BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामला रद्द किया

Shahadat

5 March 2024 9:49 AM GMT

  • BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामला रद्द किया

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 मार्च) को कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और उनके सहयोगी द्वारा 2018 मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देने वाली अपील की अनुमति दी।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कांग्रेस नेता और उनके सहयोगी अंजनेय हनुमंतैया द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा उन्हें जारी किए गए समन को बरकरार रखने वाले 2019 कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका को अनुमति दे दी।

    हाईकोर्ट की एकल-न्यायाधीश पीठ द्वारा उद्धृत प्राथमिक कारण यह है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी धन शोधन निवारण अधिनियम को लागू करने के लिए पर्याप्त अकेला अपराध है। हालांकि, इस तर्क को सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया पावना डिब्बर फैसले के मद्देनजर 'अस्थिर' माना है।

    यह मामला 2017 में आयकर छापे के बाद शिवकुमार और चार अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों से जुड़ा है, जहां कथित तौर पर सात करोड़ रुपये से अधिक की बेहिसाब नकदी जब्त की गई थी। ED ने छापेमारी के सिलसिले में धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत उन्हें समन जारी किया।

    अगस्त, 2019 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी का समन बरकरार रखते हुए शिवकुमार और अन्य की याचिका खारिज कर दी थी। इस आदेश के खिलाफ याचिकाओं की सीरीज में नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसी वर्ष अक्टूबर में अपीलकर्ताओं को दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षित किया।

    अपने फैसले में हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 120बी और पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करने के लिए स्टैंडअलोन और विशिष्ट अपराध के रूप में इसकी प्रयोज्यता के संबंध में महत्वपूर्ण प्रश्न को संबोधित किया। यह माना गया कि आईपीसी की धारा 120बी वास्तव में विधेयात्मक, स्टैंडअलोन अपराध हो सकता है, जिसके बल पर धन शोधन विरोधी क़ानून लागू किया जा सकता।

    नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक पावना डिब्बर मामले में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी तभी अनुसूचित अपराध बनती है, जब साजिश किसी ऐसे अपराध को करने के लिए निर्देशित की जाती है, जो अन्यथा अनुसूचित है।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि धन शोधन निवारण अधिनियम के पीछे विधायी मंशा आईपीसी की धारा 120बी को लागू करके अनुसूची में शामिल नहीं किए गए हर अपराध को अनुसूचित अपराध बनाना नहीं था।

    इस फैसले का संदर्भ देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज डीके शिवकुमार और उनके सहयोगियों की अपील स्वीकार कर ली, कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और उनके खिलाफ पीएमएलए के तहत शुरू की गई कार्यवाही रद्द कर दी।

    अदालत ने कहा,

    “पावना डिब्बर फैसले के मद्देनजर, हाईकोर्ट द्वारा आक्षेपित फैसले में बताए गए कारण कायम नहीं रह सकते। तदनुसार अपील की अनुमति दी जाती है और आक्षेपित फैसला रद्द करते हुए पीएमएलए के तहत अपीलकर्ताओं के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही रद्द की जाती है।”

    हालांकि, यह नोट किया गया कि पावना डिब्बर फैसले के खिलाफ ED द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर की गई।

    तदनुसार, जस्टिस कांत की अगुवाई वाली खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि पुनर्विचार याचिका स्वीकार कर ली जाती है तो हाईकोर्ट द्वारा आक्षेपित फैसले में अपनाए गए दृष्टिकोण की पुष्टि की जाएगी, जिससे यदि आवश्यक हो तो ED इस नवीनतम आदेश की समीक्षा या वापस लेने की मांग कर सके।

    केस टाइटल- अंजनेय हनुमंतैया बनाम प्रधान आयकर निदेशक एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 9435-9439 वर्ष 2019 और अन्य संबंधित मामले

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