लापरवाह ड्राइवर के कानूनी उत्तराधिकारी मुआवज़े के हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
3 July 2025 11:15 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि लापरवाही से वाहन चलाने वाले मृतक व्यक्ति के कानूनी वारिस मोटर वाहन अधिनियम (MV Act) के तहत मुआवजा नहीं मांग सकते।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस आर महादेवन की आंशिक न्यायालय कार्य दिवस खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इस निर्णय में हाईकोर्ट ने मृतक के कानूनी वारिसों द्वारा MV Act की धारा 166 के तहत लापरवाही से वाहन चलाने के लिए मुआवजे का दावा करने की याचिका को खारिज कर दिया गया था।
दरअसल मामला यह था कि एन.एस. रविशा नामक व्यक्ति की फिएट लिनिया कार को तेज गति से चलाते समय कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। कार पलट गई, जिससे उसकी मौत हो गई। उनकी पत्नी, बेटे और माता-पिता (अपीलकर्ता) ने मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 166 के तहत मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) अर्सिकेरे के समक्ष 80 लाख रुपये का मुआवजा दावा दायर किया।
न्यायाधिकरण ने यह मानते हुए दावा याचिका खारिज कर दी कि रविशा खुद अपकारक (यानी, दुर्घटना का कारण बनने वाला गलत काम करने वाला) था। इसलिए उसके कानूनी उत्तराधिकारी मुआवजे के हकदार नहीं थे। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
निंगम्मा और अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, (2009) 13 एससीसी 710 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि दुर्घटना मृतक की खुद की तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण हुई थी और वह खुद अपकारक था। इसलिए कानूनी उत्तराधिकारी उसकी मृत्यु के लिए किसी भी मुआवजे का दावा नहीं कर सकते। अन्यथा यह उस व्यक्ति के समान होगा, जिसने उल्लंघन किया था और अपने स्वयं के गलत कामों के लिए मुआवजा प्राप्त कर रहा है।
अपीलकर्ताओं द्वारा यह तर्क दिया गया कि मृतक उस वाहन का मालिक नहीं था, जिससे दुर्घटना हुई थी। इसलिए बीमा कंपनी मृतक को हुए नुकसान की भरपाई करने के अपने दायित्व से पीछे नहीं हट सकती।
अपीलकर्ताओं के तर्क को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने मीनू बी. मेहता बनाम बालकृष्ण नयन, (1977) 2 एससीसी 441 का संदर्भ देते हुए कहा कि चूंकि मृतक ने मालिक (प्रतिवादी संख्या 1) से वाहन उधार लिया था। इसलिए उसे मालिक के स्थान पर कदम रखने वाला माना जाता है। इसलिए बीमा कंपनी को मालिक या उधारकर्ता को उनकी स्वयं की लापरवाही से हुई चोटों/मृत्यु के लिए मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
आक्षेपित निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई अच्छा आधार न पाते हुए न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
टाइटल: जी. नागरत्न एवं अन्य बनाम जी. मंजूनाथ एवं अन्य