मिलिट्री हॉस्पिटल में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न के बाद HIV से पीड़ित वयोवृद्ध को मुआवजा देने में विफलता पर सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों से जवाब मांगा

Shahadat

30 Jan 2024 4:45 AM GMT

  • मिलिट्री हॉस्पिटल में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न के बाद HIV से पीड़ित वयोवृद्ध को मुआवजा देने में विफलता पर सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों से जवाब मांगा

    पूर्व वायु सेना अधिकारी द्वारा दायर अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना से जवाब मांगा कि उन्हें मुआवजे के रूप में अदालत द्वारा आदेशित 1.6 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान क्यों नहीं किया गया। उक्त मामले में मिलिट्री हॉस्पिटल में मेडिकल लापरवाही के परिणामस्वरूप पूर्व अधिकारी HIV से संक्रमित हो गया।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने नोटिस जारी करते हुए कार्यवाही स्थगित करने का प्रतिवादियों का अनुरोध अस्वीकार कर दिया।

    एएसजी विक्रमजीत बनर्जी (सशस्त्र बलों की ओर से पेश) की दलील के जवाब में कि मुआवजा देने के अदालत के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की गई, इसलिए वर्तमान कार्यवाही स्थगित की जा सकती है।

    जस्टिस गवई ने इस पर कहा,

    "मुआवजे में सुधार इस अवमानना याचिका के दायरे में नहीं है। आप इसे (पुनर्विचार) सूचीबद्ध करें और 4 सप्ताह के भीतर शीघ्र सुनवाई करें, अन्यथा हम अवमानना के साथ आगे बढ़ेंगे। अधिक से अधिक,आप कुछ टिप्पणियों को हटा सकते हैं।"

    वर्तमान कार्यवाही का संबंध याचिकाकर्ता-आशीष चौहान को मिलिट्री हॉस्पिटल में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न (Blood Transfusion) के कारण HIV से संक्रमित होने से है। चौहान 2002 के ऑपरेशन पराक्रम के दौरान बीमार पड़ गए और उन्हें जम्मू-कश्मीर के सांबा में मिलिट्री हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। वहां, गंभीर रोगसूचक एनीमिया के प्रबंधन के लिए उन्हें एक यूनिट ब्लड ट्रांसफ्यूज़न गया; हालांकि इस सुविधा के पास न तो ब्लड बैंक का लाइसेंस था और न ही कोई पैथोलॉजिस्ट/ट्रांसफ़्यूज़न विशेषज्ञ यहां तैनात था। इसे भारतीय सेना ने केवल "एडहॉक ब्लड बैंक" कहा गया।

    2014 में चौहान को HIV का पता चला और यह सामने आया कि उनकी स्थिति 2002 में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न से जुड़ी है। उन्हें 2016 में सेवा से छुट्टी दे दी गई और दिव्यांगता सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया गया, क्योंकि स्पष्ट रूप से इसे देने का कोई प्रावधान नहीं था।

    इन परिस्थितियों में चौहान ने 95.03 करोड़ रुपये (मुकदमेबाजी खर्च सहित) के मुआवजे के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के समक्ष दावा दायर किया। NCDRC ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि ब्लड ट्रांसफ्यूज़न के दौरान मेडिकल लापरवाही को स्थापित करने के लिए उसके समक्ष कोई विशेषज्ञ की राय पेश नहीं की गई या साबित नहीं की गई।

    सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर, 2023 में चौहान को लगभग सज़ा सुनाई। मुआवज़े में 1.6 करोड़ रुपये (कमाई के नुकसान के लिए 86.73 लाख रुपये, मानसिक पीड़ा के लिए 50 लाख रुपये, भविष्य की देखभाल के खर्च के लिए 18 लाख रुपये और मुकदमेबाजी के खर्च के लिए 5 लाख रुपये), सेना और वायु सेना को प्रतिकरात्मक और संयुक्त रूप से और अलग-अलग दोनों तरह से उत्तरदायी होंगी। सामग्री पर गौर करते हुए अदालत ने पाया कि चौहान के ब्लड ट्रांसफ्यूज़न पर "सतही ध्यान" दिया गया और ऐसा प्रतीत होता है कि सुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूज़न से पहले के सुरक्षा उपायों को नजरअंदाज कर दिया गया।

    कोर्ट ने कहा,

    "ये सभी खामियां-जिन्हें अकेले छोटी या मामूली के रूप में देखा जा सकता है, एक बात को जोड़ती हैं: मेडिकल प्रतिष्ठान से उचित रूप से अपेक्षित देखभाल के प्रासंगिक मानकों के पालन की कमी या उल्लंघन ... सुरक्षित ट्रांसफ़्यूज़न सुनिश्चित करने में प्रणालीगत विफलता अपीलकर्ता को खून देना, एकमात्र अकाट्य निष्कर्ष है। ये तथ्य मेडिकल लापरवाही स्थापित करते हैं। इसलिए भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना की ओर से प्रतिसादात्मक दायित्व स्थापित करते हैं।

    गौरतलब है कि अदालत ने उस समय ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस और एक्वायर्ड इम्यून डेफिशिएंसी सिंड्रोम (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कुछ निर्देश भी जारी किए।

    सशस्त्र बलों द्वारा निर्देशानुसार मुआवजा देने में विफलता के परिणामस्वरूप, चौहान ने वर्तमान अवमानना याचिका दायर की और सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया।

    केस टाइटल: सीपीएल आशीष कुमार चौहान (रिटायर्ड) बनाम कर्नल संजय निझावन और अन्य, CONMT.PET.(सी) नंबर 1267/2023 सी.ए. में। नंबर 7175/2021

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