सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ TNPCB की याचिका खारिज की, योग और ध्यान केंद्र निर्माण के खिलाफ बलपूर्वक कदम उठाने पर रोक लगाई
Amir Ahmad
28 Feb 2025 9:31 AM

तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (28 फरवरी) को निर्देश दिया कि कोयंबटूर में सद्गुरु के ईशा योग और ध्यान केंद्र के निर्माण के संबंध में कोई बलपूर्वक कदम नहीं उठाया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें पर्यावरण मंजूरी प्राप्त किए बिना 2006 से 2014 के बीच कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी पहाड़ियों पर निर्माण कार्य करने के लिए सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन को जारी कारण बताओ नोटिस रद्द कर दिया गया था।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को मंजूरी दी और टीएनपीसीबी की चुनौती को खारिज कर दिया।
पिछली सुनवाई में पीठ ने पूछा था कि TNPCB ने 2 साल की देरी के बाद आदेश को चुनौती क्यों दी। पीठ ने मौखिक रूप से यह भी टिप्पणी की थी कि योग केंद्र एक शैक्षणिक केंद्र के रूप में छूट का हकदार है।
अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले को अवैध निर्माण को नियमित करने के लिए मिसाल के तौर पर नहीं माना जाना चाहिए।
इसने आगे स्पष्ट किया कि भविष्य में किसी भी निर्माण के लिए, ईशा फाउंडेशन के लिए कानून के अनुसार पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य था।
पीठ ने कहा,
"यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यदि भविष्य में विस्तार की कोई आवश्यकता है, तो प्रतिवादी संख्या 1 सक्षम अधिकारियों से पूर्व प्रस्तुतिकरण मांगेगा।"
पूरा मामला
केंद्र सरकार की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006 के अनुसार अनिवार्य पर्यावरणीय मंजूरी के बिना निर्माण कार्य करने के लिए ईशा फाउंडेशन को 19 नवंबर, 2021 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
इसे चुनौती देते हुए फाउंडेशन ने मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसने दावा किया कि यह 1994 से ही निर्माण कार्य कर रहा है, जो कि उपरोक्त नियमों के बनने से बहुत पहले की बात है।
इसके अलावा मानसिक विकास को बढ़ावा देने में लगा हुआ योग केंद्र होने के नाते उन्होंने तर्क दिया कि यह शैक्षणिक संस्थान के दायरे में आता है और 2014 में केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए स्पष्टीकरण के अनुसार, सभी शैक्षणिक संस्थानों, औद्योगिक शेड और छात्रावासों को निर्माण कार्य से पहले अनिवार्य पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता से छूट दी गई।
राज्य ने इस तर्क का विरोध किया कि ईशा फाउंडेशन शैक्षणिक संस्थानों के दायरे में आता है।
उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि भले ही फाउंडेशन को एक शैक्षणिक संस्थान माना जाए लेकिन यह कोयंबटूर में फाउंडेशन परिसर के 2 लाख वर्ग मीटर से अधिक में से केवल लगभग 10,000 वर्ग मीटर के लिए ही लागू होगा।
दूसरी ओर केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि ईशा फाउंडेशन को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी लेने से छूट दी गई थी क्योंकि यह शिक्षा को बढ़ावा देने में लगा हुआ था। जब मामला लंबित था, तब केंद्र ने कथित तौर पर 2022 में एक ज्ञापन जारी किया था, जिसमें शैक्षणिक संस्थान को परिभाषित किया गया था जिसमें मानसिक, नैतिक और शारीरिक विकास के लिए आवश्यक चीजों पर प्रशिक्षण देने वाले संस्थान शामिल थे।
2022 में हाईकोर्ट ने विवादित कारण बताओ नोटिस को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूंकि फाउंडेशन समूह विकास गतिविधियों को बढ़ावा देने और योग को बढ़ावा देने के लिए निर्माण कार्य कर रहा था, इसलिए यह शैक्षणिक संस्थान की परिभाषा के अंतर्गत आता है और इस प्रकार इसे पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी लेने से छूट दी गई है।
पीठ ने यह भी देखा कि छूट के संचालन पर केरल हाईकोर्ट द्वारा अंतरिम रोक केरल हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र तक सीमित थी और इस प्रकार मद्रास हाईकोर्ट अंतरिम रोक से बाध्य नहीं था।
केस टाइटल: तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाम ईशा फाउंडेशन, डायरी संख्या 57906/2024