सुप्रीम कोर्ट ने बार एसोसिएशन चुनाव विवाद पर रिट याचिका की सुनवाई योग्यता से संबंधित मामले में हस्तक्षेप से इनकार किया

Shahadat

19 July 2024 9:23 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने बार एसोसिएशन चुनाव विवाद पर रिट याचिका की सुनवाई योग्यता से संबंधित मामले में हस्तक्षेप से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें कहा गया कि बार एसोसिएशन के चुनाव संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत संवैधानिक न्यायालयों के रिट क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते हैं या नहीं। कोर्ट ने कहा कि अगर बार एसोसिएशन के चुनाव से जुड़ा कोई मुद्दा है तो उसे संबंधित सिविल कोर्ट में जाना चाहिए।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस एजी मसीह की बेंच अलीपुर बार एसोसिएशन के मामले पर विशेष रूप से विचार कर रही थी, जब उसने याचिका वापस ले ली और कानून के सवालों को खुला छोड़ दिया।

    गौरतलब है कि याचिकाकर्ता सुबीर सेनगुप्ता ने अलीपुर बार एसोसिएशन के चुनाव से संबंधित मुद्दों को उठाते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। उन्होंने अन्य बातों के साथ-साथ यह भी तर्क दिया कि एसोसिएशन के लगभग 400 सदस्यों के नाम अंतिम मतदाता सूची में शामिल किए गए थे, जबकि उन्होंने एआईबीई पास नहीं किया। हाईकोर्ट ने इस याचिका का निपटारा करते हुए चुनाव नोटिस को अलग रखा और निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल बार काउंसिल इस बात पर विचार करे कि क्या ऐसे व्यक्ति, जिन्होंने AIBE पास नहीं किया है, वे बार एसोसिएशन के चुनाव में वोट देने के पात्र हैं।

    इसके बाद अलीपुर बार एसोसिएशन ने अपील दायर की, जिसे अनुमति दे दी गई। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने माना कि अलीपुर बार एसोसिएशन के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    इसमें दर्ज किया गया,

    "चुनाव के परिणाम से व्यथित कोई भी पक्ष या "चुनाव विवाद" उठाने के इच्छुक कोई भी पक्ष, यदि ऐसा सलाह दी जाती है, तो कानून द्वारा सीमित समय के भीतर अपनी शिकायत के निवारण के लिए सामान्य कानून मंच यानी सक्षम सिविल न्यायालय में जा सकता है।"

    इस आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने आग्रह किया कि चुनाव में कोई आपसी विवाद नहीं था; बल्कि मुद्दा यह था कि जिन व्यक्तियों ने अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) पास नहीं की है, उन्हें वोट देने की अनुमति कैसे दी जा सकती है।

    उन्होंने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष मुकदमेबाजी के दो दौर पहले भी हुए थे, जिसमें कुछ निर्देश पारित किए गए, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं किया गया। सीनियर एडवोकेट ने कहा कि वर्तमान याचिका में निहित रिट याचिका में केवल उक्त निर्देशों के क्रियान्वयन की मांग की गई।

    उनकी बात सुनते हुए जस्टिस ओका ने टिप्पणी की,

    "उन्हें (न्यायालय को) बार एसोसिएशन द्वारा किए जा रहे कार्यों पर विचार करके और अधिक बोझ नहीं डालना चाहिए। बार एसोसिएशन के चुनाव को लेकर विवाद है...यह सिविल न्यायालय में जाएगा"।

    इस बिंदु पर शंकरनारायण ने याचिका वापस लेने की मांग की, यह इंगित करते हुए कि चार अन्य हाईकोर्ट ने इसके विपरीत दृष्टिकोण अपनाया है। उन्होंने प्रार्थना की कि कानून के प्रश्न को खुला छोड़ दिया जाए।

    तदनुसार, पीठ ने अपना आदेश पारित किया।

    केस टाइटल: सुबीर सेनगुप्ता बनाम सचिव, अलीपुर बार एसोसिएशन और अन्य, डायरी संख्या 23223-2024

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