सेशंस जज की क्षमता पर सवाल उठाने वाला एमपी हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने किया स्थगित

Amir Ahmad

2 Dec 2025 12:52 PM IST

  • सेशंस जज की क्षमता पर सवाल उठाने वाला एमपी हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने किया स्थगित

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें एक सेशंस जज की विधिक दक्षता पर प्रतिकूल टिप्पणियां करते हुए यह निर्देश दिया गया था कि पूरे मामले को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए, ताकि यह तय किया जा सके कि संबंधित न्यायिक अधिकारी को प्रशिक्षण के लिए भेजा जाना चाहिए या नहीं।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता न्यायाधीश की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े की दलीलें सुनने के बाद नोटिस जारी करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया।

    मामले के संक्षिप्त तथ्य यह हैं कि मई 2023 में संजू वडीवा के खिलाफ आईपीसी की धारा 376(2)(n), 376(3), 506 तथा पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(ल), 5(ज)(ii) एवं 6 के तहत मामला दर्ज हुआ था। याचिकाकर्ता सेशंस जज ने साक्ष्यों के परीक्षण और सुनवाई के बाद आरोपी को दोषसिद्ध ठहराते हुए सजा सुनाई थी।

    इस फैसले के खिलाफ अपील में हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया और साथ ही एक अलग आदेश पारित करते हुए याचिकाकर्ता न्यायाधीश की क्षमता पर सवाल उठाए। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि संबंधित जज को साक्ष्यों की बिल्कुल समझ नहीं है और प्रथम दृष्टया वह एडिशनल सेशन जज के रूप में कार्य करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। इसी आधार पर मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष भेजने का निर्देश दिया गया कि यह विचार किया जाए कि उन्हें प्रशिक्षण के लिए भेजा जाए या नहीं।

    इन टिप्पणियों से आहत होकर याचिकाकर्ता न्यायाधीश ने उन्हें हटाए जाने और हाईकोर्ट आदेश के आधार पर की जाने वाली किसी भी कार्रवाई को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिका में उन्होंने कहा कि उनका मूल निर्णय विस्तृत तथ्यात्मक और विधिसम्मत था जिसमें मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया गया था तथा प्रासंगिक न्यायिक दृष्टांतों को लागू किया गया था। इसके बावजूद हाईकोर्ट ने उनके विरुद्ध बिना उचित कारण व्यापक और कठोर टिप्पणियां कर दीं।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उन्हें अपनी बात रखने का कोई अवसर दिए बिना ही दोषी ठहरा दिया गया जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों तथा संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।

    याचिका में यह भी रेखांकित किया गया कि वे दिसंबर 2019 से जिला एवं एडिशनल सेशन जज के पद पर कार्यरत हैं और उनकी सेवा रिकॉर्ड पूरी तरह बेदाग है। उनकी वार्षिक गोपनीय आख्या (ACR) में उनके कार्य को लगातार बहुत अच्छा और उत्कृष्ट दर्ज किया गया है तथा आज तक न तो किसी एसीआर में और न ही किसी अपीलीय फैसले में उनके निर्णयों की गुणवत्ता पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी की गई है।

    याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले Kushal Singh v. State of Rajasthan पर भी भरोसा जताया जिसमें अदालत ने स्पष्ट किया था कि हाईकोर्ट को न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध निर्णयों में कलंककारी टिप्पणियां करने से संयम बरतना चाहिए। साक्ष्यों के आकलन में हुई त्रुटियों को अपील में सुधारा जा सकता है लेकिन उन्हें कदाचार या अक्षमता के रूप में नहीं देखा जा सकता। याचिका में कहा गया कि वर्तमान मामले की टिप्पणियां उसी बाध्यकारी सिद्धांत के सीधे खिलाफ हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए नोटिस जारी किया है और आगे की सुनवाई के लिए मामला सूचीबद्ध कर दिया है।

    Next Story