क्या POCSO अपराध की पीड़िता ने आरोपी के साथ रहना चुनकर सोच-समझकर निर्णय लिया: सुप्रीम कोर्ट ने काउंसलर की मदद मांगी

Shahadat

10 May 2024 5:00 AM GMT

  • क्या POCSO अपराध की पीड़िता ने आरोपी के साथ रहना चुनकर सोच-समझकर निर्णय लिया: सुप्रीम कोर्ट ने काउंसलर की मदद मांगी

    ऐसे मामले में जहां POCSO अपराध की पीड़िता ने आरोपी के साथ रहना चुना, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (9 मई) को कहा कि यह समझने के लिए कि क्या महिला ने "सूचित निर्णय" लिया, एक पेशेवर मनोवैज्ञानिक द्वारा काउंसलिंग की आवश्यकता है।

    न्यायालय स्वत: संज्ञान मामले (इन री: राइट टू प्राइवेसी ऑफ एडोलसेंट्स) पर सुनवाई कर रहा था, जिसे कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर आधारित किया गया था। इसमें किशोरों, विशेष रूप से किशोर लड़कियों के यौन आचरण के संबंध में कुछ टिप्पणियां की गई थीं। आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर अपील को भी स्वत: संज्ञान मामले के साथ सूचीबद्ध किया गया।

    जस्टिस एएस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने कहा कि क्लिनिकल फिजियोलॉजिस्ट की सहायता से अदालत को उस सामाजिक सेटिंग की स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिसके तहत नाबालिग पीड़िता ने अपने जीवन के फैसले लिये। वर्तमान मामले में नाबालिग ने 17 साल की उम्र में आरोपी साथी के साथ अपने रिश्ते से बच्चे को जन्म दिया और वह उसके साथ रहना चाहती है, क्योंकि उसे उसके माता-पिता और समुदाय द्वारा बड़े पैमाने पर बहिष्कृत और अस्वीकार कर दिया गया।

    सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने दोहराया कि पीड़िता पहले ही आरोपी के साथ रहने की इच्छा बता चुकी है। इस पर पलटवार करते हुए जस्टिस ओक ने बताया कि जमीनी हकीकत की समग्र समझ प्राप्त करने के लिए वर्तमान मुद्दे में विशेषज्ञ के हस्तक्षेप की मांग करना आवश्यक है।

    खंडपीठ ने व्यक्त किया कि नाबालिग पीड़िता ने लगातार पीड़िता के अपमान और सामाजिक कलंक के माहौल के कारण निराशा की भावना के तहत आरोपी के साथ रहने का फैसला किया होगा। ऐसा हो सकता है कि पीड़िता POCSO के तहत कानूनी उपायों और अपने अधिकार के तौर पर भविष्य में मिलने वाले संभावित अवसरों से अनभिज्ञ हो।

    कहा गया,

    "जब ट्रेंड फिजियोलॉजिस्ट तस्वीर में आता है तो कभी-कभी हमें वास्तविक सच्चाई का पता चलता है। वह (पीड़ित) ऐसे माहौल में है, जिससे उस माहौल का उस पर प्रभाव पड़ता है, उसे लगता है कि वह इतनी असहाय स्थिति में है कि उसके पास कोई और पसंद नहीं है।"

    पहले के अवसर पर न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीड़िता ने अपने और अपने बच्चे के भविष्य के लिए सोच-समझकर निर्णय लिया, उसे राज्य के समर्थन की मदद से आत्मनिरीक्षण की अवधि की अनुमति देने का विचार था। खंडपीठ ने कहा कि उसे अपने असली स्वरूप का पता लगाने में सक्षम होने के लिए संबंधित क्षेत्र में सामाजिक परामर्शदाताओं या कार्यकर्ताओं से बातचीत करने की जरूरत है।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    "हो सकता है कि जब वह दूर रहेंगी तो कुछ विशेषज्ञों, उदाहरण के लिए टीआईएसएस (टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज), सामाजिक वैज्ञानिकों आदि के साथ कुछ बातचीत होगी, जो सही निर्णय लेने में हमारी सहायता कर सकेंगे।"

    पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस ओक ने कहा कि 2012 में लागू हुए POCSO जैसे कानून का उद्देश्य बच्चों की भलाई के मामले में समाज में सुधार करना था। किसी कल्याणकारी कानून को सिर्फ इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि देश के ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों ने ऐसे कानून की मौजूदगी को स्वीकार करने से इनकार किया।

    खंडपीठ ने आगे कहा,

    "POCSO के उद्देश्य को देखें, उद्देश्य समाज में बदलाव लाना है। तो क्या आज हम यह तर्क सुन सकते हैं कि POCSO शायद 20 साल पुराना है, लेकिन जमीनी स्तर पर POCSO अर्थहीन है? इस अर्थ में बड़ी आबादी POCSO के विपरीत कार्य कर रही है, इसलिए हमें इसे अनदेखा करना होगा?"

    सुनवाई के दौरान, मामले में एमिक्स क्यूरी माधवी दीवान ने सुझाव दिया कि पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा संचालित जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत क्लिनिकल फिजियोलॉजिस्ट के साथ मामूली बातचीत करना उपयुक्त होगा। हालांकि, उन्होंने बताया कि सरकारी काउंसलर के लिए परिदृश्य पर वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण रखना महत्वपूर्ण होगा, यह देखते हुए कि राज्य भी वर्तमान कार्यवाही में एक पक्ष है। काउंसलर की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपी जाएगी।

    पश्चिम बंगाल राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए सीनियर एडवोकेट हुफ़ेज़ा अहमदी ने उपरोक्त प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की और प्रस्तुत किया कि राज्य परामर्श की सुविधा के लिए प्रयास करने के लिए तैयार होगा। इसके अतिरिक्त, अहमदी ने सुझाव दिया कि इसे क्लिनिकल एक्सपर्ट पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वह पीड़ित के परिवेश का निरीक्षण करें और निर्णय लें कि परामर्श घर के वातावरण में या मानसिक स्वास्थ्य विभाग में ही होना चाहिए।

    केस टाइटल: RE: किशोरों की निजता का अधिकार SMW(C) नंबर 000003 - / 2023

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