सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामलों में सजा में छूट से पहले दोषियों को सजा की अवधि तय करने के लिए कारकों का सारांश दिया

Shahadat

21 March 2024 4:38 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामलों में सजा में छूट से पहले दोषियों को सजा की अवधि तय करने के लिए कारकों का सारांश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उन कुछ कारकों को दोहराया, जिन पर अदालतें सजा में छूट की मांग से पहले दोषियों की सजा की अवधि तय करते समय विचार करती हैं।

    जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के.वी. विश्वनाथन और जस्टिस संदीप मेहता की तीन जजों वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया। इन कारकों में चोटों की प्रकृति, मृत पीड़ितों की संख्या, आरोपी का आपराधिक इतिहास और यह भी शामिल है कि क्या अपराध तब किया गया, जब आरोपी जमानत पर था।

    जस्टिस विश्वनाथन द्वारा लिखित निर्णय में दर्ज किया गया:

    "उदाहरण के तौर पर मामले के लिए सबसे उपयुक्त वर्षों की संख्या तक पहुंचने की प्रक्रिया में, जिसे दोषी को भुगतना होगा, जिसके पहले छूट की शक्तियों को लागू किया जा सकता है, कुछ प्रासंगिक कारक जिन्हें अदालतें ध्यान में रखती हैं, वे हैं :-

    “(1) उस अपराध के शिकार मृतकों की संख्या और उनकी उम्र और जेंडर; (2) यौन उत्पीड़न सहित चोटों की प्रकृति, यदि कोई हो; (3) वह मकसद, जिसके लिए अपराध किया गया; (4) क्या अपराध तब किया गया, जब दोषी किसी अन्य मामले में जमानत पर था; (5) अपराध की पूर्वचिन्तित प्रकृति; (6) अपराधी और पीड़ित के बीच संबंध; (7) विश्वास का दुरुपयोग, यदि कोई हो; (8) आपराधिक इतिहास; और अगर दोषी को रिहा किया गया तो क्या वह समाज के लिए खतरा होगा?''

    इसके अलावा, अदालत ने आरोपी की उम्र, सुधार की संभावना और पश्चातापपूर्ण आचरण जैसे सकारात्मक कारकों को भी सूचीबद्ध किया।

    इस संबंध में अदालत ने कहा,

    “कुछ सकारात्मक कारक रहे हैं, (1) दोषी की उम्र; (2) दोषी के सुधार की संभावना; (3) दोषी पेशेवर हत्यारा नहीं है; (4) अभियुक्त की सामाजिक आर्थिक स्थिति; (5) आरोपी के परिवार की संरचना और (6) पश्चाताप व्यक्त करने वाला आचरण।”

    न्यायालय ने 27 मामलों का सर्वेक्षण करने के बाद इन प्रासंगिक कारकों को दर्ज किया, जिसमें हालिया निर्णय रविंदर सिंह बनाम राज्य सरकार दिल्ली के एनसीटी, (2024) 2 एससीसी 323 भी शामिल है।

    इस मामले की उत्पत्ति बच्चे और वृद्ध महिला सहित चार लोगों के परिवार की भीषण हत्या में निहित है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी का मृतक की पत्नी लता (जिसकी भी चाकू मारकर हत्या कर दी गई) के साथ अवैध प्रेम संबंध था। बाद में आरोपी ने आत्महत्या का भी प्रयास किया।

    ट्रायल कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ मौत की सजा सुनाई। हालांकि, जब मामला पुष्टि के लिए हाईकोर्ट में गया तो उसने सजा को बिना किसी छूट के तीस साल के कारावास में बदल दिया।

    हाईकोर्ट ने स्वामी श्रद्धानंद बनाम कर्नाटक राज्य, (2008) 13 एससीसी 767 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि अदालतें कारावास का गंभीर रूप देकर मौत की सजा से बच सकती हैं।

    इससे व्यथित होकर आरोपी ने कम सजा की गुहार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    कोर्ट ने कहा कि सजा की अवधि तय करने के लिए कोई स्ट्रेटजैकेट फॉर्मूला नहीं है। हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि इस विवेक का प्रयोग उचित आधार पर किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    “कितना बहुत अधिक है और कितना बहुत कम है? यह वह कठिन क्षेत्र है, जिसे हमने यहां संबोधित करने का प्रयास किया है। जैसा कि ठीक ही देखा गया, कोई स्ट्रेटजैकेट फॉर्मूला नहीं हो सकता। उस बिंदु को निर्धारित करना, जहां तक छूट की शक्तियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है, ऐसा कार्य है, जिसे सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए और विवेक का प्रयोग उचित आधार पर किया जाना चाहिए। स्पेक्ट्रम बहुत बड़ा है।”

    इसके अनुसरण में न्यायालय ने पहले से तय किए गए मामलों का सर्वेक्षण किया, जिनमें स्वामी श्रद्धानंद के निर्णय का अनुपात लागू किया गया। न्यायालय द्वारा दी गई सजा और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 27 मामलों को कलमबद्ध करके न्यायालय ने पहले बताई गई टिप्पणियां कीं।

    उपरोक्त कारकों को वर्तमान मामले में लागू करते हुए न्यायालय ने यह देखते हुए विचार करना शुरू किया कि हत्या पूर्व नियोजित थी। इसके अलावा, पीड़ित निहत्थे थे और उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई।

    कोर्ट ने कहा,

    “यह भी ध्यान देने योग्य है कि आरोपी के कृत्य से एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों ने बिना किसी गलती के अपनी जान गंवा दी है; लता, रामचन्द्रन और चित्रा को लगी चोटों की प्रकृति इस कृत्य की क्रूरता और निर्दयता को उजागर करती है।''

    साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी 28 साल का था और उसने अपराध स्थल से भागने की कोशिश नहीं की और आत्महत्या करने की कोशिश की। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि आरोपी लगभग 18 साल तक हिरासत में था और उसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर सजा सुनाई गई। यहां तक कि जेल प्राधिकारी की रिपोर्ट ने भी स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि अभियुक्त का व्यवहार संतोषजनक है।

    इसे देखते हुए तीन जजों की बेंच ने उनकी सजा को 30 साल से 25 साल की कैद में बदल दिया, जिसमें पहले से भुगती सजा भी शामिल है।

    केस टाइटल: नवास @ मुलानावास बनाम केरल राज्य, डायरी नंबर- 17607 - 2010

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