यूपी में 'बुलडोजर जस्टिस' पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: सरकार को पुनर्निर्माण का आदेश

Amir Ahmad

6 March 2025 6:29 AM

  • यूपी में बुलडोजर जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: सरकार को पुनर्निर्माण का आदेश

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रयागराज में वकील, प्रोफेसर और तीन अन्य के घरों को ध्वस्त करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने कड़ी असहमति जताते हुए कहा कि इस तरह की कार्रवाई चौंकाने वाला और गलत संकेत देती है।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    "अनुच्छेद 21 नाम का कुछ है।"

    जस्टिस ओक ने सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले की ओर भी इशारा किया, जिसमें ध्वस्तीकरण से पहले अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित की गई।

    उन्होंने कहा,

    "बुलडोजर जस्टिस पर अब समन्वय पीठ का भी एक फैसला है।"

    जस्टिस ओक ने राज्य की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि कोर्ट अब राज्य को ध्वस्त संरचनाओं का पुनर्निर्माण करने का आदेश देगा।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    "अब हम आपके खर्च पर पुनर्निर्माण का आदेश देंगे, ऐसा करने का यही एकमात्र तरीका है।”

    इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा ध्वस्तीकरण के खिलाफ उनकी याचिका खारिज किए जाने के बाद याचिकाकर्ताओं एडवोकेट जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद, दो विधवाएं और एक अन्य व्यक्ति ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

    उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने शनिवार देर रात को ध्वस्तीकरण नोटिस जारी किया और अगले दिन उनके घरों को ध्वस्त कर दिया, जिससे उन्हें कार्रवाई को चुनौती देने का कोई मौका नहीं मिला।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि वे भूमि के वैध पट्टेदार थे और उन्होंने अपने पट्टे के अधिकारों को फ्रीहोल्ड संपत्ति में बदलने के लिए आवेदन किया था।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि राज्य ने उनकी भूमि को गैंगस्टर राजनेता अतीक अहमद से गलत तरीके से जोड़ा है, जिसकी 2023 में हत्या कर दी गई थी।

    अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने राज्य की कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास नोटिस का जवाब देने के लिए पर्याप्त समय।

    हालांकि जस्टिस ओक ने नोटिस भेजने के तरीके पर सवाल उठाया। खंडपीठ ने नोटिस भेजने के तरीके पर राज्य के दावे में विसंगतियों की ओर इशारा किया।

    अटॉर्नी जनरल ने सुझाव दिया कि मामले को विचार के लिए हाईकोर्ट को वापस भेजा जाना चाहिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इसे वापस भेजने से केवल अनावश्यक देरी होगी।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि वे अतिचारी नहीं थे, बल्कि पट्टेदार थे, जिन्होंने अपने पट्टे के हित को फ्रीहोल्ड में बदलने के लिए आवेदन किया था। 1 मार्च, 2021 को विध्वंस नोटिस जारी किया गया 6 मार्च, 2021 को तामील किया गया और 7 मार्चव2021 को विध्वंस किया गया, बिना उन्हें यूपी शहरी नियोजन और विकास अधिनियम की धारा 27(2) के तहत अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष इसे चुनौती देने का उचित अवसर दिए।

    याचिकाकर्ताओं में वकील और प्रोफेसर शामिल हैं जिनकी पूरी लाइब्रेरी को ध्वस्त कर दिया गया। उन्होंने तर्क दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 15 सितंबर 2020 के एक पत्र के आधार पर उनकी याचिका को खारिज कर दिया बिना उन्हें इसे चुनौती देने का अवसर दिए।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विवादित विध्वंस प्रयागराज में नजूल भूखंड से संबंधित है जिसे 1906 में पट्टे पर दिया गया। पट्टे की अवधि 1996 में समाप्त हो गई और 2015 और 2019 में फ्रीहोल्ड रूपांतरण के लिए आवेदन खारिज कर दिए गए।

    राज्य ने कहा कि भूमि को सार्वजनिक उपयोग के लिए निर्धारित किया गया और याचिकाकर्ताओं के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं था क्योंकि उनके लेन-देन में जिला कलेक्टर की मंजूरी नहीं थी। हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया यह निष्कर्ष निकालते हुए कि संरचनाएं अनधिकृत थीं।

    सुप्रीम कोर्ट ने अब राज्य की कार्रवाई के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 21 मार्च, 2025 को रखा।

    केस टाइटल - विशेष अनुमति के लिए याचिका (सी) संख्या 6466/2021

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