता और निर्भरता जैसी अनूठी और असंख्य चुनौतियों के कारण अनुच्छेद 21 के संवैधानिक दायरे में आते हैं।"
रिट याचिका में हाल ही में इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 केयरिंग फॉर अवर एल्डर्स: इंस्टीट्यूशनल रिस्पॉन्स' में दी गई जानकारी का हवाला दिया गया, जिसके अनुसार 149 मिलियन लोग 60 वर्ष की आयु के हैं।
रिट याचिका में कहा गया,
"2050 तक वृद्ध व्यक्तियों की हिस्सेदारी दोगुनी होकर 20.8 प्रतिशत हो जाएगी, जिसकी कुल संख्या 347 मिलियन (34.7 करोड़) होगी। इसलिए विशेष मंत्रालय/विशेष विभाग होना जरूरी है, जो नीतियों, योजनाओं, वित्तीय सहायता, स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं, पेंशन आदि को पूरा कर सके। वृद्ध आबादी में यह अभूतपूर्व वृद्धि, यदि एक विशेष मंत्रालय/विशेष विभाग द्वारा स्पष्ट रूप से नियंत्रित नहीं की जाती है तो स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचना पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।”
शुरुआत में जब सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने बहस शुरू की तो जस्टिस नरसिम्हा ने हस्तक्षेप किया और कहा कि न्यायालय रिट याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है।
जस्टिस नरसिम्हा ने कहा,
"आपको अपनी रिट पढ़नी चाहिए। ऐसा नहीं किया जा सकता।"
जब शंकरनारायणन ने जोर देकर कहा कि वे याचिका में संशोधन करेंगे और फिर न्यायालय में वापस आएंगे, तो जस्टिस नरसिम्हा ने सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि यह समझ में आता है कि याचिकाकर्ता किसी बीमारी या समस्या के खिलाफ विशिष्ट निर्देश मांगने के लिए न्यायालय में आए लेकिन न्यायालय से मंत्रालय बनाने के लिए नहीं कहा जा सकता।
जस्टिस नरसिम्हा ने रिट याचिका में प्रार्थनाओं की प्रकृति पर भी सवाल उठाया। फिर भी न्यायालय ने शंकरनारायणन को संक्षेप में बहस करने की अनुमति दी।
संक्षिप्त बहस के बाद और याचिका खारिज करने से पहले जस्टिस नरसिम्हा ने कहा,
"हमने सुना है कि एक राज्य के मुख्यमंत्री अधिक बच्चों के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं। यह पूर्ण चक्र है। पहले पंचायत चुनाव लड़ने और अन्य सभी में अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था। अब यह उल्टा है। अब हमें फिर से विचार करने और इसे युवा पीढ़ी के बराबर रखने की आवश्यकता है।"
केस टाइटल: जी प्रियादर्शनी बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 21/2025