सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग व्यक्ति अधिनियम के कार्यान्वयन पर कुछ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से रिपोर्ट मांगी
Shahadat
23 Jan 2024 11:38 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act) के कार्यान्वयन से संबंधित रिट याचिका में उन राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को आठ सप्ताह के भीतर इसे दाखिल करने का निर्देश दिया, जिन्होंने अनुपालन हलफनामा दाखिल नहीं किया।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच के सामने मामला रखा गया।
ये राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, लक्षद्वीप, लद्दाख, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल।
जस्टिस सुनंदा भंडारे फाउंडेशन द्वारा दायर वर्तमान रिट याचिका में निम्नलिखित राहत की मांग की गई:
i. तत्कालीन दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिए।
ii. 1995 अधिनियम की धारा 33 के संदर्भ में विभिन्न यूनिवर्सिटी फैकल्टी और कॉलेजों में चिन्हित शिक्षण पदों में से 1% आरक्षण के लिए निर्देश।
iii. एक घोषणा के लिए कि विभिन्न यूनिवर्सिटी फैकल्टी और कॉलेजों में चिन्हित पदों पर दृष्टिबाधित व्यक्तियों को नियुक्ति से इनकार करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 41 सपठित अनुच्छेद 14 और 15 के तहत गारंटीकृत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
जस्टिस आर.एम. लोढ़ा, जस्टिस सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय और जस्टिस दीपक मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 2014 में ने कहा कि 1995 एक्ट को बिना किसी देरी के अक्षरश: लागू किया जाना चाहिए, अगर अब तक इसे लागू नहीं किया गया।
इसके महत्व को रेखांकित करते हुए न्यायालय ने कहा:
“जैसा भी हो, 1995 अधिनियम के लाभकारी प्रावधानों को वर्षों तक केवल कागजों पर बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस तरह इस तरह के कानून और विधायी नीति के मूल उद्देश्य को विफल नहीं किया जा सकता। केंद्र, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और उन सभी लोगों को, जिन पर 1995 के अधिनियम के तहत दायित्व डाला गया है, इसे प्रभावी ढंग से लागू करना होगा। वास्तव में इस तरह के मामले में सरकारों की भूमिका सक्रिय होनी चाहिए।”
तदनुसार, न्यायालय ने केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को 1995 अधिनियम के प्रावधानों को तुरंत और 2014 के अंत तक सकारात्मक रूप से लागू करने का निर्देश दिया।
इसके अनुसरण में, 06.03.2020 को न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को अपना-अपना अनुपालन हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। हालांकि, कुछ राज्यों ने अपना जवाब दाखिल किया, लेकिन उपर्युक्त राज्यों ने नहीं किया।
इसे देखते हुए न्यायालय ने अन्य राज्यों को अद्यतन हलफनामा दायर करने की अनुमति देते हुए उपरोक्त निर्देश पारित किया।
केस टाइटल: जस्टिस सुनंदा भंडारे फाउंडेशन बनाम यू.ओ.आई., डायरी नंबर- 2844 - 1998
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