सुप्रीम कोर्ट ने कथित तौर पर फर्जी वकालतनामा बनाने के मामले में जांच का निर्देश देने वाले आदेश के खिलाफ वकीलों की चुनौती खारिज की
Shahadat
16 April 2024 10:49 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने (15 अप्रैल को) गुजरात के दो प्रैक्टिसिंग वकीलों द्वारा दायर याचिका में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें उनके मुवक्किल के वकालतनामा में कथित कदाचार के लिए उनके खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट द्वारा दिए गए जांच के आदेश को चुनौती दी गई थी।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले पर विचार किया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर वकील मुकुल रोहतगी और यतिन ओझा पेश हुए।
याचिकाकर्ताओं ने यह कहते हुए आदेश पर रोक लगाने की मांग की कि इस तरह का निर्देश क्रमशः अनुच्छेद 21 और 19(1)(जी) के तहत उनकी प्रतिष्ठा, गरिमा और अपने पेशे को जारी रखने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
गुजरात हाईकोर्ट के जज जस्टिस हसमुख डी. सुथार की पीठ ने 8 अप्रैल को अंतरिम आदेश में उन दो वकीलों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने और जांच करने का निर्देश दिया, जो अपने मुवक्किल अहीर की ओर से पेश हो रहे थे। अदालत ने गुजरात निषेध अधिनियम के तहत अपराध के संबंध में जब्त की गई उनकी टोयोटा इनोवा कार को रिहा करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं के रुख के अनुसार, सुनवाई के दौरान कथित तौर पर याचिकाकर्ता का मुवक्किल होने का दावा करने वाला व्यक्ति अहीर पीठ के सामने पेश हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने कभी भी उक्त याचिकाकर्ताओं को वकील की हैसियत से नियुक्त नहीं किया और न ही वर्तमान याचिका दायर की। उन्होंने आगे कहा कि 2016 में उनका वाहन चोरी हो गया था, उन्होंने केवल शिकायत दर्ज की और वाहन को छुड़ाने के लिए कभी किसी वकील की मदद नहीं ली।
अदालत ने आहिर के रूप में पहचाने गए व्यक्ति के हस्ताक्षर की तुलना हाईकोर्ट में प्रस्तुत याचिका पर हस्ताक्षर से की। इसके आधार पर न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि प्रथम दृष्टया, याचिका में हस्ताक्षर जाली थे और याचिका किसी अन्य व्यक्ति द्वारा श्री अहीर का रूप धारण करके दायर की गई।
उसी को आगे बढ़ाते हुए पीठ ने वकीलों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया। साथ ही हाईकोर्ट के उप रजिस्ट्रार स्तर के अधिकारी से गहन जांच कराने का आदेश दिया।
इसे देखते हुए याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने पीठ के समक्ष उनके द्वारा दिए गए ठोस स्पष्टीकरण को नजरअंदाज किया और प्रतिवादी नंबर 2 के शब्दों को ध्यान में रखा। सुसमाचार सत्य के रूप में देखा और एक जांच शुरू की।
याचिकाकर्ताओं द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत स्पष्टीकरण यह है कि (1) याचिका ज्ञात स्रोत के माध्यम से आई; (2) अभिसाक्षी की पहचान सद्भावना से की गई; (3) चूंकि उक्त मामला पहले सात बार स्थगित किया जा चुका, याचिकाकर्ता ने अपनी सद्भावना स्थापित करते हुए आगे बढ़ने की कोशिश नहीं की; (4) याचिकाकर्ता अपनी विश्वसनीयता के बेदाग रिकॉर्ड के बिना 16 वर्षों से प्रैक्टिस कर रहा है।