सुप्रीम कोर्ट ने ओवरटाइम वेतन गणना में एचआरए और अन्य भत्ते शामिल करने के आदेश के खिलाफ पीएसयू की याचिका खारिज की

Avanish Pathak

3 Jan 2025 1:07 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने ओवरटाइम वेतन गणना में एचआरए और अन्य भत्ते शामिल करने के आदेश के खिलाफ पीएसयू की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (2 जनवरी) को पीएसयू मुनिशन इंडिया लिमिटेड की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया, जिसे कपंनी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के खिलाफ दायर किया था।

    हाईकोर्ट ने अपने आदेश में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के उस निर्णय को लागू करने का निर्देश दिया था, जिसमें कारखाना अधिनियम, 1948 के तहत ओवरटाइम मजदूरी की गणना में कुछ प्रतिपूरक भत्ते शामिल करने का आदेश दिया गया था।

    हालांकि, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता कैट के निर्णय के खिलाफ अपनी लंबित याचिका की शीघ्र सुनवाई के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

    कोर्ट ने कहा, “हम हाईकोर्ट के विवादित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। तदनुसार, विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं के लिए लंबित याचिका की शीघ्र सुनवाई के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का विकल्प खुला रहेगा।”

    कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 59(1) ओवरटाइम कार्य के लिए “सामान्य मजदूरी दर” से दोगुनी अतिरिक्त मजदूरी का आदेश देती है। धारा 59(2) “मजदूरी की सामान्य दर” को मूल वेतन और कुछ भत्तों के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें रियायती लाभों के नकद समतुल्य शामिल हैं, लेकिन बोनस और ओवरटाइम वेतन को स्पष्ट रूप से बाहर रखा गया है।

    मौजूदा मामले में यह मुद्दा शामिल था कि क्या हाउस रेंट अलाउंस (HRA), ट्रांसपोर्ट अलाउंस और स्मॉल फैमिली अलाउंस जैसे भत्ते “मजदूरी की सामान्य दर” के अंतर्गत आते हैं।

    यह विवाद श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (27 मई, 2009) और रक्षा मंत्रालय (26 जून, 2009) की ओर से जारी कार्यालय ज्ञापनों से जुड़ा है, जिसमें कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 59 के तहत ओवरटाइम मजदूरी की गणना से हाउस रेंट अलाउंस (HRA), ट्रांसपोर्ट अलाउंस और स्मॉल फैमिली अलाउंस जैसे प्रतिपूरक भत्तों को बाहर रखा गया था।

    CAT, हैदराबाद बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले पर विचार करने के बाद 26 जून, 2009 के परिपत्र को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि ओवरटाइम भत्ते की गणना के लिए भत्तों को बाहर रखने का निर्णय कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 59(2) के विपरीत था।

    4 अप्रैल, 2014 को न्यायाधिकरण ने एक जनवरी, 2006 से प्रभावी ओवरटाइम मजदूरी की गणना में हाउस रेंट अलाउंस, ट्रांसपोर्ट अलाउंस और स्मॉल फैमिली अलाउंस जैसे भत्तों को शामिल करने का निर्देश दिया।

    2022 में CAT, मुंबई बेंच एम्युनिशन फैक्ट्री, खड़की के कर्मचारियों द्वारा दायर याचिका को अनुमति दी और निर्देश दिया कि इन भत्तों को ओवरटाइम वेतन की गणना में शामिल किया जाए। न्यायाधिकरण ने रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी 2009 के कार्यालय ज्ञापन को भी रद्द कर दिया।

    इस निर्णय को याचिकाकर्ताओं, म्यूनिशन इंडिया लिमिटेड और एम्युनिशन फैक्ट्री, खड़की ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

    22 नवंबर, 2024 को, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में याचिकाकर्ताओं को कैट के निर्णय को लागू करने का निर्देश दिया। यह कर्मचारियों द्वारा एक वचनबद्धता के अधीन था कि यदि उनके दावों को अंततः अस्वीकार कर दिया जाता है तो वे राशि वापस कर देंगे।

    याचिकाकर्ताओं ने एसएलपी में तर्क दिया कि ओवरटाइम वेतन गणना में प्रतिपूरक भत्ते को शामिल करने से नई निगमित इकाई, म्यूनिशन इंडिया लिमिटेड पर महत्वपूर्ण वित्तीय बोझ पड़ेगा, जो सरकार से वित्तीय सहायता के बिना काम करती है। उन्होंने क्षेत्रों और आवास व्यवस्थाओं में अलग-अलग भत्तों के कारण भुगतान में संभावित विसंगतियों को भी उजागर किया।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ओवरटाइम गणना में प्रतिपूरक भत्ते शामिल करने से विसंगतियां पैदा होंगी, क्योंकि एचआरए जैसे भत्ते शहर के वर्गीकरण और कर्मचारियों के सरकारी क्वार्टर या निजी आवास में रहने के आधार पर भिन्न होते हैं।

    इसके अलावा, याचिका में कहा गया है, “समान काम के लिए समान वेतन” के सिद्धांत का उल्लंघन होगा, क्योंकि समान ओवरटाइम घंटे काम करने वाले कर्मचारियों को उनके भत्तों के आधार पर अलग-अलग भुगतान प्राप्त होंगे। " यह भी तर्क दिया गया कि यदि कैट के आदेश को पलट दिया जाता है तो 2006 से कार्यान्वयन से सेवानिवृत्त कर्मचारियों से राशि वसूलने में मुश्किलें आएंगी।

    याचिकाकर्ताओं ने अपील के एक अन्य सेट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कार्यालय ज्ञापन की वैधता पर अंतिम निर्णय लंबित होने का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि हाईकोर्ट को अपना अंतरिम आदेश जारी करने से पहले इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी।

    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

    उपस्थिति: याचिकाकर्ता(ओं) के लिए - श्रीमती माधवी दीवान, सीनियर एडवोकेट; श्री प्रवर्तक सुहास पाठक, एओआर; सुश्री मानसी जैन, एडवोकेट; सुश्री आन्द्रिता देब, एडवोकेट; श्री रितु राज, एडवोकेट; सुश्री शम्भवी कनाडे, एडवोकेट

    प्रतिवादी(ओं) के लिए - श्री श्रीराम पी., एओआर; श्री केएस. शुक्ला, एडवोकेट; श्री विजयन बालकृष्णन, एडवोकेट; सुश्री नेहा कुमारी, एडवोकेट; नलुकट्टिल अनन्धु एस नायर, एडवोकेट; सुश्री मनीषा सुनीलकुमार, एडवोकेट; सुश्री अंजलि सिंह, एडवोकेट; सुश्री ईशा सिंह, एडवोकेट; श्री अधित्या संतोष, एडवोकेट; श्री सोहनलाल ए, एडवोकेट

    केस नंबर- स्पेशल लीव पीटिशन (सिविल) डायरी संख्या 58516/2024

    केस टाइटल- म्यूनिशन इंडिया लिमिटेड एवं अन्य बनाम एम्युनिशन फैक्ट्री वर्कर्स यूनियन एवं अन्य

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